गुजरात के एक स्कूल में नाटक में बुर्का पहने महिलाओं को आतंकी क्यों दिखाया और इस पर विवाद खड़ा क्यों हो गया है? सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस मामले में कार्रवाई होगी?
गुजरात स्कूल के नाटक में बुर्का पहनी महिलाओं को आतंकी दिखाने पर बवाल
गुजरात के एक स्कूल में स्वतंत्रता दिवस के नाटक में बुर्का पहने महिलाओं को आतंकवादी दिखाने पर बवाल हो गया है। स्थानीय समुदाय और सामाजिक संगठनों ने इस नाटक को धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने का प्रयास करार दिया है। सोशल मीडिया पर वीडियो देखने वालों ने इसे मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने का प्रयास माना। इस पर विवाद होने के बाद अब अधिकारियों ने स्कूल, प्रशासन को नोटिस जारी कर रिपोर्ट मांगी है।
मामला गुजरात के भावनगर जिले के कुम्भारवाड़ा क्षेत्र में डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम प्राथमिक शाला नंबर 51 का है। 15 अगस्त को आयोजित नाटक का थीम कश्मीर में हुए पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर आधारित था। नाटक में कुछ छात्राओं को सफेद सलवार-कमीज और नारंगी दुपट्टे में कश्मीरी तीर्थयात्रियों के रूप में दिखाया गया, जो कश्मीर की शांति का प्रतीक एक गीत पर नृत्य कर रही थीं। इसके बाद मंच पर कुछ बुर्का पहने छात्राएँ बंदूकें लिए आतंकवादियों के रूप में प्रवेश करती हैं और नृत्य कर रही छात्राओं पर गोलीबारी करती हैं। इस नाटक का वीडियो सोशल मीडिया पर भी शेयर किया गया। इसको देखकर लोगों ने इसे मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने का प्रयास माना।
सोशल मीडिया पर वायरल हुए इस वीडियो ने बड़ी बहस छेड़ दी। कई लोगों ने इसे इस्लामोफोबिया और सांप्रदायिक नफरत को बढ़ावा देने वाला बताया। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय सामाजिक संगठन बंधारण बचाव समिति भावनगर ने इस नाटक को 'मुस्लिम समुदाय को आतंकवादी के रूप में पेश करने' का आरोप लगाते हुए जिला कलेक्टर, नगर आयुक्त और जिला शिक्षा अधिकारी यानी डीईओ को शिकायत पत्र सौंपा। संगठन ने इसे धार्मिक भावनाओं को आहत करने और सामाजिक अशांति फैलाने की कोशिश करार दिया।
स्थानीय समुदाय की आपत्ति क्या?
बंधारण बचाव समिति के अध्यक्ष जेहुरभाई हुसैनभाई जेजा ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'यह नाटक मुस्लिम समुदाय के खिलाफ एक सुनियोजित अपमान है। स्वतंत्रता दिवस जैसे पवित्र अवसर पर जब हमें एकता और भाईचारे की बात करनी चाहिए, स्कूल ने मुस्लिम समुदाय को आतंकवादी के रूप में दिखाकर संविधान का अपमान किया है। हम मांग करते हैं कि इस नाटक के लिए जिम्मेदार शिक्षकों और स्कूल कर्मचारियों को निलंबित किया जाए और उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई हो।'
एक रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय एक्टिविस्ट शाहिद खान ने कहा, 'हमारे बच्चों को यह सिखाया जा रहा है कि मुस्लिम आतंकवादी हैं। यह न केवल समुदाय के खिलाफ अपमान है, बल्कि यह अगली पीढ़ी के दिमाग में नफरत बोने का प्रयास है।' सोशल एक्टिविस्ट जाहिदा शेख का कहना है, 'स्वतंत्रता का कोई मतलब नहीं अगर हम सम्मान के साथ नहीं जी सकते। स्वतंत्रता दिवस हमें एकजुट करने का अवसर होना चाहिए, न कि अपमान करने का।' कई लोगों ने इस नाटक को इस्लामोफोबिया को बढ़ावा देने और मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ नकारात्मक रूढ़ियों को मजबूत करने वाला बताया।
स्कूल प्रशासन, शिक्षक क्या बोले
नाटक के वायरल होने और विवाद बढ़ने के बाद स्कूल के प्रिंसिपल राजेंद्र दवे ने सफाई दी कि नाटक का उद्देश्य देशभक्ति और सशस्त्र बलों के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना था। उन्होंने कहा, 'हमने काले कपड़े पहनने को कहा था, लेकिन छात्राओं ने बुर्का पहना। यह अनजाने में हुआ और इसका कोई गलत इरादा नहीं था।' उन्होंने कहा कि लड़कियों के यूनिफॉर्म को लेकर कोई ग़लती रह गई हो और अगर किसी समुदाय को कोई आपत्ति है तो मैं उसके लिए माफ़ी मांगता हूँ। उन्होंने यह भी कहा कि हमारा उद्देश्य केवल बच्चों और अभिभावकों को 'ऑपरेशन सिंदूर' की सफलता के बारे में बताना था, न कि किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना।
प्रशासनिक कार्रवाई और जाँच
विवाद के बाद भावनगर के जिला शिक्षा अधिकारी हितेंद्रसिंह डी. पधेरिया ने भावनगर नगर निगम स्कूल बोर्ड के प्रशासनिक अधिकारी मुनजल बादमलिया को नोटिस जारी कर सात दिनों के भीतर इस कार्यक्रम के बारे में विस्तृत और तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है। डीईओ ने कहा, 'बंधारण बचाव समिति द्वारा सौंपे गए प्रतिवेदन में दावा किया गया है कि स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रम में मुस्लिमों को जानबूझकर आतंकवादी के रूप में पेश किया गया। तथ्यों का पता लगाने के लिए हमने प्रशासनिक अधिकारी से सफाई मांगी है।'
इसके अलावा, स्थानीय प्रशासन ने जांच शुरू कर दी है, लेकिन अभी तक पुलिस की ओर से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है। सामाजिक संगठनों और मुस्लिम समुदाय के नेताओं ने चेतावनी दी है कि यदि जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की गई, तो वे विरोध प्रदर्शन और कानूनी कार्रवाई करेंगे।
यह विवाद न केवल शिक्षा प्रणाली में संवेदनशीलता की कमी को सामने लाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम सामाजिक विभाजन का कारण बन सकते हैं। मुस्लिम समुदाय और सामाजिक संगठनों ने इस घटना को गंभीरता से लिया है और इसे सामाजिक सद्भाव के लिए खतरे के रूप में देखा जा रहा है। प्रशासन की जांच और उसके परिणाम इस मामले में अगला कदम तय करेंगे, लेकिन यह साफ़ है कि इस तरह की घटनाएं देश में एकता और सामाजिक सद्भाव के लिए बड़ी चुनौती हैं।