मोदी सरकार 20 अगस्त बुधवार को तीन बिल पेश करने जा रही है। जिसमें प्रावधान है कि 30 दिनों तक अगर कोई पीएम, सीएम या मंत्री किसी आरोप में जेल में रहता है तो उसे पद छोड़ना होगा। विपक्ष ने इस बिल का कड़ा विरोध किया है। जानिए क्योंः
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बुधवार 20 अगस्त को लोकसभा में तीन प्रमुख विधेयक पेश करने वाले हैं। जिनमें प्रस्ताव है कि यदि किसी मौजूदा मंत्री, मुख्यमंत्री या यहां तक कि प्रधानमंत्री को पांच साल या उससे अधिक की जेल की सजा वाले अपराध के लिए लगातार 30 दिनों तक गिरफ्तार या हिरासत में रखा जाता है, तो उन्हें एक महीने के भीतर अपना पद गंवाना पड़ सकता है। विपक्ष को सरकार की नीयत पर शक है और उसने कड़ा विरोध शुरू कर दिया है।
तीनों बिल में क्या है
लोकसभा में सरकारी सूची से पता चला है कि केंद्र बुधवार को निचले सदन में तीन विधेयक - संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक और संघ राज्य क्षेत्र सरकार (संशोधन) विधेयक - पेश करेगा। सरकारी कामकाज की सूची में तीनों विधेयकों को पेश किए जाने के बाद संयुक्त संसदीय समिति को भेजने के प्रस्ताव पर विचार करने का भी उल्लेख है। तीनों विधेयक एक पूरी तरह से नए कानूनी ढाँचे का प्रस्ताव करते हैं जो जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों, तथा केंद्र में केंद्रीय मंत्रियों और प्रधानमंत्री पर लागू होगा। निश्चित रूप से, इन विधेयकों में यह भी सुझाव दिया गया है कि बर्खास्त मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को हिरासत से रिहा होने के बाद फिर से नियुक्त किया जा सकता है।इन बिलों के संबंध में जो संशोधन विधेयक तैयार किया गया है, उसके मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 75 में एक नया 5(ए) खंड प्रस्तावित किया गया है। इसमें कहा गया है कि "कोई मंत्री, जो पद पर बने रहने के दौरान लगातार तीस दिनों की किसी भी अवधि के लिए, किसी भी कानून के तहत अपराध करने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है और हिरासत में लिया जाता है, जो कि पांच साल या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय है, उसे ऐसी हिरासत में लिए जाने के बाद, इकतीसवें दिन प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा उसके पद से हटा दिया जाएगा।"
सरकार की नीयत पर विपक्ष को शक, कड़ा विरोध
विपक्ष ने एक सुर में तीनों विधेयक का कड़ा विरोध कर दिया है। कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि वह विपक्षी दलों को कमजोर करने के लिए संसद में तीन नए विधेयक लाने की तैयारी कर रही है। कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र पर हमला और विपक्ष को अस्थिर करने की साजिश करार दिया है।
कांग्रेस ने दावा किया कि ये विधेयक केंद्र सरकार की ओर से एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा हैं, जिसका उद्देश्य विपक्षी नेताओं को निशाना बनाना और उनकी सरकारों को अस्थिर करना है। पार्टी ने इसे 'वोटर अधिकार यात्रा' जैसे विपक्षी आंदोलनों से जनता का ध्यान हटाने की कोशिश बताया। कांग्रेस के प्रवक्ता ने कहा, "यह कदम न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है, बल्कि यह विपक्ष को कमजोर करने और सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने की केंद्र की हताश कोशिश को दर्शाता है।"
कांग्रेस ने इन विधेयकों को 'लोकतंत्र पर हमला' करार देते हुए कहा कि यह कदम विपक्षी नेताओं को फंसाने और उनकी सरकारों को गिराने के लिए लाया जा रहा है। पार्टी ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर रही है और विपक्षी दलों को कमजोर करने के लिए जांच एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है।
कांग्रेस ने अपने बयान में कहा कि हाल के वर्षों में कई विपक्षी नेताओं को कथित तौर पर राजनीतिक बदले की भावना से निशाना बनाया गया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी का हवाला देते हुए कांग्रेस ने कहा कि केंद्र सरकार विपक्षी नेताओं को हिरासत में लेकर उनकी सरकारों को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है।
अभिषेक मनु सिंघवी की प्रतिक्रिया
वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने X पर पोस्ट किया, "यह कैसा दुष्चक्र है! गिरफ़्तारी के लिए किसी दिशा-निर्देश का पालन नहीं किया गया! विपक्षी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ अनियंत्रित और अनुपातहीन हैं।" (विपक्ष के नेताओं की पिछली गिरफ्तारियों पर टिप्पणी ) उन्होंने आगे कहा, "विपक्ष को अस्थिर करने का सबसे अच्छा तरीका पक्षपाती केंद्रीय एजेंसियों को विपक्षी मुख्यमंत्रियों को गिरफ़्तार करने के लिए लगाना है और उन्हें चुनावी तौर पर हराने में नाकाम रहने के बावजूद, मनमाने ढंग से गिरफ़्तार करके उन्हें हटाना है!! और सत्तारूढ़ दल के किसी भी मौजूदा मुख्यमंत्री को कभी छुआ तक नहीं!!"
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इन विधेयकों के खिलाफ एकजुट होकर संसद के अंदर और बाहर विरोध करने की योजना बनाई है। पार्टी ने कहा कि वह इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाएगी और केंद्र की इस "अलोकतांत्रिक" कार्रवाई का पर्दाफाश करेगी।
टीएमसी के साकेत गोखले की प्रतिक्रिया
टीएमसी के राज्यसभा सांसद साकेत गोखले ने प्रस्तावित बिल पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने एक्स पर कहा- वोट चोरी का पर्दाफ़ाश होने पर मोदी-शाह नए हथकंडे अपना रहे हैं। आज एक नया विधेयक लाया जा रहा है जिससे सीबीआई-ईडी सीधे भाजपा के लिए राज्य सरकारों को गिरा सकेंगी। कोई व्यक्ति तभी अपराधी होता है जब उसे अदालत द्वारा दोषी ठहराया जाता है। तब तक, वह "आरोपी" ही रहता है। आप किसी मुख्यमंत्री/मंत्री को सिर्फ़ आरोप के आधार पर नहीं हटा सकते। मोदी-शाह की केंद्रीय एजेंसियों द्वारा गिरफ़्तारी दोषसिद्धि का प्रमाण नहीं है। दिलचस्प तथ्य: पिछले 11 सालों में भाजपा के किसी भी केंद्रीय/राज्य मंत्री की गिरफ़्तारी नहीं हुई है। सारी गिरफ़्तारियाँ सिर्फ़ विपक्षी नेताओं की हुई हैं।
केजरीवाल की प्रतिक्रिया
पीटीआई के मुताबिक दिल्ली के पूर्व सीएम अरविन्द केजरीवाल ने भी इस बिल की कड़े शब्दों में निन्दा की है। उन्होंने कहा कि इस बिल की आड़ में विपक्ष शासित सरकारों को निशाना बनाया जाएगा। कल को ये लोग ममता बनर्जी (पश्चिम बंगाल), पी विजयन (केरल) आदि को इस कानून की आड़ में निशाना बनाएंगे। जनता की प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया पर भी लोगों ने इस पर कड़ा ऐतराज जताया है। लोगों ने लिखा है कि यह एक ऐसा तेज़ रफ़्तार तरीका है जिससे करोड़ों खर्च किए बिना किसी भी स्थिर सरकार को गिराया जा सकता है। इससे राज्यों के राज्यपाल और केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल किसी भी मुख्यमंत्री या मंत्री को बर्खास्त कर सकेंगे, अगर उन्हें 30 दिनों तक जेल में रखा गया हो, भले ही वे दोषी न भी हों। यह संशोधन प्रधानमंत्री पर भी लागू होता है - लेकिन क्या कोई क़ानूनी एजेंसी उस व्यक्ति को गिरफ्तार करने की हिम्मत कर सकती है जो उन्हें नियंत्रित करता है? नहीं अगर, नहीं लेकिन, बस बर्खास्त करो और अपनी सरकार बनाओ, धन्यवाद विश्वगुरु मोदी जी।