संविधान विशेषज्ञों ने इस धारणा को खारिज कर दिया है कि सोमवार को राज्यसभा में पेश प्रस्ताव से अनुच्छेद 370 ख़त्म हो गया।
संविधान विशेषज्ञ हरीश साल्वे ने साफ़ शब्दों में कहा है कि सोमवार को राज्यसभा में पेश प्रस्ताव एक 'मेज़र सर्जरी' की तरह है, पर अनुच्छेद 370 इससे ख़त्म नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 के सेक्शन 3 में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया है। यह राष्ट्रपति को यह हक़ देता है कि वह किसी भी समय विशेष दर्ज को अप्रभावी कर सकते हैं।
साल्वे ने एनडीटीवी से कहा, राष्ट्रपति किसी भी समय एक अधिसूचना जारी कर यह घोषणा कर सकते हैं कि यह अनुच्छेद अब कारगर (ऑपरेटिव) नहीं रहा।
सरकार ने इस प्रावधान का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति से इससे जुड़ा आदेश जारी करवा लिया। हरीश साल्वे ने कहा, 'यह प्रस्ताव वैधानिक रूप से बाध्यकारी है। जब तक संसद इसे रद्द करने के लिए राष्ट्रपति से न कहे, यह लागू रहेगा। अनुच्छेद 35 ए साल 1954 के राष्ट्रपति आदेश के तहत लगाया गया था, वह अब जाता रहा।'
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का मानना है कि जम्मू-कश्मीर के बारे में जो प्रावधान है, वह अस्थायी स्वभाव का है, यानी उसे हटाया जा सकता है। कश्यप ने भी इस बात को ग़लत बताया है कि अनुच्छेद 370 हटा दिया गया है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा है कि अनुच्छेद 370 बना हुआ है, इसके सेक्शन 2 और 3 को हटाया गया है, पर इसका सेक्शन 1 बना हुआ है। इस सेक्शन में यह प्रावधान है कि राज्य विधानसभा की सहमति से राष्ट्रपति की अनुमति से संसद के विभिन्न क़ानूनों को लागू कर सकते हैं।
पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने कहा कि यह कोई क्रांतिकारी कदम नहीं है। उन्होंने कहा, 'यह एक राजनीतिक फ़ैसला है और यह बुद्धिमानी भरा फ़ैसला नहीं है।'
सोली सोराबजी ने ज़ोर देकर कहा कि जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला को नज़रबंद करना गै़रज़रूरी है, अप्रिय घटना है। इससे जम्मू-कश्मीर के लोगों को ग़लत संकेत जाएगा।