गुजरात के विधानसभा चुनाव में इस बार बीजेपी की सबसे बड़ी जीत के साथ ही कांग्रेस की करारी हार की चर्चा भी आने वाले कई सालों तक होती रहेगी। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कड़ी टक्कर देने वाली कांग्रेस ने 77 सीटें हासिल की थी और यह उसका सबसे शानदार प्रदर्शन रहा था। लेकिन इस बार वह 20 सीटों के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच सकी।
कांग्रेस की हालत इस कदर खराब रही कि गुजरात विधानसभा में विपक्ष के नेता सुखराम राठवा और पूर्व नेता प्रतिपक्ष परेश धनानी भी अपनी-अपनी सीटों से चुनाव हार गए।
ऐसे में इस पर बात करेंगे कि आखिर कांग्रेस की गुजरात में इतनी खराब हालत क्यों हुई।
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चुनाव प्रचार से दूरी
कांग्रेस की हार के अहम कारणों का विश्लेषण करें तो पहला कारण यह समझ में आता है कि केंद्रीय नेतृत्व चुनाव प्रचार से दूरी बनाए रहा। भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सिर्फ 1 दिन के लिए चुनाव प्रचार में पहुंचे। अंतिम दिनों में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कुछ चुनावी सभाएं की लेकिन इससे पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ। 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने गुजरात में धुआंधार चुनाव प्रचार किया था। कुछ वैसे ही प्रचार की जरूरत इस बार भी थी।
राहुल गांधी तो प्रचार में सिर्फ 1 दिन के लिए आए लेकिन प्रियंका गांधी 1 दिन के लिए भी गुजरात में चुनाव प्रचार के लिए नहीं आईं। इससे शायद पार्टी के चुनाव प्रचार पर खराब असर पड़ा और गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी जैसे-तैसे चुनाव अभियान चला सकी।
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आम आदमी पार्टी
कांग्रेस की बुरी हार की एक बड़ी वजह आम आदमी पार्टी को भी माना जा रहा है। आम आदमी पार्टी ने इस चुनाव में लगभग 13 फीसद वोट हासिल किए हैं और उसने कांग्रेस के वोट शेयर में जबरदस्त सेंध लगाई है जबकि बीजेपी का वोट शेयर कम नहीं हुआ है बल्कि लगभग 4 फीसद बढ़ा है।
कांग्रेस को 2017 के विधानसभा चुनाव में 41 फीसद वोट मिले थे जबकि इस बार वह 27 फीसद वोट हासिल कर पाई है। ऐसे में यह साफ है कि कांग्रेस को मिलने वाले वोटों का बड़ा हिस्सा आम आदमी पार्टी ने अपने पाले में कर लिया। बीजेपी को साल 2017 के विधानसभा चुनाव में 49 फीसद वोट मिले थे और इस बार उसने लगभग 53 फीसद वोट हासिल किए हैं। जबकि पिछली बार आम आदमी पार्टी को 0.1 फीसद वोट मिले थे लेकिन इस बार उसने इसमें जबरदस्त बढ़ोतरी की है।
कांग्रेस नेताओं के बयान
गुजरात में बीजेपी की बड़ी जीत के लिए कांग्रेस नेताओं के बयानों को भी एक वजह माना जा रहा है। गुजरात में कांग्रेस के नेता मधुसूदन मिस्त्री ने मोदी को औकात दिखा देंगे वाला बयान दिया था। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए, क्या आपके रावण की तरह 100 मुंह हैं, का बयान दिया था और उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे चुनावी जनसभाओं में मुद्दा बना लिया था और कहा था कि कांग्रेस में इस बात की होड़ लगी है कि उन्हें ज्यादा गाली कौन दे सकता है।
बीजेपी ने इसे गुजरात का अपमान बताया था और गुजरात के लोगों से कांग्रेस को सबक सिखाने की अपील की थी। ऐसे में हो सकता है कि कांग्रेस को उसके नेताओं के इन बयानों के कारण नुकसान हुआ हो।
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बीजेपी का आक्रामक अभियान
याद दिलाना होगा कि 10 मार्च को जब पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आए थे और इनमें से चार राज्यों में बीजेपी को जीत मिली थी उसके अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद में बड़ा रोड शो किया था। प्रधानमंत्री के साथ ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तब से लेकर चुनाव प्रचार खत्म होने तक गुजरात के धुआंधार दौरे किए और कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चुनाव प्रचार में उतारा।
अमित शाह ने इस बार आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान चलाते हुए 140 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए शाह ने जमकर मेहनत की, कई नेताओं के टिकट काटे और जोरदार चुनाव अभियान चलाया।
गुजरात दंगा 2002, यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड, दिल्ली में हुए श्रद्धा मर्डर कांड के आरोपी आफताब पूनावाला का मुद्दा और पाकिस्तान और दाउद इब्राहिम की भी एंट्री बीजेपी नेताओं के बयानों की वजह से इस चुनाव में हुई और चुनाव में ध्रुवीकरण की कोशिश हुई।
सुस्त चुनाव प्रचार
पिछले कुछ महीनों से गुजरात से जो खबरें राष्ट्रीय मीडिया में सामने आ रही थी उसमें ऐसा लगता था कि राज्य के अंदर बड़ी चुनावी लड़ाई बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच ही है। आम आदमी पार्टी जैसी नई नवेली पार्टी ने जिस आक्रामक और जोरदार ढंग से गुजरात में चुनाव लड़ा, कांग्रेस उससे कोसों दूर दिखाई दी। 2017 में कांग्रेस ने जिस आक्रामक ढंग से चुनाव लड़ा था उसकी छाप भी इस बार नहीं दिखाई दी और कांग्रेस से ज्यादा आम आदमी पार्टी और इसके मुखिया अरविंद केजरीवाल अपने चुनाव प्रचार के दौरान चर्चा में रहे।
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अहमद पटेल की कमी
कांग्रेस को अपने बड़े चुनावी रणनीतिकार अहमद पटेल की भी कमी खली। 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान अहमद पटेल राहुल गांधी को लगातार सलाह देते रहे लेकिन इस बार राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा में शामिल रहे और सिर्फ 1 दिन प्रचार के लिए पहुंचे। ऐसे में अहमद पटेल के ना होने और राहुल गांधी की गैरमौजूदगी ने कांग्रेस के चुनाव प्रचार को बेहद कमजोर कर दिया। हालांकि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चुनावी जनसभाएं जरूर की लेकिन उसका बहुत ज्यादा असर नहीं हुआ। गहलोत भी गुजरात में ज्यादा ध्यान देने के बजाय राजस्थान में अपने सियासी विरोधी सचिन पायलट से लड़ाई लड़ने में व्यस्त दिखाई दिए।
इस सबसे यह संदेश गया कि कांग्रेस इस बार गुजरात के चुनाव को लेकर गंभीर नहीं है और वह राज्य में बीजेपी का मुकाबला नहीं करना चाहती।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, कांग्रेस के कुछ नेताओं ने कहा कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदीश ठाकोर पूर्व अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी की छाया से बाहर नहीं निकल सके। उनके बारे में कहा जाता था कि उनमें फाइटिंग स्प्रिट की कमी है। इसके अलावा पार्टी के बड़े नेता सिद्धार्थ पटेल, अर्जुन मोढवाडिया, शक्ति सिंह गोहिल में सामंजस्य की कमी भी दिखाई दी।
गुजरात में मिली करारी हार ने राहुल गांधी के द्वारा साल 2017 के विधानसभा चुनाव में की गई मेहनत पर पानी फेर दिया है। वैसे, राजनीति में कभी कुछ भी पूरी तरह खत्म नहीं होता लेकिन कांग्रेस को जिस कदर करारी हार गुजरात में मिली है, उससे उबर पाना पार्टी के लिए बेहद मुश्किल होगा क्योंकि गुजरात के लोकसभा चुनाव में बीजेपी वहां 2014 और 2019 में सभी 26 सीटों पर जीत हासिल करती रही है और अब उसने विधानसभा में भी कांग्रेस को समेट दिया है।
साफ है कि कांग्रेस को खुद को फिर से खड़ा करने में काफी ऊर्जा लगानी होगी।
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