बिहार की तरह मतदाता सूची का विशेष गहन संशोधन यानी एसआईआर पूरे देशभर में जल्द शुरू होने वाला है। ऐसा संकेत चुनाव आयोग की तैयारियों से मिलता है। बिहार के मॉडल पर आधारित इस प्रक्रिया में पुरानी मतदाता सूचियाँ खंगाली जा रही हैं और हर वोटर की जानकारी की कड़ी जांच होगी। 

इसकी तैयारियों के तहत विभिन्न राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों यानी सीईओ ने अपनी-अपनी वेबसाइटों पर पुरानी मतदाता सूचियों को प्रकाशित करना शुरू कर दिया है। इसका मकसद मतदाता सूचियों की सटीकता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना है, ताकि आगामी चुनावों में किसी भी तरह की गड़बड़ी से बचा जा सके। इस कदम को चुनाव आयोग की उस संवैधानिक ज़िम्मेदारी का हिस्सा माना जा रहा है जो मतदाता सूचियों की शुद्धता को बनाए रखने से जुड़ी है। ईटी ने रिपोर्ट दी है कि चुनाव आयोग बिहार की तर्ज पर पूरे देश में विशेष गहन संशोधन शुरू करने की योजना बना रहा है और यह प्रक्रिया अगस्त 2025 से शुरू हो सकती है। रिपोर्ट के अनुसार निर्वाचन आयोग ने सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को SIR की तैयारी शुरू करने के लिए अनौपचारिक रूप से निर्देश दिए हैं।
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क्या है SIR?

विशेष गहन संशोधन यानी SIR एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मतदाता सूचियों को गहनता से जाँचा जाता है ताकि उनमें दर्ज मतदाताओं की जानकारी को अपडेट और सत्यापित किया जा सके। यह प्रक्रिया बिहार में पहले से चल रही है, जहाँ 2003 की मतदाता सूची को आधार बनाकर मतदाताओं के विवरण की जाँच की जा रही है। 

चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को बिहार में SIR शुरू करने की घोषणा की थी, और अब इसे पूरे देश में लागू करने की तैयारी है। इसका संकेत कई राज्यों में पुरानी मतदाता सूचियों को सार्वजनिक किए जाने से भी मिलता है। माना जा रहा है कि यह इस दिशा में पहला कदम है, ताकि लोग अपनी जानकारी आसानी से जांच सकें।

पुरानी मतदाता सूचियों का प्रकाशन

कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अपनी वेबसाइटों पर उस साल की मतदाता सूची प्रकाशित की है, जब उनके यहां आखिरी बार गहन संशोधन हुआ था-
  • दिल्ली: दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने 2008 की मतदाता सूची को अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया है।
  • उत्तराखंड: उत्तराखंड ने 2006 की मतदाता सूची प्रकाशित की है, जो उस साल के गहन संशोधन के बाद तैयार की गई थी।
  • हरियाणा: हरियाणा सीईओ ने भी 2002 की इंटेंसिव रिविजन वाली मतदाता सूची को अपलोड किया है। 
  • बिहार: बिहार में 2003 की मतदाता सूची को आधार बनाया गया है।
अधिकांश राज्यों में आखिरी गहन संशोधन 2002 से 2004 के बीच हुआ था। इन पुरानी सूचियों को सार्वजनिक करने का मकसद मतदाताओं को यह मौका देना है कि वे अपने नाम, पते, और अन्य जानकारियों की जाँच कर सकें। अगर कोई ग़लती है तो उसे ठीक करवाने के लिए आवेदन किया जा सकता है।
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कैसी होगी SIR प्रक्रिया?

SIR प्रक्रिया बिहार में लागू किए गए मॉडल की तरह ही होगी-
  • बूथ लेवल ऑफिसर्स यानी BLO: प्रत्येक मतदान केंद्र पर बूथ लेवल ऑफिसर्स नियुक्त किए जाएंगे, जो घर-घर जाकर मतदाताओं की जानकारी सत्यापित करेंगे। कई राज्यों ने इन अधिकारियों की भर्ती और प्रशिक्षण शुरू कर दिया है।
  • गणना फॉर्म: मतदाताओं की जानकारी को सत्यापित करने के लिए पहले से छपे हुए फॉर्म का उपयोग होगा। इनमें मतदाताओं को उनकी जन्म तिथि के आधार पर तीन श्रेणियों में बांटा जाएगा - 1987 से पहले जन्मे, 1987 से 2004 तक जन्मे, और 2004 के बाद जन्मे।
  • सत्यापन प्रक्रिया: मतदाताओं को दस्तावेज दिखाने पड़ सकते हैं। यह सुनिश्चित करेगा कि सूची में केवल सही और पात्र मतदाताओं के नाम ही रहें।

क्यों जरूरी है SIR?

निर्वाचन आयोग का कहना है कि मतदाता सूचियों में सटीकता और पारदर्शिता बनाए रखना उसकी संवैधानिक ज़िम्मेदारी है। समय के साथ मतदाता सूचियों में कई ग़लतियां हो सकती हैं, जैसे:
  • मृतक व्यक्तियों के नाम अभी भी सूची में होना।
  • एक ही व्यक्ति का नाम कई जगहों पर दर्ज होना।
  • गलत पते या उम्र का दर्ज होना।
  • फ़र्ज़ी मतदाताओं के नाम शामिल होना।

SIR पर सवाल क्यों?

हालांकि SIR का मकसद मतदाता सूचियों को साफ करना है, लेकिन इस प्रक्रिया को लेकर कुछ चिंताएं भी सामने आई हैं। बिहार में शुरू हुई इस प्रक्रिया पर विपक्षी नेताओं और कुछ जानकारों का कहना है कि घर-घर सत्यापन के दौरान कुछ वास्तविक मतदाताओं के नाम गलती से हटाए जा सकते हैं, खासकर उन लोगों के, जो प्रवासी मजदूर हैं या जिनके पास नागरिकता साबित करने वाले दस्तावेज नहीं हैं। इसके अलावा, पुरानी मतदाता सूचियों को आधार बनाने से उन लोगों को परेशानी हो सकती है, जिनके नाम बाद में जोड़े गए।
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कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल जैसे विपक्षी दलों ने बिहार में इस प्रक्रिया को असंवैधानिक करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को मतदान के अधिकार से वंचित करने की साजिश है। 

बिहार में एसआईआर के तहत मतदाताओं से जन्म प्रमाण पत्र और माता-पिता के पहचान दस्तावेज जैसे अतिरिक्त दस्तावेज मांगे गए, जो पहले कभी अनिवार्य नहीं थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया के समय और दस्तावेजों की मांग पर सवाल उठाए, लेकिन इसे पूरी तरह रद्द करने से इनकार कर दिया। हालाँकि, अदालत ने सलाह दी है कि ज़रूरी दस्तावेजों में चुनाव आयोग को आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को शामिल करना चाहिए। बहरहाल, अब यह तय नहीं है कि पूरे देश में जो एसआईआर की प्रक्रिया होगी, उसमें किन दस्तावेज़ों को मान्य माना जाएगा।