हरियाणा में कांग्रेस की 'सद्भाव यात्रा' ने पार्टी के भीतर नेताओं की आपसी महत्वाकांक्षा और सहयोग की स्थिति को स्पष्ट कर दिया है। 5 अक्टूबर को जींद जिले के नरवाना विधानसभा क्षेत्र के दनौदा में कांग्रेस की विदेश मामलों की कमेटी के उपाध्यक्ष व प्रदेश कांग्रेस नेता बृजेन्द्र सिंह ने इस यात्रा की शुरुआत की। इस अवसर पर प्रदेश के कई प्रमुख कांग्रेस नेता अनुपस्थित रहे। पिछले तीन महीनों से बृजेन्द्र सिंह ने पार्टी नेतृत्व की अनुमति के बाद इस यात्रा की तैयारियाँ की थीं।

पिछले सप्ताह बृजेन्द्र सिंह ने चंडीगढ़ में कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय में यात्रा का प्रतीक चिह्न जारी किया था। केंद्रीय नेतृत्व से अनुमोदित इस यात्रा की विश्वसनीयता पर सवाल तब उठे, जब कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी बी.के. हरिप्रसाद इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए। बृजेन्द्र सिंह की सद्भाव यात्रा पर प्रतिक्रिया देते हुए बी.के. हरिप्रसाद ने कहा कि यह यात्रा कांग्रेस का आधिकारिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि बृजेन्द्र सिंह की व्यक्तिगत पहल है। उन्होंने साफ़ किया कि कोई भी नेता इसमें शामिल हो सकता है और पार्टी को इससे कोई आपत्ति नहीं है। हालाँकि, उन्होंने यह भी कहा कि इस यात्रा की आधिकारिक जानकारी संगठन को नहीं है, लेकिन संभवतः राहुल गांधी को इसकी जानकारी हो सकती है।
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राहुल गांधी के प्रयासों का असर नहीं?

पिछले दो दशकों से कमजोर हो रही कांग्रेस को राहुल गांधी द्वारा हर प्रदेश में मज़बूत करने और आपसी गुटबाज़ी को ख़त्म करने के प्रयासों को स्थानीय नेता गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। कभी हरियाणा की प्रमुख राजनीतिक ताक़त रही कांग्रेस अब नेताओं की आपसी जागीर और वर्चस्व की लड़ाई में गहरे तक धँस चुकी है। 2014, 2019 और 2024 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी से हार के बावजूद कांग्रेस के प्रदेश नेताओं ने कोई सबक नहीं लिया।

2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद बृजेन्द्र सिंह ने यह 'सद्भाव पदयात्रा' शुरू की है। इसका उद्देश्य बीजेपी के सामाजिक और जातीय विभाजन की रणनीति और चुनावी धांधलियों का मुकाबला करना तथा कांग्रेस में जनता का विश्वास पुनः स्थापित करना है। यह यात्रा प्रदेश की सभी 90 विधानसभा सीटों से होकर गुजरेगी।

पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में कांग्रेस की स्थिति कमजोर हो चुकी है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी कांग्रेस लगभग नगण्य हो चुकी है। उत्तर भारत में हिमाचल प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में कांग्रेस अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में थी, लेकिन हरियाणा में लगातार तीन बार की हार ने पार्टी के प्रति जनता का विश्वास डगमगा दिया है। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को पुनर्गठित और सशक्त करने की नीति को प्रदेशों में आपसी गुटबाजी और महत्वाकांक्षा नाकाम कर रही है। नेताओं के लिए कांग्रेस के सिद्धांतों, लक्ष्यों और आदर्शों से अधिक उनकी राजनीतिक जागीर और विरासत महत्वपूर्ण हो गई है।

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खेमे के हिसार से सांसद जयप्रकाश ने उचाना में पत्रकारों से बातचीत में इस यात्रा के औचित्य पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि हरियाणा में अब सद्भाव यात्रा की कोई ज़रूरत नहीं है।

यात्रा पर कांग्रेस नेताओं ने उठाए सवाल

उन्होंने पूछा कि जब किसान आंदोलन के समय इसकी वास्तविक ज़रूरत थी, तब यह यात्रा क्यों नहीं निकाली गई। जयप्रकाश ने बृजेन्द्र सिंह और उनके पिता चौधरी बीरेंद्र सिंह पर निशाना साधते हुए कहा कि 2014 में कांग्रेस की कमजोर स्थिति देखकर ये लोग भाजपा में चले गए थे। बृजेन्द्र सिंह ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की टिकट पर जीत हासिल की थी, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले वे कांग्रेस में शामिल हो गए। जयप्रकाश ने कहा कि समाज एकजुट है और हमेशा रहेगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उन्हें यात्रा में शामिल होने का पार्टी की ओर से कोई संदेश नहीं मिला। साथ ही, उन्होंने छह बार दल-बदल के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि उन्होंने दूसरों की तुलना में कम बार दल बदले हैं।

रोहतक में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने पत्रकारों के सवालों के जवाब में कहा कि यदि यह कांग्रेस का आधिकारिक कार्यक्रम होगा, तो वे शामिल होंगे, लेकिन अगर कोई व्यक्तिगत तौर पर कुछ करता है, तो वह उसकी मर्जी है। उन्होंने कहा कि इस बारे में उनकी कोई बात नहीं हुई। हरियाणा में भूपेंद्र हुड्डा और बीरेंद्र सिंह के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता किसी से छिपी नहीं है। हाल ही में एक साल के इंतजार के बाद भूपेंद्र हुड्डा को हरियाणा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष नियुक्त किया गया है। हुड्डा रोहतक जिले की गढ़ी-सांपला-किलोई सीट से छठी बार विधायक बने हैं और रिकॉर्ड चौथी बार नेता प्रतिपक्ष बने हैं। इससे पहले अगस्त 2002, सितंबर 2019 और नवंबर 2019 में भी वे नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं। सितंबर 2019 में वे केवल डेढ़ महीने के लिए इस पद पर रहे।
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राव नरेंद्र सिंह ने क्या कहा?

नव नियुक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राव नरेंद्र सिंह ने स्पष्ट किया कि सद्भाव यात्रा कांग्रेस का आधिकारिक अभियान है। केंद्रीय नेतृत्व ने नारनौल के राव नरेंद्र सिंह को हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया है। हालांकि, 2024 के चुनावों से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुईं किरण चौधरी ने राव नरेंद्र सिंह की नियुक्ति पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति 16,000 करोड़ रुपये के घोटाले में शामिल रहा हो, उसे प्रदेश अध्यक्ष बनाना कांग्रेस की भविष्य की स्थिति को दिखाता है। उन्होंने चेतावनी दी कि इससे कांग्रेस हरियाणा में शून्य हो जाएगी। 

राव नरेंद्र सिंह 2009 में हरियाणा जनहित कांग्रेस (भजनलाल गुट) से नारनौल के विधायक बने थे और बाद में अन्य विधायकों के साथ भूपेंद्र हुड्डा की सरकार में शामिल हो गए थे। उस समय वे स्वास्थ्य मंत्री बने थे। सी.एल.यू. मामले में सी.बी.आई. ने राव नरेंद्र सिंह सहित पांच अन्य विधायकों पर केस दर्ज किया था। जनवरी 2016 में हरियाणा लोकायुक्त और राज्य सतर्कता ब्यूरो की जांच के बाद उनके खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज की गई थी।
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प्रदेश की दिग्गज नेता कुमारी सैलजा भी यात्रा के शुभारंभ पर नहीं पहुंचीं। हरियाणा में अनुसूचित जाति का बड़ा वर्ग, जो पहले कांग्रेस का समर्थक था, अब भाजपा के खेमे में चला गया है। रणदीप सिंह सुरजेवाला ने अपने बेटे और कैथल से विधायक आदित्य सुरजेवाला को भेजकर अपनी राजनीतिक मौजूदगी दर्ज की। जींद के नव नियुक्त जिला अध्यक्ष और जुलाना से विधायक विनेश फोगाट भी यात्रा में शामिल नहीं हुए। हालांकि, बृजेन्द्र सिंह ने कांग्रेस के सभी पुराने और नए नेताओं को यात्रा में शामिल होने का निमंत्रण दिया है।

यात्रा शुरू करते हुए बृजेन्द्र सिंह ने कहा कि सद्भाव यात्रा आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की लड़ाई है। यह प्रदेश में आपसी सहयोग और सुरक्षा का माहौल बनाने की कांग्रेस की सोच को आगे बढ़ाने की मुहिम है। उन्होंने कहा, “मैं एक ईमानदार प्रयास कर रहा हूँ, जो कांग्रेस के सद्भाव के आदर्शों के अनुरूप है। इस यात्रा से मेरा कोई राजनीतिक लाभ अर्जित करने का इरादा नहीं है।” हरियाणा में कांग्रेस की सियासत आपसी प्रतिस्पर्धा और गुटबाजी के भंवर में फंस चुकी है। सहयोग और अनुशासन के सिद्धांतों को गुटबाजी ने हाशिए पर धकेल दिया है।