कमलनाथ
कांग्रेस - छिंदवाड़ा
जीत
विवादों में घिरे छत्तीसगढ़ के डीजीपी और भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी मुकेश गुप्ता को आख़िरकर निलंबित कर दिया गया है। इसके अलावा नारायणपुर में पदस्थ पुलिस अधीक्षक रजनेश सिंह को भी राज्य सरकार ने निलंबित कर दिया है। इन दोनों ही अफ़सरों पर नान घोटाला मामले की जाँच ग़लत ढंग से करने और अवैध तरीके़ से फ़ोन टैपिंग कराने का आरोप है। आपको बता दें कि गुरुवार की देर रात को ईओडब्ल्यू (इकॉनॉमिक ऑफ़ेंस विंग) ने दोनों अधिकारियों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की थी।
ईओडब्ल्यू ने डीजीपी मुकेश गुप्ता एवं एस.पी. रजनेश सिंह के ख़िलाफ़ धारा 166 ए (बी), 167, 193, 194, 196, 201, 218, 466, 467, 471 और 120 बी के तहत मामला दर्ज किया है। दोनों पर नागरिक आपूर्ति निगम घोटाले की जाँच के दौरान झूठे साक्ष्य गढ़ने, आपराधिक साज़िश रचते हुए रसूख़दार लोगों को बचाने और अवैध तरीके से फ़ोन टैप करने का आरोप है।
मुकेश गुप्ता पूर्ववर्ती रमन सरकार में सबसे प्रभावशाली अफ़सरों में से एक रहे हैं। रमन सरकार के 15 साल के कार्यकाल में उन्हें कई प्रमोशन से नवाजा गया था और स्पेशल डीजी के पद की पदोन्नति प्राप्ति हुई थी। राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद सबसे पहले जिस अफ़सर को हटाने का आदेश जारी हुआ उसमें मुकेश गुप्ता का नाम सबसे पहले था।
मुख्यमंत्री रमन सिंह के तीसरे कार्यकाल में ईओडब्ल्यू और एसीबी (एंटी करप्शन ब्यूरो) ने राज्य के सिविल सप्लाई कार्पोरेशन में छापामारी कर अफ़सरों के केबिन से करोड़ों की नक़दी बरामद की थी। इस दौरान एक डायरी भी सामने आई थी। इस डायरी में कोड नंबर की तर्ज पर कुछ प्रभावशाली राजनेताओं और अफ़सरों के नाम दर्ज थे, जिन्हें कमीशन के तौर पर लाखों रुपये हर माह दिए जाते थे। इस डायरी के सामने आने के बाद ईओडब्ल्यू ने मामले को ही रफ़ा-दफ़ा करने की प्रक्रिया शुरू कर दी। जाँच अधिकारी ने जाँच के दौरान कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को नजरअंदाज़ कर दिया था और सबूतों के साथ भी छेड़छाड़ की थी।
विपक्ष में रहते हुए तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर यह आरोप लगाया था कि राजनीतिक दुर्भावनावश और निजी स्वार्थों को साधने के लिए रमन सरकार विरोधियों के फ़ोन टैप करवा रही है।
डीजीपी मुकेश गुप्ता और एसपी रजनेश सिंह के निलंबन को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि जिन्होंने कूट रचना की है, छेड़छाड़ की है, उनके ख़िलाफ़ करवाई हुई है और आगे भी होगी। बघेल ने कहा कि जो क़ानून के ख़िलाफ़ जाएगा, उनके ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई होगी।
राज्य के इतिहास में पहली बार डीजीपी स्तर के किसी अधिकारी को सस्पेंड किया गया है। वह भी अवैध रूप से फ़ोन टैपिंग जैसे गंभीर मामले को लेकर। डीजीपी मुकेश गुप्ता के ख़िलाफ़ आधा दर्जन से ज़्यादा अन्य संगीन मामलों की जाँच भी की जा रही है।
मुकेश गुप्ता पर एमजीएम ट्रस्ट बनाकर अस्पताल का संचालन और उसमें राज्य के लोगों से लाखों रुपये चेक से जमा कराने का भी आरोप है। इसके अलावा अपनी कथित दूसरी पत्नी मिक्की मेहता की हत्या के आरोप भी उन पर हैं। वर्ष 2006 में रायपुर के तत्कालीन आईजी रामनिवास ने अपनी जाँच में पाया था कि मुकेश गुप्ता ने अपनी पहली पत्नी के जीवित रहते हुए विक्की मेहता से दूसरी शादी की थी। इसकी विधिवत अनुमति कार्मिक विभाग और पुलिस मुख्यालय से नहीं ली गई। उन्होंने जाँच में यह भी पाया कि मुकेश गुप्ता ने हिंदू मैरिज एक्ट का उल्लंघन किया है।
डीजीपी के ख़िलाफ़ भिलाई, दिल्ली और देश के दूसरे शहरों में बेशक़ीमती ज़मीनें और मकान ख़रीदे जाने की जाँच भी की जा रही है। विदेशों से बहुमूल्य गिफ़्ट स्वीकार करने के एक मामले की जाँच अब तक लंबित है। इसमें रूस से क़ीमती घड़ी और एक म्यूजिक सिस्टम उपहार में स्वीकार किए जाने का मामला है।
मुकेश गुप्ता के ख़िलाफ़ ईओडब्ल्यू और एंटी करप्शन ब्यूरो में बतौर डीजीपी रहते अवैध वसूली करने और दर्ज एफ़आईआर फाड़ने जैसे संगीन मामलों की जाँच भी जारी है। इस अफ़सर के कारनामों की पुलिस महकमे में चर्चा होती रहती है।
राजनांदगाँव के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे की नक्सलियों को एनकाउंटर के दौरान हुई मौत भी संदिग्ध मानी गई थी। इस मुठेभड़ को लेकर मुकेश गुप्ता पर उँगलियाँ उठी थी। उस वक्त वे दुर्ग रेंज के आईजी के पद पर तैनात थे। गंभीर बात यह थी कि मदनवाड़ा के जंगलों में हुई इस मुठेभड़ में पुलिस अधीक्षक समेत दो दर्जन पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे।
हैरानी की बात यह है कि इसी घटना में मुकेश गुप्ता को नक्सलियों से लोहा लेने के लिए गैलेंट्री अवार्ड और सराहनीय सेवा के तमगे से सम्मानित किया गया। जबकि उनके ख़िलाफ़ ठोस कार्रवाई होनी चाहिए थी। क्योंकि उनके ग़लत फ़ैसले के चलते इतनी तादाद में पुलिसकर्मी मारे गए थे।
दरअसल, बीजेपी नेताओं और राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के क़रीबी होने के चलते मुकेश गुप्ता के ख़िलाफ़ सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की, बल्कि उन्हें पुरस्कृत करते चली गई। फ़िलहाल इस अफ़सर को सस्पेंड किए जाने के बाद राज्य के कई पीड़ितों को न्याय की उम्मीद जगी है।
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