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महाराष्ट्र के बाद क्या छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार को अस्थिर करने की तैयारी?

विपक्षी दल सरकार पर जिन केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर राज्य सरकारों को अस्थिर करने का आरोप लगाते रहे हैं, अब उसी की एक एजेंसी पर एक व्यवसायी ने छत्तीसगढ़ सरकार को अस्थिर करने का सीधे-सीधे आरोप लगाया है।

यह मामला कोयला और परिवहन व्यवसायी सूर्यकांत तिवारी से जुड़ा है जिनके परिसरों की हाल ही में छत्तीसगढ़ में आयकर विभाग ने तलाशी ली थी। उन्होंने आरोप लगाया है कि आयकर अधिकारियों ने उनसे कहा कि यदि वह सरकार को गिराने के लिए सत्तारूढ़ कांग्रेस विधायकों के साथ अपने संबंधों का इस्तेमाल करते हैं तो वह मुख्यमंत्री बन सकते हैं। व्यवसायी के इन आरोपों के बाद बीजेपी और कांग्रेस एक-दूसरे से उलझ गए हैं। पर इससे सवाल उठते हैं कि क्या इनके आरोपों में सच्चाई है? यदि यह सच है तो क्या इसी तरह महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में भी सरकारें बदलीं?

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वैसे, बीजेपी का 'ऑपरेशन लोटस' काफ़ी चर्चा में है। कर्नाटक में जब कांग्रेस-जेडीएस सरकार संकट में थी तब यह काफ़ी ज़्यादा चर्चा में रहा था। इसके बाद मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान जैसे राज्यों में भी 'ऑपरेशन लोटस' का नाम आया था। अब छत्तीसगढ़ को लेकर भी ऐसे ही कयास लगाए जाने लगे हैं।

छत्तीसगढ़ में राजनीतिक हलचल सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो से तेज हुई है। वीडियो संदेश में कोयला और परिवहन व्यवसायी सूर्यकांत तिवारी ने आरोप लगाया है कि तलाशी के दौरान उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया क्योंकि उन्होंने मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात एक सरकारी अधिकारी को ग़लत बयान देकर फँसाने से इनकार कर दिया था।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने आरोप लगाया, 'मेरे परिसर में 30 जून से आईटी छापे के दौरान आईटी अधिकारियों ने मुझे और मेरे परिवार के सदस्यों को धमकाया... उन्होंने मुझे सीएमओ में तैनात उप सचिव सौम्या चौरसिया को मेरे व्यवसाय से जोड़ने और उनके ख़िलाफ़ बयान देने के लिए मजबूर किया...।' तिवारी ने कहा कि चौरसिया अकेले ऐसे अधिकारी नहीं हैं जिनके साथ उनके अच्छे संबंध थे। उन्होंने आरोप लगाया कि लेकिन आयकर अधिकारी चाहते थे कि मैं उन्हें फंसाऊं और उन्होंने मुझे सरकार गिराकर मुख्यमंत्री बनने की पेशकश भी की। उन्होंने कहा, 'मुझे बताया गया था कि जिन कांग्रेस विधायकों को मैं जानता हूं, अगर मैं उनकी मदद करता हूं, तो उन्हें सरकार बनाने के लिए बीजेपी का समर्थन मिलेगा।'

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अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश बीजेपी प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव ने कहा कि तिवारी के आरोप मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के इशारे पर हैं और निराधार हैं। उन्होंने कहा कि आईटी विभाग की जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही है। इधर, राज्य में कांग्रेस नेता सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि कोयला व्यापारी के बयान से पता चलता है कि बीजेपी छत्तीसगढ़ में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है। 

यह रिपोर्ट तब आई है जब हाल ही में महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की गठबंधन सरकार गिर गई है। शिवसेना के बाग़ी एकनाथ शिंदे खेमे ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली है। शिंदे मुख्यमंत्री बने हैं जबकि बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस उप मुख्यमंत्री। 

इससे पहले उद्धव ठाकरे की सरकार तब संकट में आ गई थी जब शिंदे गुट के विधायक पहले तो बीजेपी शासित गुजरात और फिर असम में चले गए थे। शिंदे गुट ने शिवसेना के क़रीब 40 विधायकों के अपने पाले में होने का दावा किया था।

महाराष्ट्र से पहले कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस सरकार गिर गई थी। 2019 में ऐसी रिपोर्टें आने लगी थीं कि बीजेपी नेतृत्व जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन के 16 विधायकों के संपर्क में है। और छह महीने के अंदर यानी जुलाई 2019 में 14 महीने पुरानी जेडीएस-कांग्रेस सरकार गिर गई थी। कर्नाटक विधानसभा में विश्वास मत के पक्ष में 99 वोट पड़े थे जबकि विपक्ष में 105 वोट पड़े। इसके बाद कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा सौंप दिया था। 

कर्नाटक की सत्ता पर लंबे समय से बीजेपी की नज़र थी। विधानसभा चुनाव में सबसे ज़्यादा सीटें जीतने के बाद भी वह सरकार बनाने में नाकामयाब रही थी। सरकार बनाने के लिए उसने ‘ऑपरेशन लोटस’ भी चलाया था और कांग्रेस-जेडीएस के विधायकों को तोड़ने की कोशिश की थी। लेकिन 14 महीने बाद ही उसे कुमारस्वामी सरकार को गिराने में सफलता मिल पाई थी। 

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कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिरने के बाद से ही कयास लगाए जाने लगे थे कि मध्य प्रदेश की सरकार पर भी संकट गहरा सकता है। दरअसल, कुल 230 सदस्यों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस के पास 114 विधायक ही थे। अपने दम पर बहुमत के लिए 116 विधायकों की ज़रूरत थी। कांग्रेस को चार निर्दलीय, बीएसपी के दो और एसपी के एक विधायक का समर्थन हासिल था। इस तरह कुल 121 विधायक उसके पास थे और वह दूसरों के समर्थन पर ही टिकी थी। दूसरी तरफ़ बीजेपी के पास 108 विधायक थे।

2020 की शुरुआत में ही ख़बरें आई थीं कि मध्य प्रदेश में कम से कम 19 विधायक बीजेपी के संपर्क में हैं। इसी बीच पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने और 22 विधायकों के विधानसभा से इस्तीफ़ा देने के बाद कमलनाथ सरकार मुश्किल में आ गई थी। 22 विधायकों के इस्तीफ़े के बाद कांग्रेस के पास 92 विधायक रह गए थे। इसके बाद 20 मार्च 2020 को कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा सौंप दिया था। कमलनाथ ने कहा था कि बीजेपी ने 22 विधायकों को बंधक बनाया और पूरा देश यह जानता है। उन्होंने आरोप लगाया था कि करोड़ों रुपये खर्च कर खेल खेला गया। तो क्या अब छत्तीसगढ़ में भी इन राज्यों की तरह ही राजनीतिक संकट खड़ा करने की कोशिश है?

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क़मर वहीद नक़वी
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