दिल्ली दंगा साज़िश मामले में आरोपी शरजील इमाम की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान पुलिस ने कोर्ट में एक वीडियो क्लिप प्रस्तुत की, जिसमें उनके बयानों को ‘राष्ट्र-विरोधी’ बताया गया।
एक्टिविस्ट शरजील इमाम की ज़मानत याचिका का विरोध करने के लिए दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को उनके भाषणों की वीडियो क्लिप चलाई। वह 2020 के नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली दंगों की साज़िश के मामले में न्यायिक हिरासत में हैं। पुलिस ने हिंसा से कुछ दिन पहले दिए गए उनके कथित भड़काऊ भाषणों के वीडियो वाले कुछ हिस्सों को अदालत में चलाया। शरजील इमाम 2020 से हिरासत में हैं और उन पर कई गंभीर आरोप हैं। उन पर अनलॉफुल एक्टिविटीज़ (प्रिवेंशन) एक्ट यानी यूएपीए की धारा 13 के तहत भी आरोप हैं।
दिल्ली दंगे के बड़े षड्यंत्र केस में उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर, शिफा-उर-रहमान, मोहम्मद सलीम खान और शादाब अहमद सहित सात आरोपियों की जमानत याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को भी सुनवाई हुई। दिल्ली पुलिस ने इन सभी को कट्टर ‘राष्ट्र-विरोधी’ बताते हुए जमानत का कड़ा विरोध किया।
वीडियो क्लिप में शरजील ने क्या कहा था?
जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की बेंच के सामने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल यानी एएसजी एस.वी. राजू ने शरजील इमाम के कई भड़काऊ भाषणों की वीडियो क्लिप्स कोर्ट में चलाईं। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार उस क्लिप में शरजील को ऐसे बयान देते हुए दिखाया गया कि भारत के सभी शहरों में चक्का जाम होना चाहिए, मुसलमानों को एकजुट होकर भारत को असम से जोड़ने वाले 'चिकन नेक' एरिया को काटना चाहिए और नॉर्थ-ईस्ट को मेनलैंड से काटना चाहिए, दिल्ली में ज़रूरी चीज़ों की सप्लाई रोकनी चाहिए, सरकार को काम करना बंद कर देना चाहिए, और कोर्ट पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
बेंच ने पूछा कि क्या ये भाषण सबूतों का हिस्सा हैं? इस पर एएसजी ने हामी भरी। शरजील इमाम के वकील सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे ने इस पर टोकते हुए कहा कि ये क्लिप्स चुनिंदा हिस्से हैं, पूरा संदर्भ नहीं दिखाया जा रहा।
एएसजी ने दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप यानी डीपीएसजी, जामिया अवेयरनेस कैंपेन टीम जैसे व्हाट्सएप ग्रुप्स के संदेशों का हवाला दिया और दावा किया कि आरोपियों का मकसद था- सरकार को उखाड़ फेंकना, सत्ता परिवर्तन लाना, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा (फरवरी 2020) के दौरान हिंसक दंगे करवाकर देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करना।
एएसजी ने आरोपियों को 'राष्ट्र-विरोधी और उपद्रवी' क़रार देते हुए कहा, 'जब भी इनकी जमानत की सुनवाई आती है, न्यूयॉर्क टाइम्स में कुछ न कुछ छपता है। सोशल मीडिया यह जाने बिना एक्टिव हो जाता है कि वे इंटेलेक्चुअल होने के मुखौटे में एंटी-नेशनल हैं।'
'इंटेलेक्चुअल कट्टरपंथी ज़्यादा खतरनाक'
एएसजी राजू ने कहा कि मीडिया और सोशल मीडिया में यह कहानी बनाई जा रही है कि आरोपी लोग इंटेलेक्चुअल हैं जो सिटिज़नशिप अमेंडमेंट एक्ट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने की कीमत चुका रहे हैं, जबकि उनका असली मकसद विरोध प्रदर्शनों को एक मुखौटा बनाकर सरकार को हिंसक तरीके से गिराना था।
हाल ही में दिल्ली के लाल किले में हुए बम धमाके और डॉक्टरों के एक टेरर मॉड्यूल के पकड़े जाने का परोक्ष ज़िक्र करते हुए एएसजी ने कहा कि पढ़े-लिखे कट्टरपंथी ज़्यादा खतरनाक होते हैं।
उन्होंने कहा, 'वह एक इंजीनियर है। अब ट्रेंड यह हो गया है कि डॉक्टर, इंजीनियर अपना प्रोफेशन नहीं कर रहे हैं, बल्कि देश विरोधी कामों में लगे हुए हैं। जब बुद्धिजीवी आतंकवादी बन जाते हैं तो वे ज़मीन पर काम करने वालों से ज़्यादा ख़तरनाक हो जाते हैं।'
एएसजी ने कुछ सुरक्षित गवाहों के बयानों का भी ज़िक्र किया। इस मौके पर जस्टिस कुमार ने पूछा कि क्या कोर्ट बेल की सुनवाई में सबूतों की जांच कर सकता है। एएसजी ने कहा कि कोर्ट को सबूतों की सच्चाई पर गौर करने की ज़रूरत नहीं है और साफ़ किया कि उनकी कोशिश यह दिखाने की थी कि पहली नज़र में केस के लिए सबूत मौजूद हैं। सुनवाई शुक्रवार को भी जारी रहेगी।'उमर खालिद की देवांगना-नताशा से तुलना नहीं'
सोमवार को दिल्ली पुलिस ने तर्क दिया था कि उमर खालिद को देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा के साथ बराबरी नहीं कर सकते, क्योंकि उस फैसले में यूएपीए की गलत व्याख्या हुई थी। इन्हें 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट ने जमानत दे दी थी।
पांच साल से अधिक जेल में बंद
याचिकाकर्ता 2019-20 में नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए के खिलाफ प्रदर्शनों के प्रमुख चेहरों में थे। उन पर आरोप है कि इन्होंने फरवरी 2020 के सांप्रदायिक दंगों के पीछे बड़ा षड्यंत्र रचा। सभी पर यूएपीए और आईपीसी की विभिन्न धाराएँ लगी हैं।
2 सितंबर 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट ने इन सभी की जमानत याचिकाएँ खारिज कर दी थीं, जिसके ख़िलाफ़ ये स्पेशल लीव पिटीशन यानी एसएलपी सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं। याचिकाकर्ता पांच साल से अधिक समय से जेल में हैं।