दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह के एक विवादास्पद भाषण ने शैक्षणिक जगत में हंगामा मचा दिया है। उन्होंने ‘अर्बन नक्सलवाद’ को शहरी क्षेत्रों और विश्वविद्यालयों में फैलने वाली एक गहरी समस्या बताते हुए प्रोफेसरों पर छात्रों के दिमाग ‘प्रदूषित’ करने का आरोप लगाया। उन्होंने पिंजरा तोड़ जैसे छात्र आंदोलनों को नक्सलवाद का एक रूप करार दिया। इस बयान पर फैकल्टी सदस्यों, छात्रों और बुद्धिजीवियों ने कड़ी निंदा की है और इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया है। 

‘अर्बन नक्सलवाद’ शब्द 2018 से चर्चा में है। यह शहरों में नक्सली विचारधारा को समर्थन देने वालों के लिए इस्तेमाल होता है। सरकार इसे आंतरिक सुरक्षा खतरे के रूप में देखती है, जबकि आलोचक इसे असहमति दबाने का हथियार बताते हैं।
ताज़ा ख़बरें

कुलपति का भाषण यूट्यूब पर अपलोड

यह विवाद तब भड़का जब कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह का भाषण यूट्यूब पर अपलोड किया गया और कुछ छात्रों का आरोप है कि उन्हें वीडियो का लिंक इसे देखने के लिए भेजा जा रहा है। 24 मिनट का यह भाषण वीडियो 28 सितंबर को विज्ञान भवन में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन द्वारा भारतीय विश्वविद्यालय संघ के साथ साझेदारी में आयोजित ‘भारत मंथन 2025: नक्सल मुक्त भारत - मोदी के नेतृत्व में लाल आतंक का अंत’ कार्यक्रम का है। इस भाषण के बाद कैंपस में विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए।

कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे। यह आयोजन बीजेपी से जुड़े एक थिंक टैंक द्वारा आयोजित किया गया था। कुलपति ने अपने आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर वीडियो अपलोड किया। 

कुलपति योगेश सिंह ने अपने 24 मिनट के भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नक्सलवाद उन्मूलन की पहल की सराहना की, लेकिन साथ ही चेतावनी दी कि आज का नक्सलवाद जंगलों से निकलकर शहरों और विश्वविद्यालयों में घुस चुका है।

'नक्सलवाद विश्वविद्यालयों तक फैला'

योगेश सिंह ने कहा, "नक्सलवाद अब जंगलों तक सीमित नहीं है। यह विश्वविद्यालयों और शहरों में ‘अर्बन नक्सल्स’ के रूप में फैल रहा है। कुछ प्रोफेसर छात्रों के दिमागों को प्रदूषित कर रहे हैं, उन्हें गलत विचारों से भर रहे हैं।” उन्होंने पिंजरा तोड़ आंदोलन का उदाहरण देते हुए कहा, 'ये छात्र माता-पिता, विश्वविद्यालय और समाज के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ने की बात करते हैं। मैं स्तब्ध हूँ। फिर उन्होंने कहा कि वे अपनी आज़ादी के लिए, समाज के ख़िलाफ़ लड़ाई के लिए रात में मार्च निकालना चाहते हैं... यह भी शहरी नक्सलवाद का एक रूप है। इसे भी उतनी ही गंभीरता से मिटाने की ज़रूरत है।' 

उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसे आंदोलन राष्ट्रीय एकता को कमजोर करते हैं और सरकार की नक्सल उन्मूलन रणनीति को बाधित कर सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि अकादमिक संस्थानों में वैचारिक घुसपैठ हो रही है, जहाँ बुद्धिजीवी और शिक्षक नक्सली विचारधारा को बढ़ावा दे रहे हैं। कुलपति ने आगे कहा, 'उनकी सोच इस तरह से विकसित हुई है कि उनकी संस्थापक देवांगना कलिता और नताशा नरवाल, दोनों को 2020 में यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था।'
दिल्ली से और खबरें

अभिव्यक्ति पर हमला: फैकल्टी, छात्र

कुलपति योगेश सिंह के बयान पर डीयू कैंपस में तीखा विरोध शुरू हो गया। छात्र संगठनों ने इसे ‘फासीवादी प्रवृत्ति’ बताते हुए कुलपति कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार डीयू की छात्रा और वामपंथी ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन की सदस्य अंजलि ने कहा, 'छात्रों को विश्वविद्यालय से भाषण देखने के लिए ईमेल मिल रहे हैं। यह विश्वविद्यालय के व्यापक भगवाकरण का संकेत है।' उन्होंने आगे कहा कि उनका संगठन जल्द ही इस भाषण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का आह्वान करेगा। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार एक छात्र नेता ने कहा, 'यह शैक्षणिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। पिंजरा तोड़ जैसे आंदोलन महिलाओं के अधिकारों के लिए थे, इन्हें नक्सलवाद से जोड़ना हास्यास्पद और खतरनाक है।'

डीयू के राजधानी कॉलेज के प्रोफ़ेसर राजेश झा ने कहा कि विचारधारा और नज़रिए के आधार पर निशाना बनाना अलोकतांत्रिक है और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अंकुश लगाने का एक प्रयास है। उन्होंने दिप्रिंट को बताया, 'यह अकादमिक संस्कृति में लोकतांत्रिक जगहों को कम करने की कोशिश है, जो बेहद ख़तरनाक है। विश्वविद्यालय व्यवस्था में प्रोफ़ेसरों और छात्रों पर ठप्पा लगाना और उनका नाम लेना अवांछनीय है।'
मिरांडा हाउस की एसोसिएट प्रोफ़ेसर आभा देव हबीब ने कुलपति की टिप्पणियों को 'अपमानजनक' बताया, ख़ासकर समान अधिकारों की माँग कर रही छात्राओं पर निशाना साधने वाली टिप्पणियों को। उन्होंने दिप्रिंट को बताया, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुलपति के तौर पर उन्होंने अपने ही विश्वविद्यालय के छात्रों और शिक्षकों के बारे में ये टिप्पणियाँ कीं। नारीवादी विरोध प्रदर्शनों और 'पिंजरा तोड़' जैसे आंदोलनों को शहरी नक्सलवाद कहना अपमानजनक है।"
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें
दिल्ली विश्वविद्यालय टीचर्स एसोसिएशन यानी दुटा ने बयान जारी कर कहा, 'यह बयान शैक्षणिक गरिमा को ठेस पहुंचाता है। हम मांग करते हैं कि वीसी अपने कथन पर खेद व्यक्त करें।'

शैक्षणिक स्वतंत्रता पर बहस

यह विवाद भारतीय विश्वविद्यालयों में बढ़ते राजनीतिक दबाव को दिखाता है। जानकारों का मानना है कि ऐसे बयान छात्रों में भय पैदा करते हैं और वैचारिक बहस को सीमित करते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में अकादमिक संस्थानों में ‘अर्बन नक्सल’ के आरोपों से 20 से अधिक गिरफ्तारियां हुई हैं, जिनमें से कई को बाद में बरी किया गया।

प्रोफेसर सिंह का यह बयान शैक्षणिक जगत में एक नया विवाद खड़ा कर चुका है, जो असहमति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल उठाता है। नक्सलवाद जैसे खतरे से लड़ना ज़रूरी है, लेकिन क्या अकादमिक बहस को अपराधीकरण करना खतरनाक नहीं है? डीयू प्रशासन को क्या अब इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाना नहीं चाहिए, ताकि विश्वविद्यालय ज्ञान का मंदिर बना रहे, न कि वैचारिक युद्ध का मैदान।