प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को मोतिहारी में पटना को पुणे बनाने का वादा किया लेकिन उन्हें शायद यह ध्यान नहीं रहा कि पटना तो दरअसल ‘पारस’ बन चुका है जहां दो दिन पहले ही पांच शूटरों ने इस अस्पताल में घुसकर मर्डर को अंजाम दिया। प्रधानमंत्री बनने के बाद श्री मोदी अब तक 50 बार से ज्यादा बिहार का दौरा कर चुके हैं और शायद यह पहली बार है जब उन्होंने बिहार में जंगल राज की चर्चा नहीं की क्योंकि इस समय नीतीश कुमार की सरकार खुद जंगल राज के आरोपों से घिरी हुई है।
शायद इसीलिए बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी कहा कि मात्र दो दिनों में पटना समेत अन्य जिले में दर्जनभर हत्याएं हो गईं, लेकिन बिहार दौरे पर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर चर्चा तक नहीं की। उन्होंने सवालिया अंदाज़ में कहा कि इस शासन को वह जंगलराज नहीं कहेंगे।

दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हमेशा 2005 के पहले के बिहार को जंगल राज बताते रहे हैं और मतदाताओं को इस बात से डराते भी हैं कि अगर दोबारा आरजेडी का शासन काल आया तो जंगल राज आ जाएगा। लेकिन अब तो एनडीए के प्रमुख घटक दल लोजपा (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान भी कह रहे हैं कि बिहार में इस समय अपराध अपने चरम पर है। 
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दरअसल यह समय है नीतीश कुमार के उसे नैरेटिव को चुनौती देने का जिसे उन्होंने मीडिया में सरकारी विज्ञापन नहीं देने का डर दिखा कर बनाया है। वह नैरेटिव यह है कि 2005 से पहले बिहार में केवल अपराध था और 2005 के बाद बिहार में अपराध खत्म हो चुका है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड और सत्ता में साझेदार भारतीय जनता पार्टी के नेता अपराध होने पर तरह-तरह के तर्क भी देते हैं। और अब तो पुलिस अधिकारी भी अपराध के लिए अजीबोगरीब बयान देकर चर्चा में आ चुके हैं।

जो बात बताए जाने की है वह यह है कि आज के बिहार में जो अपराध हो रहा है और जो अपराधी इसे अंजाम दे रहे हैं वह सब 2005 में शुरू होने वाले नीतीश कुमार के शासनकाल की उपज हैं। पटना के पारस अस्पताल में जिस चंदन मिश्रा की हत्या हुई उसके बारे में यह बताया गया है कि उसने पहला अपराध 16 साल की उम्र में किया यानी लगभग ठीक उसी समय जिस समय नीतीश कुमार 2005 में अपनी सरकार शुरू कर रहे थे। इस हत्याकांड में जिन पांच शूटरों को देखा गया है उनके अपराध की खेती भी 2005 के बाद ही शुरू हुई है।

इसलिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से 2005 के बाद और खासकर 2010 के बाद होने वाले अपराधों पर बात की जानी चाहिए जो 2020 के बाद से अपने चरम पर है। अभी तक वह यह कहकर बच निकलते हैं कि 2005 के पहले कोई शाम के बाद घर से निकलता नहीं था। जब उनसे बिहार में उनके शासनकाल में होने वाले अपराधों की बात की जाती तो उनकी एक दलील यह भी होती थी कि बिहार में ऑर्गेनाइज्ड क्राइम नहीं है। लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह सुपारी देकर हत्याएं हो रही हैं और जैसा गैंगवार हो रहा है उससे यह बात साबित होती है कि बिहार में ऑर्गेनाइज्ड क्राइम बंद होने की बात करना राजनीतिक स्वार्थ के लिए लोगों को भ्रम में रखने वाले नारे से ज्यादा कुछ भी नहीं है।
पटना के पारस अस्पताल मर्डर केस के कुछ ही दिनों पहले भारतीय जनता पार्टी से जुड़े बड़े कारोबारी गोपाल खेमका की हत्या उनके घर के नीचे ही कर दी गई थी। उस मामले में पुलिस ने खुद स्वीकार किया है कि यह सुपारी देकर की गई हत्या है। इसलिए यह बात बिल्कुल गलत साबित हो रही है कि बिहार में संगठित अपराध नहीं है। इस मामले में भी जी एक अपराधी को एनकाउंटर में मर गया है वह भी नीतीश कुमार के शासनकाल की उपज था।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनकी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की एक दूसरी दलील यह रहती है कि पहले कार्रवाई नहीं होती थी अब करवाई होती है। बिहार पुलिस से रिटायर्ड एक सीनियर अधिकारी का कहना है कि यह दावा इसलिए गलत है क्योंकि 2005 के बाद जिस तरह अपराधियों को सजा दिलाई गई उनकी गिरफ्तारी 2005 के पहले की ही है। उन्होंने कहा कि यह जरूर है कि 2005 के पहले होने वाले अपराधों को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जाता था और कार्रवाई की बात छिपा ली जाती थी जबकि 2005 के बाद कार्रवाई की बात को ज्यादा उजागर की जाती है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ पुलिस अधिकारी भी हां मैं हां मिलाते हुए यह डैरिन देते रहे हैं कि बिहार में ऑर्गेनाइज्ड क्राइम नहीं है। एक समय चुनाव के लिए वर्ष लेने वाले जीपी गुप्तेश्वर पांडे ने बिहार में होने वाले अपहरण की घटनाओं को ‘हनीमून किडनैपिंग’ का नाम दे रखा था। यानी उनके अनुसार यह अपहरण फिरौती के लिए नहीं बल्कि शादी के लिए किया जाता था। पिछले दिनों नीतीश कुमार सरकार में एडीजी हेडक्वार्टर कुंदन कृष्णन यह बयान देकर विवादों में आ गए थे कि अप्रैल, मई व जून में किसानों के पास काम नहीं रहता है इसलिए बिहार में हत्याएं बढ़ जाती हैं।

कई लोगों का मानना यह है कि नीतीश कुमार के शासनकाल में जो अपराध हुए उनके बारे में चर्चा कम की जाती है और ऐसा माहौल बनाया जाता है कि बिहार में अपराध नियंत्रित हो चुका है। उदाहरण के लिए मुजफ्फरपुर के पूर्व मेयर समीर कुमार सिंह की गोलियों की बौछार कर कर हत्या कर दी गई थी लेकिन आज के अखबारों और मीडिया संस्थानों में इसकी चर्चा नहीं होती जिससे लोगों को इसका अंदाजा नहीं लगा पता कि बिहार में नीतीश कुमार के शासनकाल में अपराध कैसा रहा है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के हवाले से बता चुके हैं कि पिछले 20 सालों यानी नीतीश कुमार के शासनकाल में बिहार में 60000 से ज्यादा हत्याएं हुई हैं।
इसी तरह गया के प्रसिद्ध डॉक्टर पंकज कुमार का नीतीश कुमार के शासनकाल में ही जीटी रोड से नाटकीय ढंग से अपहरण कर लिया गया था। जब वह छूट कर आए तो इस बात पर विवाद था कि उन्हें पुलिस ने छुड़ाया है या वह फिरौती देकर छूटे हैं।
मर्डर के अलावा बिहार में बड़े पैमाने पर बैंक लूट और ज्वेलरी की दुकानों में लूट पर भी चर्चा कम होती है। पिछले महीना में पूर्णिया और आर जैसे शहरों में दिनदहाड़े तनिष्क शोरूम से लूटपाट की गई। इसके अलावा गया में गोल्ड लोन देने वाली कंपनी मुथूट के ऑफिस से सोने की लूटपाट की गई।
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कई लोगों का मानना यह है कि बिहार में क्राइम कम होने का नैरेटिव बनाने में नीतीश कुमार ने ज्यादा ध्यान दिया और क्राइम कंट्रोल करने के बजाय क्राइम की खबरों को कंट्रोल किया। लेकिन बिहार में सोशल मीडिया के आने के बाद क्राइम की खबरों को दबाना बहुत मुश्किल हो गया है इसलिए लोगों को अब यह एहसास हो रहा है कि दरअसल नीतीश कुमार का शासन काल भी जंगल राज का ही एक रूप है।