जामिया में बीबीसी फिल्म दिखाने पर रोक लगाने के बाद बुधवार शाम को छात्र प्रदर्शन करते हुए।
सूत्रों ने बताया कि एसएफआई जामिया यूनिट के सदस्य अजीज, निवेद्या, अभिराम और तेजस को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। एसएफआई ने इसके खिलाफ आज बुधवार शाम 4 बजे गेट नंबर 7 पर प्रदर्शन की घोषणा की थी। शाम 4 बजे छात्र जब जामिया के गेट नंबर 7 पर जमा हुए तो दिल्ली पुलिस पहले से मौजूद थी। पुलिस ने प्रदर्शनकारी छात्रों को फौरन हिरासत में ले लिया। पुलिस ने कहा कि उन्हें जामिया प्रशासन ने इस फिल्म के दिखाने पर रोक लगाने की सूचना दी थी। साथ ही छात्रों के पोस्टर की जानकारी भी दी थी। इसलिए हमने अपनी कार्रवाई की है।
कोलकाता में 27 को स्क्रीनिंग
एसएफआई ने कहा कि उसने विश्वविद्यालय के अधिकारियों को परिसर में बैडमिंटन कोर्ट बुक करने के लिए एक ईमेल भेजा है जहां एक विशाल स्क्रीन पर डॉक्युमेंट्री दिखाए जाने की संभावना है। विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने अभी तक जवाब नहीं दिया है।
बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को कल मंगलवार को पूरे केरल में एसएफआई सहित विभिन्न राजनीतिक संगठनों ने दिखाया था। स्क्रीनिंग के विरोध में बीजेपी की युवा शाखा ने उग्र प्रदर्शन किए थे। फिल्म को राज्य के कई हिस्सों में प्रदर्शित किया गया, जिसके खिलाफ भाजपा के युवा मोर्चा ने विरोध मार्च निकाला। राज्य की राजधानी सहित केरल के कुछ इलाकों में तनाव व्याप्त है, जहां पुलिस को युवा मोर्चा के प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए वाटर कैनन और आंसू गैस का इस्तेमाल करना पड़ा। युवा मोर्चा के कार्यकर्ता भी तिरुवनंतपुरम के पूजापुरा में एकत्रित हुए जहां फिल्म की स्क्रीनिंग की गई। मंगलवार शाम एर्नाकुलम और तिरुवनंतपुरम के कुछ कॉलेजों में और स्क्रीनिंग हुई।
क्या हुआ था गुजरात में
इस डॉक्युमेंट्री में बताया गया है कि ब्रिटिश सरकार ने भी 2002 के गुजरात नरसंहार की गुप्त रूप से जांच कराई थी। इसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाए गए हैं। बीबीसी ने इसका प्रसारण ब्रिटेन में तो कर दिया लेकिन उसने भारत में दिखाने से मना कर दिया है। लेकिन कुछ यूट्यूब चैनलों ने इस फिल्म को बीबीसी की साइट से अपलोड कर प्रसारित कर दिया। कई ट्विटर हैंडलों से उसे ट्वीट भी किया गया है।
गुजरात दंगे की जांच को बाद में कोर्ट में भी चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी पीएम मोदी को न सिर्फ बेदाग बताते हुए क्लिन चिट दी, बल्कि इस मामले को उठाने वाले पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट, बी श्रीकुमार, सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और दंगे में 68 लोगों के साथ जिंदा जला दिए गए एहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी को दंडित करने के लिए कहा। फैसला आने के 24 घंटे के अंदर ही तीस्ता सीतलवाड़ और बी. श्रीकुमार को गिरफ्तार कर लिया गया। संजीव भट्ट एक कथित हत्या के मामले में बहुत पहले से ही जेल में हैं। उनकी जमानत अर्जी कई अदालतों से खारिज हो चुकी है।
सरकार का रुख
पिछले हफ्ते ही भारत ने इसकी निंदा की थी। उसने इसे प्रोपेगेंडा फिल्म बताया था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था- हमें लगता है कि यह देश को बदनाम करने के लिए बनाई गई। यह एक दुष्प्रचार है। इसमें पूर्वाग्रह है, निष्पक्षता की कमी और औपनिवेशिक मानसिकता स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। प्रवक्ता ने कहा कि डॉक्युमेंट्री उन व्यक्तियों का प्रतिबिंब है जो इस कहानी को फिर से पेश कर रहे हैं। सरकार ने इसके बाद इस फिल्म की शेयरिंग और स्क्रीनिंग सोशल मीडिया और खासकर यूट्यूब पर प्रतिबंधित कर दी। लेकिन इसका नतीजा उल्टा निकला। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस फिल्म की, गुजरात दंगे 2002 और पीएम मोदी की भूमिका पर चर्चा शुरू हो गई।