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क्या गुजरात चुनाव में करिश्मा कर पायेगी आप?

पूरे देश की नज़र गुजरात के विधानसभा चुनाव पर है। क्योंकि जनमानस में चर्चा इस बात की है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी अपना क़िला बचा ले जाएगी या कोई उलट फेर हो सकता है?

क्योंकि पिछले 27 सालों से कांग्रेस बीजेपी को पराजित नहीं कर पाई है। हालाँकि 2017 के चुनाव में कांग्रेस कड़ी चुनौती देते हुए बीजेपी को 99 सीट पर ले आई थी, और कांग्रेस ख़ुद 77 सीट जीत पाई थी, हालांकि कांग्रेस के 20 विधायक बीजेपी के पाले में चले गए।  2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा कड़ी टक्कर के पीछे पाटीदार आंदोलन की प्रमुख भूमिका रही थी। अब इसके प्रमुख नेता हार्दिक पटेल बीजेपी के पाले में चले गये हैं। 

यह ध्यान देना ज़रूरी है की 6.5 करोड़ की गुजराती आबादी में 1.5 करोड़ पटेल समुदाय के लोग हैं, वर्तमान में 55 विधायक पटेल समुदाय से ही आते हैं। पटेल समुदाय के लेऊआ पटेल जो सूरत और अहमदाबाद में अधिकांश हैं वो हीरा कारोबारी और व्यवसायी वर्ग से आते हैं, कड़वा पटेल को प्रतिनिधित्व देने के लिए मोदी जी ने साल भर पहले विजय रूपाणी को  पूरी कैबिनेट के साथ हटा कर नया मुख्यमंत्री भूपेश पटेल को बनाया है।

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अभी तक का चुनाव कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही हुआ करता था लेकिन 2022 के चुनाव में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली और पंजाब की सत्ताधारी पार्टी आम आदमी पार्टी मजबूती से चुनाव लड़ रही है। समीक्षकों और राजनीतिक विश्लेषकों के बीच बहस इस बात की है कि ‘आप’ किसका खेल बिगाड़ेगी? क्या दिल्ली और पंजाब की तरह कमाल कर पाएगी, एंटी इन्कंबेंसी लहर का फायदा उठा पाएगी? दूसरी बहस यह भी है कि कहीं वो बीजेपी को फायदा तो नहीं पहुंचा देगी और कांग्रेस का वोट काटेगी?  इस बहस के निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कुछ तथ्यों का विश्लेषण करना ज़रूरी है।

27 सालों से कांग्रेस बीजेपी और मोदी को पराजित नहीं कर पाई है, तो ऐसा कौन सा करिश्मा इसबार कांग्रेस कर देगी? जबकि अपनी पूरी ताक़त ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पर लगाए हुए है। कांग्रेस का कोई भी प्रभावी नेता गुजरात में नज़र नहीं आता, यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि ’दिवंगत नेता अहमद पटेल के निधन के बाद पहली बार गुजरात चुनाव हो रहा है’, अहमद पटेल के बारे में जानकार यह बताते हैं कि भले वो कांग्रेस में थे परंतु गुजरात की राजनीति में मोदी के सहयोगी थे, कई सीटों पर डमी कैंडिडेट उतार कर बीजेपी को मदद पहुँचा देते थे। यह भी चर्चा होती है कि ठेकेदारी और प्रशासनिक महकमों में बीजेपी–कांग्रेस मिलजुल कर हिस्सेदारी बाँटती रही है।

182 सीटों वाले गुजरात में 3.50 करोड़ वोटर हैं जिसमें 70% लोग ही वोट करते हैं। 2017 में डाले गए वोट का 49% बीजेपी को और 41.5% कांग्रेस को मिला। बीजेपी को 23 लाख वोट ज्यादा मिले थे। गौरतलब है कि शहरी–ग्रामीण, पाटीदार–आदिवासी –ओबीसी में विभाजित वोट और हिंदुत्व की प्रयोगशाला वाले राज्य में जहाँ मुसलिम आबादी 9.67% और हिंदू वोट 88.57% है वहाँ कोई अन्य विकल्प नहीं होने के कारण जनता इन्हें वोट देने के लिए मजबूर थी। इस कारण कांग्रेस बीजेपी और मोदी को पराजित नहीं कर पा रही थी और कोई नैरेटिव नहीं बना पा रही थी। बार-बार पराजित होती और नेतृत्वविहीन कांग्रेस को जनता सक्षम नहीं मान रही, कमजोर विपक्ष के कारण गुजरात के फर्जी मॉडल का प्रचार सफल हो गया। और देश की सत्ता मोदी के हाथों में आ गयी जिसको सफल बनाने में कॉरपोरेट मित्र और बिकाऊ मीडिया ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।

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कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने गृह राज्य जहाँ वो 13 साल मुख्यमंत्री भी रह चुके है, टेंट पंडाल में एक फर्जी स्कूल का दिखावा करना पड़ा। गुजरात में 46 हजार स्कूल में से 28 हजार जर्जर स्थिति में हैं, 6000 सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया गया, शिक्षकों की भारी कमी है, कई स्कूलों में आधारभूत सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। पीने का पानी, शौचालय, बेंच, ब्लैकबोर्ड भी नहीं है। दीवारें टूटी पड़ी हैं। वहीं, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजीकरण को भरपूर बढ़ावा दिया गया। बेरोज़गारी, महंगाई, परीक्षा के लगातार पेपर लीक होने का मामला, और अनुबंध (ठेके पर) पर शिक्षक, पुलिस कर्मियों सहित सारे विभागों की बदहाली, टूटी हुई सड़कें और व्यापारियों की बदहाली का जो नज़ारा अब सामने आया है इससे पहले कभी नहीं आया था। 

आम आदमी पार्टी ने गुजरात के चुनावी मैदान में उतर कर मोदी के गढ़ में ही मोदी को चुनौती दे डाली है, तभी तो प्रधानमंत्री मोदी खुलेआम जनसभा में कांग्रेस के मजबूत होने की कामना करते हैं और अरविंद केजरीवाल को ’अर्बन नक्सल’ कह कर संबोधित करते हैं।

गुजरात में वोटरों का मिजाज शहरी और ग्रामीणों में विभाजित दिखता है। 182 सीटों में से 55 सीट शहरी (अर्बन) हैं, जिस पर बीजेपी हमेशा जीतती रही है। 127 सीट ग्रामीण या सेमी-अर्बन हैं। जिसमें से 72 सीट हमेशा कांग्रेस जीतती है। आम आदमी पार्टी 55 सेमी-अर्बन सीट और 55  अर्बन सीट पर मज़बूत टक्कर पैदा कर चुकी है। मध्यम वर्ग के मुद्दे अच्छी शिक्षा, फ्री स्वास्थ्य सुविधा, फ्री बिजली, पानी,  महिलाओं के लिए यातायात सुविधा और 1000 रुपये सम्मान राशि, बेरोजगारी भत्ता, समय पर भ्रष्टचार मुक्त परीक्षा के वादे से जनता में पकड़ बना चुकी है।

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कांग्रेस को वोट देने वाले और बीजेपी को वोट देने वाले दोनों से निराश और नोटा को वोट देने वाले केजरीवाल के पक्ष में खुल कर बोल रहे हैं। सूरत के म्युनिसिपल चुनाव में 27 सीटें जीत कर और गांधीनगर में दूसरे स्थान पर वोट पाकर आप को समझ आ गया है कि गुजरात के वोटर का मिजाज क्या है?

गुजरात में अगर आम आदमी पार्टी करिश्मा कर देती है तो 2024 में लोकसभा की लड़ाई मोदी बनाम केजरीवाल हो जाएगी, राष्ट्रीय पार्टी बनने, करिश्माई नेतृत्व, जनता के मुद्दों को समझने और समाधान निकालने का जो तरीक़ा केजरीवाल के पास है अभी किसी दूसरे दल के पास नहीं है। आखिरी निर्णय चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा।

(लेखक  - अंगेश कुमार, आम आदमी पार्टी से जुड़े हैं।)

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अंगेश कुमार
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