loader

अशोका यूनिवर्सिटी विवाद : मेहता ने छात्रों को लिखी चिट्ठी, संस्था ने मानी त्रुटियाँ

अशोका यूनिवर्सिटी से इस्तीफ़ा देने के बाद राजनीतिक विश्लेषक व लेखक प्रताप भानु मेहता ने छात्रों के नाम लिखी एक चिट्ठी में उन्हें 'सुपर हीरो' क़रार दिया है। दूसरी ओर, उनके इस्तीफ़े पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा झेलने के बाद विश्वविद्यालय ने यह माना है कि 'कुछ त्रुटियाँ हुई हैं।' 

बता दें कि इस राजनीतिक विश्लेषक ने बीते दिनों विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर पद से इस्तीफ़ा यह कह कर दे दिया था कि वहाँ अब अकादमिक स्वतंत्रता की जगह नहीं बची है। 

बता दें कि इस राजनीतिक विश्लेषक ने बीते दिनों विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर पद से इस्तीफ़ा यह कह कर दे दिया था कि वहाँ अब अकादमिक स्वतंत्रता की जगह नहीं बची है। 

मेहता मौजूदा सरकार के आलोचक हैं और उन्होंने कई अख़बारों में ऐसे कई लेख लिखे हैं जिनमें सरकार की नीतियों की तीखी आलोचना की गई है। उनके इस्तीफ़े को इससे जोड़ कर देखा जा रहा है।

उनके इस्तीफ़े के ख़िलाफ़ अशोक विश्वविद्यालय के छात्रों ने दो दिनों तक कक्षाओं का बॉयकॉट किया। उसके बाद ही मेहता ने यह चिट्ठी लिखी।  

क्या है चिट्ठी में?

मेहता ने छात्रों के नाम लिखी चिट्ठी में उनकी 'गंभीर राजनीतिक बुद्धिमत्ता' और 'नैतिकता' की तारीफ़ की है और कहा है कि 'छात्रों का विद्रोह स्वतंत्रता और लोकतंत्र पर आधारित है।'

उन्होंने चिट्ठी में लिखा है,

"आपकी गंभीर राजनीतिक बुद्धिमत्ता व नैतिक साफ़गोई के सामने अशोक एक संस्था के रूप में मुज़रिम बना खड़ा है। आपने उन चीजों का विरोध किया है, जिन्हें हम आपके अग्रज के रूप में नहीं समझ सके।"


प्रताप भानु मेहता, राजनीतिक विश्लेषक

उन्होंने इसके आगे लिखा, "आपका विरोध दो लोगों के लिए नहीं था, यह अशोक की संस्थागत प्रतिबद्धता के लिए था। पर यह उस गहरी छाया के भी ख़िलाफ़ था, जो देश के लोकतंत्र के ऊपर मंडरा रहा है।" 

उन्होंने कहा है, "आपका विद्रोह स्वतंत्रता व लोकतंत्र के लिए था। आपने यह काम सम्मान व गौरव के साथ किया और जो मीम्स बनाए, वे कलात्मक सृजनशीलता प्रदर्शित करते हैं।" 

ख़ास ख़बरें

प्रताप भानु मेहता ने यह भी कहा कि वे छात्रों से मिले समर्थन से अभिभूत हैं। उन्होंने यह भी कहा कि छात्रों के विरोध से विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा बढ़ेगी, घटेगी नहीं, जैसा कि कुछ लोग दावा करते हैं। 

मेहता ने ख़त में लिखा है,

"हम एक जटिल समय में हैं। भारत में सृजनशीलता बढ़ रही है। पर इसके साथ ही अधिनायकवाद के काली छाया भी हम पर मंडरा रही है, इससे हमार स्थिति असहज और असम्माजनक हो रही है। हमें इस पर काबू पाने के लिए सैद्धान्तिक व बुद्धिमत्तापूर्ण स्थिति अपनानी होगी।"


प्रताप भानु मेहता, राजनीतिक विश्लेषक

क्या कहना है विश्वविद्यालय का?

प्रताप भानु मेहता और अरविंद सुब्रमणियन के इस्तीफ़ों के बाद अशोक विश्वविद्यालय ने उन स्थितियों पर दुख जताया है जिनकी वजह से इन लोगों ने इस्तीफ़े दिए और इसके साथ ही यह माना है कि संस्थागत प्रक्रिया में त्रुटियाँ हुई हैं। 

लेकिन इसके बाद विश्वविद्यालय के चांसलर रुद्रांशु मुखर्जी ने छात्रों, शिक्षकों व पूर्व छात्रों को एक चिट्ठी लिख कर विश्वविद्यालय के संस्थापकों के इस दावे का समर्थन किया है कि उन्होंने कभी भी अकादमिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं किया है। 

ashoka university : pratap bhanu mehta writes to students, dean clarifies - Satya Hindi
छात्रों के नाम भानु प्रताप मेहता की चिट्ठी

छात्रों के नाम विश्वविद्यालय की चिट्ठी

विश्वविद्यालय के बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टी के अध्यक्ष आशीष धवन ने भी छात्रों व शिक्षकों के नाम चिट्ठी लिखी है। उन्होंने कहा है कि विश्वविद्यालय में किसी का कोई वाणिज्यिक या व्यावसायिक हित नहीं है और उनके मन में हमेशा विश्वविद्यालय के हित ही रहे। 

लेकिन इस चिट्ठी में उन्होंने यह भी कहा है कि उन्हें उन स्थितियों के लिए अफ़सोस है, जिनकी वजह से मेहता और सुब्रमणियन को इस्तीफ़ा देना पड़ा। उन्होंने माना कि कुछ त्रुटियाँ हुई हैं और यह भी कहा है कि कुछ चीजों को ठीक किए जाने की ज़रूरत है। 

विश्वविद्यालय ने पूरे प्रकरण पर सफाई देते हुए एक साझा बयान जारी किया है। इसमें कहा गया है,

"हम यह मानते हैं कि संस्थागत प्रक्रियाओं में कुछ त्रुटियाँ हुई हैं, हम उन्हें दुरुस्त करने के लिए मिल कर काम करेंगे। इससे अकादमिक स्वतंत्रता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता मजबूत होगी, जो अशोक विश्वविद्यालय के मुख्य आदर्शों में एक है।"


ashoka university : pratap bhanu mehta writes to students, dean clarifies - Satya Hindi
अशोक विश्वविद्यालय का बयान

विश्वविद्यालय ने पूरे प्रकरण पर सफाई देते हुए एक साझा बयान जारी किया है। इसमें कहा गया है, "हम यह मानते हैं कि संस्थागत प्रक्रियाओं में कुछ त्रुटियाँ हुई हैं, हम उन्हें दुरुस्त करने के लिए मिल कर काम करेंगे। इससे अकादमिक स्वतंत्रता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता मजबूत होगी, जो अशोक विश्वविद्यालय के मुख्य आदर्शों में एक है।" 

इसमें यह भी कहा गया है कि "प्रताप और अरविंद यह ज़ोर देकर कहते हैं कि अशोक विश्वविद्यालय भारत की उच्च शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण परियोजना है, उन्हें विश्वविद्यालय छोड़े हुए दुख हो रहा है।"

विवाद की जड़ क्या है?

इस पूरे विवाद की शुरुआत प्रताप भानु मेहता के त्यागपत्र से हुई। उन्होंने उसमें उन्होंने लिखा था- 'संस्थापकों के साथ बैठक में यह स्पष्ट हुआ कि मैं अशोक विश्वविद्यालय के लिए राजनीतिक मुसीबत के रूप में माना जाऊँगा'। 

इसके पहले आशीष धवन और प्रमथ राज सिन्हा सहित अशोक के संस्थापकों ने हाल ही में मेहता से मुलाक़ात की थी और कहा जाता है कि उन्हें 'मौजूदा राजनीतिक माहौल' का ज़िक्र करते हुए 'सुझाव' दिया कि उनके बौद्धिक हस्तक्षेप कुछ ऐसे थे जिनकी वे अब रक्षा नहीं कर सकते थे।

बौद्धिक हस्तक्षेप का स्पष्ट मतलब क्या है, यह साफ़ नहीं किया गया है। लेकिन यह तो साफ़ है कि मेहता 'द इंडियन एक्सप्रेस' में लगातार कॉलम लिखते रहे हैं। उनके लेख सरकार की नीतियों के प्रति बेहद आलोचनात्मक रहे हैं। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक सलाहकार रह चुके अरविंद सुब्रमणियन ने मेहता के बाद अशोक विश्वविद्यालय से इस्तीफ़ा दे दिया था। उन्होंने वाइस चांसलर मालबिका सरकार को भेजे अपने त्यागपत्र में इस ओर ध्यान दिलाया था कि निजी विश्वविद्यालय होने के बावजूद अब यहाँ अकादमिक अभिव्यक्ति व स्वतंत्रता के लिए जगह नहीं बची है और यह परेशान करने वाली बात है। 

उन्होंने यह भी कहा था कि अशोक विश्वविद्यालय जिन मूल्यों व आदर्शों के लिए बना है, उन्हें ही चुनौती दी जा रही है और ऐसे में उनका यहाँ बने रहना मुश्किल है। उन्होंने इस्तीफ़े में लिखा है, 'अशोक विश्वविद्यालय और इसके ट्रस्टी जिन बृहत्तर परिप्रेक्ष्यों में काम करते हैं, मैं उससे परिचित हूँ और इसलिए इसके अब तक के कामकाज की तारीफ भी करता हूँ।'

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें