गुजरात के 2002 सांप्रदायिक दंगों से जुड़े एक पुराने मामले में अहमदाबाद की एक अदालत ने तीन आरोपियों को बरी कर दिया। 'हार्ड वीडियोग्राफिक सबूत' यानी वीडियो टेप का अदालत में कभी पेश न होना और वीडियोग्राफर का अपना बयान वापस लेना इस फैसले की मुख्य वजह बनी। आरोपियों में से एक पर एके-47 राइफल लहराने का गंभीर आरोप था, लेकिन 23 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सबूतों की कमी के चलते अदालत ने उन्हें क्लीन चिट दे दी।
'हार्ड वीडियोग्राफिक सबूत' गायब, 2002 गुजरात दंगों में तीन आरोपी बरी
- गुजरात
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- 6 Nov, 2025

2002 के गुजरात दंगों के मामले में अदालत ने तीन आरोपियों को बरी कर दिया। जांच एजेंसियों के पास मौजूद ‘हार्ड वीडियोग्राफिक सबूत’ के गायब होने से सवाल उठे हैं। क्या न्याय प्रक्रिया पर असर पड़ा?

यह मामला दरीपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज दो एफआईआर से जुड़ा है, जो 14 अप्रैल 2002 को हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं पर आधारित हैं। शिकायतकर्ता सतीश दलवाड़ी थे। वह एक वीडियोग्राफर और क्षेत्रीय शांति समिति के सदस्य भी थे। उन्होंने पुलिस को एक वीएचएस कैसेट सौंपा था। इसमें कथित तौर पर आलमगीरी शेख, हनीफ शेख, इम्तियाज शेख, रऊफमिया सैयद और कुछ अन्य लोग हिंसा वाली भीड़ में शामिल दिखाई दे रहे थे। दलवाड़ी को तत्कालीन दरीपुर पुलिस इंस्पेक्टर आर.एच. राठौड़ ने सांप्रदायिक तनाव की किसी भी घटना को रिकॉर्ड करने का निर्देश दिया था।





















