जब ट्रंप और चीन के बीच टैरिफ़ युद्ध तेज़ हो रहा है, तब चीन ने 85,000 भारतीयों को वीज़ा देकर क्या संदेश दिया है? क्या यह अमेरिका के खिलाफ कूटनीतिक रणनीति है या भारत-चीन संबंधों का नया अध्याय?
डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर जब टैरिफ़ की तलवार लटकाई, तो बीजिंग ने एक ऐसा दांव चला जिसने सबको चौंका दिया। चीन ने 'भारतीय मित्रों' के लिए 85 हज़ार वीजा जारी किए और वीजा नियमों को अभूतपूर्व रूप से आसान कर दिया। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह भारत के साथ दोस्ती की नई शुरुआत है या ट्रंप के आर्थिक हमले से बचने की चीनी चाल? क्या भारत चीन के लिए सिर्फ़ एक बाज़ार है, या फिर यह क़दम एक गंभीर कूटनीतिक संबंध का हिस्सा है?
इसे समझने से पहले यह जान लेते हैं कि आख़िर इन वीजा को लेकर चीन ने क्या कहा है। चीन ने इस साल 9 अप्रैल तक 85 हज़ार से अधिक भारतीय नागरिकों को वीजा जारी किए हैं, और इसे 'भारतीय मित्रों' के लिए एक स्वागत योग्य क़दम बताया है। चीन का यह क़दम तब सामने आया है जब ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में विदेशी आयात पर कड़े टैरिफ़ लागू किए हैं। चीन से आयात पर टैरिफ़ को 145% तक बढ़ाने और कनाडा व मैक्सिको जैसे अन्य देशों पर 25% टैरिफ़ की घोषणा ने वैश्विक व्यापार में हलचल मचा दी है। जवाब में चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर 125% टैरिफ़ लगाकर पलटवार किया है। इस व्यापार युद्ध ने वैश्विक सप्लाई चेन को प्रभावित किया है।
इस तनावपूर्ण माहौल में चीन का भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना कई मायनों में अहम है। अमेरिका द्वारा चीनी उत्पादों पर भारी टैरिफ़ ने चीन के लिए अमेरिकी बाज़ार में अपनी पकड़ बनाए रखना मुश्किल कर दिया है। ऐसे में भारत जैसे विशाल और तेज़ी से बढ़ते बाज़ार की ओर रुख करना चीन के लिए एक रणनीतिक क़दम हो सकता है।
चीन ने न केवल भारतीयों के लिए 85 हज़ार वीजा जारी किए, बल्कि वीजा प्रक्रिया को भी सरल बनाया है। अब भारतीय आवेदकों को ऑनलाइन अपॉइंटमेंट की ज़रूरत नहीं है, बायोमेट्रिक डेटा से छूट दी गई है और वीजा शुल्क को भी कम कर दिया गया है। चीनी राजदूत जू फेइहोंग ने भारतीयों से चीन की यात्रा करने और 'खुले, सुरक्षित, और दोस्ताना' चीन का अनुभव करने की अपील की है।
यह क़दम भारत-चीन संबंधों में सुधार का संकेत देता है। हाल के वर्षों में खासकर 2020 की गलवान घाटी हिंसा के बाद, दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर था। लेकिन हाल ही में सीमा पर गश्त को लेकर समझौते, सीधी उड़ान सेवाओं की बहाली और पत्रकारों व बुद्धिजीवियों के लिए वीजा जैसे क़दमों ने संबंधों में गर्मजोशी लाने का प्रयास दिखाया है।
कुछ इसे केवल दोस्ती का क़दम मानने से हिचक रहे हैं। कुछ का मानना है कि ट्रंप की टैरिफ़ नीतियों ने चीन को मजबूर किया है कि वह अपने आर्थिक हितों को सुरक्षित करने के लिए नए साझेदारों की तलाश करे।
भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है और इसके पास विशाल उपभोक्ता बाजार है, यह चीन के लिए एक आकर्षक विकल्प बन सकता है। इसके अलावा, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के कारण कई अमेरिकी कंपनियाँ अपनी उत्पादन इकाइयों को चीन से भारत जैसे देशों में स्थानांतरित करने पर विचार कर रही हैं, जिससे भारत की रणनीतिक स्थिति और मज़बूत होती है।
चीन के लिए भारत न केवल एक उपभोक्ता बाजार है, बल्कि एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार भी है। 2018-19 में भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 52 अरब डॉलर था, जो हाल के वर्षों में कुछ कम हुआ है। 2020 में, भारत से चीन को निर्यात 18 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो 2017-18 में 13 अरब डॉलर था। यह दिखाता है कि भारत का निर्यात बाजार चीन के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है, खासकर तब जब अमेरिकी बाजार तक उसकी पहुंच सीमित हो रही है।
चीन का यह क़दम पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ आर्थिक सहयोग को मज़बूत करने की दिशा में भी देखा जा सकता है। चीनी दूतावास के प्रवक्ता यू जिंग ने कहा कि 'चीन-भारत आर्थिक और व्यापारिक संबंध म्यूच्यूअल लाभ पर आधारित हैं।' यह बयान इस बात का संकेत देता है कि चीन भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों को मज़बूत करके टैरिफ़ युद्ध के प्रभावों को कम करने की कोशिश कर रहा है।
हालांकि चीन का यह क़दम सकारात्मक लगता है, लेकिन भारत-चीन संबंधों का इतिहास उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। 1962 के युद्ध से लेकर हाल के गलवान और तवांग विवादों तक, दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी एक बड़ी चुनौती रही है। चीन की ओर से अरुणाचल प्रदेश में स्थानों का नामकरण और भारतीय पत्रकारों को वीजा देने से इनकार जैसे क़दमों ने पहले तनाव को बढ़ाया है।
इसके बावजूद विदेश सचिव विक्रम मिसरी की चीन यात्रा और कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली जैसे हाल के कूटनीतिक प्रयास संबंधों को सामान्य करने की दिशा में अहम क़दम हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सुधार केवल हालातों की वजह से है या यह एक दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है?
माना जा रहा है कि ट्रंप प्रशासन का दबाव चीन को भारत के साथ संबंध बेहतर करने के लिए प्रेरित कर रहा है, ताकि वह कई मोर्चों पर तनाव से बच सके।
भारत ने इस स्थिति में एक संतुलित और संयमित रुख अपनाया है। अमेरिका के साथ भारत के मज़बूत संबंध और चीन के साथ बढ़ता आर्थिक सहयोग इसे एक अनूठी स्थिति में ला खड़ा करता है। भारत ने ट्रंप की टैरिफ़ नीतियों का लाभ उठाने की कोशिश की है। जानकारों का मानना है कि यदि भारत सही रणनीति अपनाए तो वह अमेरिकी बाज़ार में अपनी पकड़ मज़बूत कर सकता है।
इसके बावजूद भारत के लिए यह आसान राह नहीं है। चीन के साथ व्यापार घाटा अभी भी एक चुनौती है और बहुत अधिक निर्भरता भारत के लिए जोखिम भरा हो सकता है। इसके अलावा चीन की कूटनीतिक चालें अक्सर दीर्घकालिक रणनीतियों वाली होती हैं। इसलिए यह बेहतर होगा कि भारत सावधानीपूर्वक आगे बढ़े।
चीन का 85 हज़ार भारतीयों को वीजा जारी करना और वीजा प्रक्रिया को सरल बनाना निश्चित रूप से एक सकारात्मक क़दम है, लेकिन इसके पीछे की मंशा को समझना ज़रूरी है। अमेरिका-चीन टैरिफ़ युद्ध ने चीन को नए बाज़ारों और साझेदारों की तलाश के लिए मजबूर किया है और भारत इस नज़रिए से एक बेहतर विकल्प हो सकता है। यह क़दम भारत-चीन संबंधों में सुधार की दिशा में एक क़दम हो सकता है, लेकिन यह कितना टिकाऊ होगा, यह भविष्य की कूटनीति और वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।