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फाइल फोटो

ममता बनर्जी के तीसरे मोर्चे की हवा क्यों निकली?

ममता बनर्जी की अति महत्वाकांक्षा और हड़बड़ी ने तीसरे मोर्चे की हवा निकाल दी है। ग़ैर-भाजपावाद की राह पर चलती ममता बनर्जी अचानक रुख बदल कर ग़ैर कांग्रेसी मोर्चा की तरफ़ बढ़ने लगीं। वे मोदी के सबसे प्रिय उद्योगपति गौतम अडानी से न सिर्फ़ मिलीं बल्कि उनके साथ की फोटो भी सार्वजनिक की। इसी के साथ ही महाराष्ट्र की राजनीति के साथ देश की भी राजनीति गर्मा गई। शिवसेना ने फौरन ही ममता बनर्जी के अभियान की हवा निकाल दी।

शिवसेना के मुखपत्र के एग्जीक्यूटिव एडिटर और राज्यसभा सांसद संजय राउत की टिप्पणी पर ग़ौर करना चाहिए। संजय राउत ने कहा कि बिना कांग्रेस पार्टी के कोई मोर्चा नहीं बन सकता है। उन्होंने कहा कि तीसरा-चौथा मोर्चा किसी काम का नहीं है। इससे वोटों का बंटवारा ही होगा। उन्होंने आगे कहा कि यूपीए को मज़बूत करने की ज़रूरत है। संजय राउत ने साफ़ किया कि यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके नेतृत्व पर किसी ने सवाल नहीं उठाया।

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शिवसेना ने इसके साथ ही अपने मुखपत्र सामना में भी इस मुद्दे को उठाया। सामना में लिखा गया कि ममता की राजनीति कांग्रेस उन्मुख नहीं है। पश्चिम बंगाल से उन्होंने कांग्रेस, वामपंथी और बीजेपी का सफाया कर दिया। ये सत्य है फिर भी कांग्रेस को राष्ट्रीय राजनीति से दूर रखकर सियासत करना यानी मौजूदा फासिस्ट राज की प्रवृत्ति को बल देने जैसा है। सामना में लिखा गया है कि कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो, ऐसा मोदी और बीजेपी का एजेंडा है।

सामना की इस टिपण्णी के साथ ही शिवसेना ने ममता बनर्जी के तीसरे मोर्चे की पहल में पलीता लगा दिया है। अब ममता बनर्जी के लिए दोबारा यह कवायद शुरू करना बहुत आसान नहीं होगा। 

दरअसल, ममता बनर्जी की अति महत्वाकांक्षा और हड़बड़ी के चलते ही उन्हें झटका लगा है। हालाँकि इसके पीछे ममता बनर्जी के राजनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर की भूमिका को भी देखा जा रहा है।

प्रशांत किशोर अब कांग्रेस से अपनी खुन्नस के चलते जिस रास्ते पर ममता बनर्जी को धकेल रहे हैं उससे ममता बनर्जी की छवि को भी नुक़सान पहुंचा है।

कल तक वह मोदी के ख़िलाफ़ देश में एक बड़ा चेहरा बन कर उभरी थीं और दो दिन में वह मोदी के साथ खड़ी दिख रही हैं। ममता बनर्जी की इस राजनीति का पर्दाफाश शिवसेना ने क्यों किया है, इसे भी समझना चाहिए। 

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दरअसल, शिवसेना ने अब यह मन बना लिया है कि उसे महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ नहीं जाना है और अपनी ज़मीन को और मज़बूत करना है। साफ़ है कि उसने आगे की राजनीति को लेकर यूपीए के साथ रहने का मन बना लिया है। ऐसे में ममता बनर्जी जो गोवा तक पहुँच गई हैं उनसे शिवसेना का देर सबेर टकराव भी हो सकता है। महाराष्ट्र के साथ ही शिवसेना का असर गोवा के मराठी लोगों पर भी है। पीके के चक्कर में ममता बनर्जी गोवा में जब राजनीतिक जोड़तोड़ करने लगीं तो शिवसेना की चिंता स्वभाविक थी।

और इस पूरे खेल में बीजेपी की अप्रत्यक्ष भूमिका भी देखी जा रही है। वैसे भी पीके की राजनीति तो बीजेपी से ही शुरू हुई थी और वे एनडीए की राजनीति की धार को तेज भी करते रहे। उनकी आगे की योजना को उनके कांग्रेस विरोध की राजनीति से समझा जा सकता है।

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दूसरे इस पूरे खेल में गौतम अडानी के खुलकर सामने आने से अन्य दलों को भी शंका हुई। बंगाल में अडानी की नज़र कई परियोजनाओं पर है। इसका कोई विरोध भी नहीं कर रहा है। पर अडानी सिर्फ़ कारपोरेट ही नहीं हैं, वे देश की राजनीति में भी अप्रत्यक्ष दखल रखते हैं। मोदी भी तो उन्हीं के जहाज पर सवार होकर गुजरात से दिल्ली की सत्ता तक पहुंचे हैं। ऐसे में यह समझना कि वह सिर्फ़ बंगाल के विकास में ही मदद करेंगे, बहुत नादानी होगी।

आज का कारपोरेट सिर्फ़ उद्योग धंधे तक ही सीमित नहीं है बल्कि वह मीडिया से लेकर सत्ता की राजनीति में भी ठीक से दखल देता ही। वरना देश की राजधानी की दहलीज पर किसान साल भर तक  बैठे रहते। इन्हीं कारपोरेट की मदद के लिए ही तो किसानों से बिना बात किए सरकार कृषि क़ानून ले आई थी। ऐसे में अडानी और ममता की सार्वजनिक हुई फोटो सिर्फ़ फोटो नहीं बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी है। इस संदेश को सबसे पहले शिवसेना ने पढ़ लिया और समझ भी लिया। अब पीके फिर ऐसी कोई ग़लती नहीं करेंगे यह उम्मीद की जा सकती है। पर फ़िलहाल ममता बनर्जी की राष्ट्रीय उड़ान की महत्वाकांक्षा पर कुछ समय का विराम तो लगता ही नज़र आ रहा है। खासकर उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के चुनाव तक।
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अंबरीश कुमार
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