बिहार में चुनाव आयोग (ECI) द्वारा विशेष गहन संशोधन (SIR) के तहत मतदाता सूची से 65 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटाए जाने के बाद सामने आए डेटा के विश्लेषण में कई महत्वपूर्ण और असामान्य पैटर्न उजागर हुए हैं। द हिंदू की रिपोर्ट के आधार पर इस विश्लेषण में प्रमुख प्वाइंट्स को शामिल किया गया है।

असामान्य मृत्यु दर 

विश्लेषण में पाया गया कि 412 मतदान केंद्रों पर प्रति केंद्र 100 से अधिक मृत्यु दर्ज की गईं। उदाहरण के लिए: - पूर्णिया, बनमनखी के आदर्श मध्य विद्यालय में 181 लोगों को मृत्यु दिखाया गया। इनमें 97 पुरुष, 84 महिलाएं हैं। इनकी औसत आयु 54 से लेकर 9 वर्ष तक है।

भागलपुर में राजकीय पॉलिटेक्निक टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी में 165 लोगों को मृत्यु दिखाया गया। जिनमें 82 पुरुष, 83 महिलाएं हैंष औसत आयु 48 से 5 वर्ष है। 
सारन, मांझी में मध्य विद्यालय पोखर भिंडा में 162 लोगों को मृत्यु दिखाया गया। जिनमें 78 पुरुष, 84 महिलाएं हैं। इनकी औसत आयु 68 से 4 साल है। 
युवा मतदाताओं की मृत्यु: 80 मतदान केंद्रों पर 50 से अधिक मृत्यु दर्ज की गईं, जिनमें से आधे से अधिक लोग 50 वर्ष से कम आयु के थे। यह आबादी के रुझानों के विपरीत है, क्योंकि सामान्य रूप से कम आयु वर्ग में मृत्यु दर कम होती है। यह सवाल उठाता है कि क्या इन डिलीट नामों में कोई त्रुटि थी या जानबूझकर टारगेट किया गया है। 
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डेटा की विश्वसनीयता: इतनी कम समय में इतनी बड़ी संख्या में मृत्यु की पुष्टि कैसे की गई, यह एक बड़ा सवाल है। विशेषज्ञों का मानना है कि मृत्यु प्रमाणपत्रों की जांच और स्थानीय स्तर पर सत्यापन में पारदर्शिता की कमी हो सकती है।

जेंडर असंतुलन

मतदाता सूची से हटाए गए नामों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से काफी अधिक थी। खास तौर पर, "स्थायी रूप से स्थानांतरित" श्रेणी में 62.6% महिलाएं हैं, जबकि पुरुष सिर्फ 37.4% हैं। इसी तरह 18-29 वर्ष आयु वर्ग में, हटाए गए मतदाताओं में महिलाओं की संख्या पुरुषों से तीन गुना थी। 30-49 वर्ष आयु वर्ग में, यह अनुपात दो गुना था।

सामाजिक संदर्भ

बिहार में पुरुषों का पलायन (मुख्य रूप से रोजगार के लिए) महिलाओं की तुलना में अधिक आम है। फिर भी, डेटा में महिलाओं को अधिक "स्थानांतरित" के रूप में चिह्नित करना असामान्य और संदिग्ध है। यह संभावना जताई जा रही है कि सत्यापन प्रक्रिया में जेंडर भेदभाव या त्रुटियां हो सकती हैं।

ट्रांसफर के असामान्य रुझान

कुछ मतदान केंद्रों पर असामान्य रूप से बड़ी संख्या में मतदाता "स्थायी रूप से स्थानांतरित" के रूप में हटाए गए। उदाहरण के लिए गोपालगंज में नवसृजित प्राथमिक विद्यालय निरंजना में 641 नाम हटाए गए, जिनमें 599 स्थानांतरित और 39 मृत्यु के रूप में दर्ज किए गए। गोपालगंज अंगनबाड़ी केंद्र जांगी राय के टोला में 627 नाम हटाए गए, सभी स्थानांतरित के रूप में। भोजपुर, शाहपुर के उत्क्रमित मध्य विद्यालय बहुदारी में 605 नाम हटाए गए (539 स्थानांतरित, 46 मृत्यु)।
ऐसे में सवाल है कि इतनी बड़ी संख्या में स्थानांतरण की पुष्टि कैसे की गई? क्या इन मतदाताओं को नोटिस दिया गया था, और क्या उन्हें आपत्ति दर्ज करने का मौका मिला? डेटा में यह भी संकेत मिलता है कि कुछ क्षेत्रों में स्थानांतरण की दर सामान्य  आबादी रुझानों से मेल नहीं खाती।

मुस्लिम-बहुल जिलों पर प्रभाव

विश्लेषण में पाया गया कि मुस्लिम-बहुल जिलों में मतदाता सूची से नाम हटाने की दर अधिक थी। यह विशेष रूप से पूर्णिया, कटिहार, और किशनगंज जैसे जिलों में देखा गया। विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे "टारगेट" करके हटाना करार दिया है। जिसमें दावा किया गया है कि यह प्रक्रिया अल्पसंख्यक समुदायों को मताधिकार से वंचित करने की कोशिश हो सकती है। यह आरोप SIR को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की तरह एक छिपे हुए उपाय के रूप में देखा जा रहा है।

डेटा और पारदर्शिता की कमी

ECI ने दावा किया है कि हटाए गए मतदाताओं में 22.34 लाख मृतक, 36.28 लाख स्थायी रूप से स्थानांतरित या अनट्रेसेबल, और 7.01 लाख डुप्लिकेट मतदाता थे। हालांकि, इन आंकड़ों की पुष्टि के लिए सत्यापन प्रक्रिया का विवरण सार्वजनिक नहीं किया गया है। ECI का दावा है कि कोई भी नाम बिना नोटिस और सुनवाई के नहीं हटाया गया, लेकिन कई प्रभावित मतदाताओं ने शिकायत की है कि उन्हें कोई सूचना नहीं मिली। 

सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह प्रक्रिया हाशिए पर रहने वाले समुदायों, जैसे दलित, मुस्लिम, और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को प्रभावित कर सकती है, जो पहले से ही मतदान प्रक्रिया में कम भागीदारी करते हैं। बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले यह प्रक्रिया मतदाता आधार को बदल सकती है, जिसका असर कुछ क्षेत्रों में चुनाव परिणामों पर पड़ सकता है।
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अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर 2025 को प्रकाशित होगी। इससे पहले, ECI को सभी हटाए गए नामों की सूची और कारणों को सार्वजनिक करना होगा। प्रभावित मतदाताओं को अपनी आपत्तियां दर्ज करने और मतदाता सूची में पुनः शामिल होने का अवसर दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट और सिविल सोसाइटी इस प्रक्रिया पर कड़ी नजर रख रहे हैं। बिहार SIR प्रक्रिया में सामने आए असामान्य पैटर्न जैसे युवा मतदाताओं की उच्च मृत्यु दर, महिलाओं का अधिक हटाया जाना और मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में असमान प्रभाव ने गंभीर सवाल खड़े किए हैं। यह प्रक्रिया न केवल तकनीकी, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।