अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका
बानु मुश्ताक को मैसूर दशहरा उत्सव की मुख्य अतिथि बनाए जाने का विरोध करने वालों को सुप्रीम कोर्ट ने झटका दिया है। अदालत ने शुक्रवार को कर्नाटक सरकार के उस निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें 2025 के अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका और कार्यकर्ता बानु मुश्ताक को मैसूर दशहरा उत्सव के उद्घाटन के लिए मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने इस याचिका को खारिज करते हुए भारत के संविधान की प्रस्तावना का हवाला दिया, जिसमें धर्मनिरपेक्षता पर जोर दिया गया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से सवाल किया, 'इस देश की प्रस्तावना क्या है?' और कहा कि मैसूर दशहरा एक राजकीय आयोजन है, न कि निजी कार्यक्रम और राज्य को अपने नागरिकों के बीच भेदभाव नहीं करना चाहिए।
याचिका बेंगलुरु निवासी एच.एस. गौरव ने दायर की थी। इसमें उन्होंने कर्नाटक उच्च न्यायालय के 15 सितंबर के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें बानु मुश्ताक को आमंत्रित करने के राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था। याचिकाकर्ता के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता पी.बी. सुरेश ने तर्क दिया कि दशहरा का उद्घाटन चामुंडेश्वरी मंदिर में वैदिक मंत्रों के साथ फूल चढ़ाने और पूजा से शुरू होता है, यह एक धार्मिक अनुष्ठान है और इसे गैर-हिंदू व्यक्ति द्वारा करने से हिंदुओं के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। उन्होंने तर्क दिया कि ये अधिकार संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित हैं।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि बानु मुश्ताक मुस्लिम समुदाय से हैं और उन्होंने 2023 में जन साहित्य सम्मेलन में कथित तौर पर कन्नड़ भाषा को देवी भुवनेश्वरी के रूप में पूजने पर सवाल उठाए थे, जिसे कुछ लोगों ने हिंदू-विरोधी और कन्नड़-विरोधी माना। पूर्व सांसद और बीजेपी नेता प्रताप सिम्हा ने भी इस आधार पर याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि यह निर्णय एकतरफा था और मैसूर के शाही परिवार के प्रतिनिधियों से परामर्श किए बिना लिया गया।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि मैसूर दशहरा एक राजकीय उत्सव है, जिसे केवल धार्मिक आयोजन तक सीमित नहीं किया जा सकता है। जस्टिस नाथ ने पूछा, 'यह एक राजकीय आयोजन है। राज्य को A, B और C के बीच भेदभाव क्यों करना चाहिए? इसके बाद अदालत ने कहा कि 2017 में भी इसी कार्यक्रम में कवि निसार अहमद को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया था, और पूछा कि तब याचिकाकर्ता के अधिकारों का उल्लंघन नहीं हुआ था क्या?
कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि क्या संविधान में कहीं यह उल्लेख है कि किसी खास धर्म के व्यक्ति को इस तरह के आयोजन में भाग लेने से रोका जा सकता है।
कर्नाटक उच्च न्यायालय का फ़ैसला
15 सितंबर को कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मुख्य न्यायाधीश विबु बाखरू और जस्टिस सी.एम. जोशी की खंडपीठ ने चार जनहित याचिकाओं को खारिज कर दिया था, जिसमें प्रताप सिम्हा, गिरीश कुमार, सौम्या आर., और एच.एस. गौरव शामिल थे। हाई कोर्ट ने कहा था, 'हम इस तर्क को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं कि किसी भिन्न धर्म के व्यक्ति को राजकीय आयोजन में आमंत्रित करना संवैधानिक या कानूनी अधिकारों का उल्लंघन करता है।'
राज्य के महाधिवक्ता शशि किरण शेट्टी ने तर्क दिया कि मैसूर दशहरा एक ऐसा उत्सव है जिसमें सभी धर्मों के लोग भाग लेते हैं और बानु मुश्ताक को उनकी साहित्यिक उपलब्धियों, विशेष रूप से उनकी कन्नड़ लघु कहानियों की संग्रह 'हार्ट लैंप' के लिए अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2025 जीतने के कारण आमंत्रित किया गया। उन्होंने यह भी बताया कि सभी दलों के सांसदों और विधायकों वाली 62 सदस्यीय समिति ने इस निर्णय में भाग लिया था।
विरोध करने वाले लोग कौन?
इस मुद्दे ने कर्नाटक में व्यापक विवाद को जन्म दिया। बी.वाय. विजयेंद्र, आर. अशोक, और तेजस्वी सूर्या जैसे बीजेपी के कई नेताओं ने बानु मुश्ताक के आमंत्रण का विरोध किया, यह कहते हुए कि दशहरा एक हिंदू धार्मिक उत्सव है, जो चामुंडेश्वरी मंदिर में वैदिक अनुष्ठानों से शुरू होता है। मैसूर के शाही वंशज और बीजेपी सांसद यदुवीर कृष्णदत्त चामराज वाडियार ने सुझाव दिया कि मुश्ताक को देवी के प्रति अपनी श्रद्धा सार्वजनिक रूप से व्यक्त करनी चाहिए। वहीं, प्रमोदा देवी वाडियार ने कहा कि सरकारी दशहरा मुख्य रूप से एक सांस्कृतिक आयोजन है, हालांकि मंदिर का धार्मिक चरित्र बना रहता है।
दूसरी ओर, सत्तारूढ़ कांग्रेस ने इस निर्णय का पुरजोर समर्थन किया। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने आलोचकों को धार्मिक कट्टरपंथी करार दिया और कहा कि दशहरा सभी के लिए एक उत्सव है, जैसा कि इतिहास में देखा गया है जब हैदर अली और टीपू सुल्तान ने भी दशहरा मनाया था। उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने कहा कि चामुंडी पहाड़ी सभी धर्मों के लोगों के लिए खुली है।
सोशल मीडिया पर कुछ यूज़रों ने इसे धर्मनिरपेक्षता की जीत के रूप में देखा, जबकि अन्य ने इसे हिंदू धार्मिक भावनाओं का अपमान बताया। एक यूज़र ने लिखा, 'दशहरा एक सांस्कृतिक उत्सव है और बानु मुश्ताक की उपलब्धियाँ इसे और समृद्ध करती हैं।' वहीं, एक अन्य ने कहा, 'यह हिंदू अनुष्ठानों का अपमान है।'
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारत की धर्मनिरपेक्षता और सांस्कृतिक विविधता को रेखांकित करता है। 22 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर को विजयदशमी तक चलने वाला मैसूर दशहरा न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि कर्नाटक की सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। बानु मुश्ताक का आमंत्रण इस बात को दिखाता है कि कला और साहित्य की उपलब्धियां धार्मिक सीमाओं से परे हैं। हालांकि, इस विवाद ने एक बार फिर धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के सवालों को राजनीतिक बहस के केंद्र में ला दिया है।