भारत के CJI बीआर गवई की मां कमल गवई ने आरएसएस शताब्दी कार्यक्रम में शामिल होने से इनकार कर दिया। आखिर उनके इस फ़ैसले के पीछे क्या वजह है और इसका क्या राजनीतिक संदेश है?
भारत के मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई की मां डॉ. कमल गवई ने आरएसएस के शताब्दी समारोह में अमरावती में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होने से इनकार कर दिया है। उन्होंने अपने और अपने दिवंगत पति के खिलाफ की गई गलत टिप्पणियों पर दुख जताया और कहा कि उन्होंने अपना पूरा जीवन डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के विचारों और विपासना आंदोलन को समर्पित किया है। डॉ. गवई ने जोर देकर कहा कि अगर वे ऐसे किसी मंच पर जातीं भी, तो भी वे केवल आंबेडकर के विचारों और संविधान के मूल्यों के बारे में ही बात करतीं।
86 वर्षीय डॉ. कमल गवई ने एक पत्र में अपनी अंबेडकरवादी विचारधारा का हवाला देते हुए कहा कि वे इस कार्यक्रम में भाग नहीं लेंगी। यह विवाद सोमवार से ही सोशल मीडिया और राजनीतिक हलकों में छाया हुआ है, जहां आरएसएस के निमंत्रण को लेकर विरोधाभासी बयान सामने आ रहे हैं।
आरएसएस की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में 2 अक्टूबर को नागपुर में सरसंघचालक मोहन भागवत का मुख्य संबोधन होगा, जबकि अमरावती में 5 अक्टूबर को श्रीमती नरसम्मा महाविद्यालय मैदान पर आयोजित कार्यक्रम में वरिष्ठ आरएसएस नेता जे. नंदा कुमार मुख्य वक्ता होंगे। आरएसएस के अमरावती महानगर इकाई ने कमल गवई को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था और निमंत्रण पत्र भी छापकर वितरित कर दिए गए थे। इसके बाद यह मुद्दा राजनीतिक रंग ले चुका है, जिसमें परिवार के सदस्यों के बयान भी आए।
कमल गवई का पत्र
पत्र में कमल गवई ने विवाद की शुरुआत का ज़िक्र करते हुए कहा कि जैसे ही कार्यक्रम की खबरें सामने आईं, कई लोगों ने न केवल उन पर, बल्कि उनके स्वर्गीय पति दादासाहेब गवई पर भी आलोचना और आरोप लगाने शुरू कर दिए। कमल गवई ने अपने पत्र में बताया कि कुछ लोगों ने उन्हें 5 अक्टूबर के कार्यक्रम में आमंत्रित किया था।
उन्होंने कहा कि मैं हर किसी के प्रति शुभकामनाएं रखती हूं और सभी का स्वागत करती हूं। हालांकि, जैसे ही इस कार्यक्रम की खबर प्रकाशित हुई, न केवल उनके, बल्कि उनके दिवंगत पति, पूर्व बिहार राज्यपाल रामेश्वर शर्मा गवई पर भी आलोचना और आरोपों की बौछार शुरू हो गई।
कमल गवई ने साफ़ किया कि उन्होंने और उनके पति ने डॉ. बी.आर. आंबेडकर की विचारधारा के अनुसार जीवन जिया है। उन्होंने लिखा, 'हमने अपनी जिंदगी डॉ. आंबेडकर की विचारधारा के अनुसार बिताई, जबकि दादासाहेब गवई ने अपना पूरा जीवन आंबेडकरवादी आंदोलन को समर्पित कर दिया। विभिन्न विचारधाराओं के मंचों पर अपनी विचारधारा को साझा करना भी महत्वपूर्ण है, जिसके लिए साहस की जरूरत होती है।'
डॉ. कमल गवई ने कहा कि उनके पति जानबूझकर विपरीत विचारधारा वाले संगठनों के कार्यक्रमों में भाग लेते थे और वंचित वर्गों के मुद्दों को उठाते थे। दादासाहेब गवई ने आरएसएस के कार्यक्रमों में भाग लिया, लेकिन उन्होंने कभी भी संघ की हिंदुत्व विचारधारा को स्वीकार नहीं किया।
कमल गवई ने कहा, "अगर मैं 5 अक्टूबर के आरएसएस कार्यक्रम में मंच पर होती, तो मैं आंबेडकरवादी विचारधारा को ही रखती।" लेकिन एक कार्यक्रम के कारण उनके और उनके दिवंगत पति पर आरोपों और मानहानि की कोशिशों से वे बेहद दुखी हुईं। उन्होंने लिखा, "चूंकि एक कार्यक्रम के कारण मेरा और मेरे दिवंगत पति का अपमान करने की कोशिश की जा रही है, इसलिए मैं बहुत दुखी हूं और इस विवाद को समाप्त करने के लिए कार्यक्रम में भाग नहीं ले रही हूं।"
उन्होंने अपने पत्र में यह भी उल्लेख किया कि वे वर्तमान में बीमार हैं और चिकित्सा उपचार से गुजर रही हैं, जो उनके इस निर्णय को प्रभावित करने वाला एक फ़ैक्टर हो सकता है।
परिवार के सदस्यों के बयान पर विवाद
विवाद की शुरुआत 29 सितंबर को हुई जब सीजेआई के छोटे भाई डॉ. राजेंद्र गवई ने एएनआई को बताया कि "मां ने आरएसएस के 5 अक्टूबर के कार्यक्रम में भाग लेने की सहमति दे दी है। यह मुख्य कार्यक्रम नहीं है, जो 2 अक्टूबर को नागपुर में होगा। व्यक्तिगत संबंध और राजनीतिक संबंध अलग हैं। हम अपनी विचारधारा को कभी नहीं छोड़ते।" राजेंद्र ने वीडियो बयान जारी कर कहा कि वे खुद भी निमंत्रण स्वीकार कर चुके हैं और परिवार सभी विचारधाराओं का सम्मान करता है।
राजेंद्र गवई ने साफ तौर से कहा था कि उनकी मां को निमंत्रण मिला है और उन्होंने उसे स्वीकार भी किया है। उन्होंने यह भी बताया कि संघ के कार्यक्रमों में इससे पहले नागपुर में रिपब्लिकन पार्टी के दिग्गज नेता दादासाहेब गवई और राजाभाऊ खोब्रागडे भी शामिल हुए थे। उन्होंने इसे अपने परिवार की परंपरा बताया। डॉ. राजेंद्र गवई ने आगे कहा था कि उनके परिवार के संबंध कांग्रेस की इंदिरा गांधी और विदर्भ के गंगाधर फडणवीस जैसे नेताओं से भी घनिष्ठ रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि ये संबंध व्यक्तिगत स्तर पर रहे, परंतु विचारधारा हमेशा अलग रही।
बहरहाल, कमल गवई का यह निर्णय न केवल व्यक्तिगत स्तर पर लिया गया कदम है, बल्कि आंबेडकरवादी विचारधारा और आरएसएस की विचारधारा के बीच बढ़ते तनाव को भी दिखाता है। इस घटना ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में व्यापक चर्चा शुरू कर दी है और आने वाले दिनों में इस पर और प्रतिक्रियाएं देखने को मिल सकती हैं।