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फाइल फोटो

क्या इस लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार अप्रासांगिक होते जा रहे हैं ? 

बिहार की राजनीति के केंद्र में करीब 20 वर्षों से रहने वाले नीतीश कुमार इस लोकसभा चुनाव में चर्चाओं और मीडिया से दूर होते दिख रहे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार इस लोकसभा चुनाव में मौजूदा राजनीति से अप्रासांगिक होते जा रहे हैं? 
बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 16 पर जेडीयू लड़ रही है। लेकिन इस लोकसभा चुनाव में बिहार के सीएम नीतीश कुमार से ज्यादा चर्चा पीएम मोदी, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की हो रही है। बिहार की राजनीति इन दिनों कुछ इस तरह की हो गई है कि मतदाता एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच बंटे हुए हैं। 
बिहार में एनडीए गठबंधन पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रहा है। ऐसे में जेडीयू और उसके नेता नीतीश कुमार को मीडिया का वैसा कवरेज नहीं मिल रहा है जैसा पूर्व के चुनाव में उन्हें मिला करता था।इंडिया गठबंधन में तेजस्वी यादव लगातार अपने भाषणों, रैलियों और बयानों से सुर्खियां बटोर रहे हैं लेकिन नीतीश कुमार इस पूरे चुनाव में किनारे लगते दिख रहे हैं। 

स्थिति यह हो गई है कि नीतीश कुमार भले ही एनडीए गठबंधन के नेता और बिहार के सीएम हैं लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी की रैलियों में उन्हें नहीं बुलाया जा रहा है। पिछले दिनों गया और पूर्णिया की चुनावी जनसभा में नीतीश कुमार की गैरमौजूदगी के बाद से कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। 
जेडीयू के नेता इसका कारण खुल कर बताने से परहेज कर रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता ललन सिंह कह चुके हैं कि पीएम मोदी ने खुद तय किया है कि सभी नेता अलग-अलग प्रचार करेंगे। पीएम मोदी ने कहा है कि सबको मेरे कार्यक्रम में आने की जरूरत नहीं है। 
जेडीयू नेता भले ही कुछ भी कहें लेकिन माना जा रहा है कि नीतीश कुमार से पीएम मोदी ने यह दूरी नवादा की सभा के बाद से बना ली है। इस सभा में नीतीश कुमार ने एनडीए को 400 सीट जीतने की बात कहना चाही थी लेकिन बोलते-बोलते 4000 सीट कह गए थे। 
नीतीश कुमार जब पीएम मोदी की पूर्णिया रैली में नहीं गए तब विपक्षी नेताओं ने इस पर सवाल उठाना शुरु कर दिया है। तेजस्वी यादव ने पिछले दिनों आरोप लगाया था कि भाजपा नीतीश कुमार को पीएम की रैली में आने से रोक रही है। 

तेजस्वी कह चुके हैं कि जेडीयू में दो चार ऐसे लोग हैं जो उनका इस्तेमाल कर रहे हैं और नीतीश कुमार की छवि को धूमिल कर रहे हैं। पिछले दिनों ही तेजस्वी यादव ने कहा था कि इतिहास में यह पहली बार देखा जा रहा है कि चुनाव के समय मुख्यमंत्री घर में कैद हैं। 
अगर उन्हें घर पर बैठा दिया गया है तो सवाल तो उठता ही है। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार के पास इस बार न तो प्रशांत किशोर जैसा रणनीतिकार है जो मीडिया और सोशल मीडिया में उनकी मजबूत उपस्थिति सुनिश्चित कर सके। जेडीयू और नीतीश कुमार का प्रचार अभियान और चुनावी रणनीति भी इस चुनाव में काफी कमजोर दिख रही है। 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भाषणों में भी अब पहले जैसी आक्रमकता नहीं दिखती है। वह अपने भाषणों में राष्ट्रीय मुद्दों पर खुल कर कुछ बोल नहीं पा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है कि कुछ महीने पहले तक वे इंडिया गठबंधन का अहम चेहरा थे, पीएम मोदी की लगातार निंदा कर रहे थे, ऐसे में वह अब केंद्र में एक बार फिर मोदी सरकार बनाने के लिए वोट मांगने में असहज दिख रहे हैं। 

उनके भाषणों के केंद्र में अक्सर ही लालू परिवार, पूर्व की लालू-राबरी सरकार की खामियां रहती है। वह सत्ता में करीब दो दशक से हैं और अब भी दो दशक पहले की लालू-राबरी सरकार की कमियां लोगों को गिना रहे हैं। इसके कारण उनके भाषणों को सुनने के लिए लोगों में अब पहले जैसा उत्साह नहीं रहा है। 
माना जा रहा है कि अगर वह इंडिया गठबंधन में रहते तो इस लोकसभा चुनाव में बिहार में सबसे बड़े चेहरे के तौर पर जाने जाते। दूसरी तरफ तेजस्वी यादव आक्रमक तरीके से लोकतंत्र और संविधान बचाने की बात कर रहे हैं। वह रोजगार देने समेत आम जनता के ज्वलंत मुद्दों को उठा रहे हैं। 
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दूसरा चरण नीतीश के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं 

पीएम मोदी बिहार में भी काफी लोकप्रिय हैं इसलिए उन्हें भी खूब सुना जा रहा है। उनके भाषणों में आक्रमकता रहती है जो उनके चाहने वालों को पसंद आती है। नीतीश कुमार के लिए लोकसभा चुनाव का दूसरा चरण किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होने जा रहा है। 
ऐसा इसलिए कि इस चरण में जिन पांच सीट पर चुनाव होना है उन सभी पर जेडीयू के प्रत्याशी हैं। राजनैतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि नीतीश कुमार की उम्र भी अब ज्यादा हो चुकी है दूसरी तरफ तेजस्वी युवा हैं जिसके कारण वह युवाओं के मुद्दों को ज्यादा बेहतर तरीके से उठा रहे हैं। 

पीएम मोदी भी नीतीश कुमार की तुलना में कहीं अधिक उर्जावान दिखते हैं। यही कारण है कि बिहार में चल रही चुनावी जंग में नीतीश कुमार लगातार कमजोर होते दिख रहे हैं। हालांकि कई राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि नीतीश कुमार भले ही कम बोलते हैं या मंच से पीएम मोदी जैसी आक्रमक भाषा का प्रयोग नहीं करते हैं लेकिन चुनावी इंजीनियरिंग के वे माहिर खिलाड़ी हैं। 
भले ही उन्हें मीडिया कवरेज ज्यादा नहीं मिल रहा है लेकिन वे और जेडीयू जमीनी स्तर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। अगर इस चुनाव में उन्हें अच्छी सफलता मिलती है तो निश्चित रूप से नीतीश कुमार का कद भारतीय राजनीति में बढ़ेगा। जिन सीटों पर जेडीयू चुनाव लड़ रही है उन पर वह मजबूत टक्कर दे रही है। 
ऐसे में नीतीश कुमार बिना किसी शोर के इस लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत लाकर सबको चौंकाने की क्षमता अब भी रखते हैं। ऐसा मानने वालों का तर्क है कि नीतीश कुमार के पास आज भी एक मजबूत जातीय समीकरण है। 
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क़मर वहीद नक़वी
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