loader

बीजेपी नेता अमिताभ सिन्हा ने क्यों कहा, 'वह नहीं हैं गोडसे विरोधी'?

बीजेपी के नेता बार-बार क्यों गोडसे के समर्थन में खड़े हो जाते हैं? वे कभी उसे आतंकवादी मानने से इनकार कर देते हैं, कभी उसे मुर्दाबाद कहने से इनकार कर देते हैं, तो कभी उसका कोई नेता गोडसे को देशभक्त बता देता है? ऐसा भूल से होता है या यह बीजेपी की रणनीति का एक हिस्सा है?

गोडसे पर घिरे बीजेपी नेता

ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि बीजेपी एक बार फिर महात्मा गाँधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की वजह से एक बार फिर चर्चा में है। शुक्रवार को एक टेलीविज़न चैनल पर बहस के दौरान बीजेपी नेता अमिताभ सिन्हा ने कहा कि वे गोडसे विरोधी नहीं हैं। 

देश से और खबरें
जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और अब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता कन्हैया कुमार के साथ एक बहस में अमिताभ सिन्हा उलझ गए। सिन्हा बार बार खुद को देशभक्त और राष्ट्रवादी बता रहे थे और साम्यवाद पर हमले कर रहे थे। कन्हैया कुमार उनसे पूछ रहे थे कि वे मुसोलिनी और हिटलर पर क्या राय रखते हैं, राष्ट्रवादी तो वे भी थे। इस पर अमिताभ सिन्हा ने सोवियत संघ के पूर्व नेता स्टालिन और चीन के पूर्व नेता माओ त्से तुंग का नाम उठाया और कन्हैया पर तंज किए। कन्हैया ने कहा कि वे 'स्टालिन मुर्दाबाद' कहते हैं और माओ का समर्थन नहीं करते। 
कन्हैया कुमार ने अमिताभ सिन्हा से पूछा कि वह गोडसे विरोधी हैं या नहीं। इस पर अमिताभ सिन्हा ने जोर देकर कहा, ‘नहीं हैं! नहीं हैं!’
एक और दूसरी बहस में संबित पात्र इस पर घिर गए थे गोडसे आतंकवादी था या नहीं। उन्होंने गोडसे को आतंकवादी कहने से साफ़ इनकार कर दिया था।
मालेगांव बम धमाकों की आरोपी और बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताया था। प्रज्ञा ठाकुर ने संसद में चर्चा के दौरान गोडसे को देशभक्त बताया था। प्रज्ञा ठाकुर को कुछ दिन पहले ही संसद की रक्षा समिति में जगह दी गई थी। प्रज्ञा ठाकुर इन दिनों जमानत पर हैं। 
एसपीजी बिल पर चर्चा के दौरान डीएमके सांसद ए. राजा ने नाथूराम गोडसे के बयान का हवाला देते हुए कहा था कि गोडसे ने महात्मा गाँधी की हत्या क्यों की, तभी प्रज्ञा ठाकुर ने उन्हें रोका और कहा कि आप एक देशभक्त का उदाहरण नहीं दे सकते।
जिस नलिन कुमार कतील को महात्मा गाँधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के पक्ष में बयान देने के लिए बीजेपी ने खिंचाई की थी उन्हें ही बाद में कर्नाटक बीजेपी का प्रमुख बना दिया गया था। यानी गोडसे के पक्ष में बोलने के बावजूद कतील की पदोन्नति हुई थी।

हेगड़े ने भी की थी तारीफ़

तब इस मामले में प्रज्ञा के नाथूराम गोडसे के बयान की बीजेपी के वरिष्ठ नेता और और केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े ने तारीफ़ की थी। उन्होंने साध्वी प्रज्ञा के बयान को सही ठहराते हुए कहा था, ‘मैं खुश हूँ कि क़रीब 7 दशक बाद आज की नई पीढ़ी इस मुद्दे पर चर्चा कर रही है और साध्वी प्रज्ञा को इस पर माफ़ी माँगने की ज़रूरत नहीं है।’

हेगड़े ने ट्वीट किया था कि अब समय है कि आप मुखर हों और माफ़ी माँगने से आगे बढ़ें, अब नहीं तो कब।’ उनके इस बयान पर बवाल होने के बाद हेगड़े ने कहा था कि उनका ट्विटर अकाउंट हैक हो गया था और ट्वीट के लिए ख़ेद जताया था।

साक्षी महाराज ने भी बताया था देशभक्त

बीजेपी सांसद साक्षी महाराज ने दिसंबर 2014 में कहा था, 'गोडसे एक देशभक्त था। गाँधीजी ने भी देश के लिए कई अच्छे काम किए।' गोडसे को देशभक्त कहने पर संसद में भी हंगामा मचा था। कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि ऐसे बयानों के लिए बीजेपी ज़िम्मेदार है। हालाँकि विवाद खड़ा होने के बाद साक्षी महाराज अपने बयान से पलट गए। 

उन्होंने दावा किया कि उन्होंने गोडसे को कभी भी राष्ट्रभक्त नहीं बताया था। बीजेपी नेता और संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने तब कहा था कि सरकार महात्मा गाँधी के हत्यारे को किसी तरह का समर्थन नहीं दे रही है। बता दें कि साक्षी महाराज आरएसएस से जुड़े रहे हैं।
बीजेपी के सोशल मीडिया के प्रमुख अमित मालवीय ने भी एक बार ट्वीट कर नाथूराम गोडसे के बचाव किया था।
मालवीय 5 जनवरी 2015 को अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया था: एम. के. गाँधी की हत्या के पीछ नाथूराम गोडसे की अपने वजहें रही होंगी। निष्पक्ष समाज को उसकी बात भी सुननी चाहिए।
सवाल यह उठता है कि बीजेपी के ये नेता क्या भूल से कुछ कह बैठते हैं, या यह पार्टी की रणनीति का हिस्सा है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि गोडसे के मुद्दे को बीच-बीच में उठाते रहना बीजेपी-आरएसएस की रणनीति है। वह इसके ज़रिए धीरे-धीरे देश में एक नैरेटिव बनाना चाहते हैं, जिसमें हिन्दू-मुसलिम एकता के पैरोकार गाँधी को खलनायक के रूप में पेश किया जाए। 
इसी रणनीति के तहत बीजेपी विभाजन के लिए गाँधी को ज़िम्मेदार ठहराती रहती है, जबकि सावरकर की भूमिका को नज़रअंदाज कर देती है। इसके जरिए आरएसएस हिन्दू राष्ट्र के लक्ष्य के नज़दीक पहुँचने की कोशिश में है और उसके अनुकूल वातावरण बनाने की तैयारी कर रही है। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें