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पुलिस बिना सबूत के ही तब्लीग़ियों पर केस क्यों दर्ज कर रही थी?

पिछले हफ़्ते ही बॉम्बे हाई कोर्ट का विदेशी तब्लीग़ियों के पक्ष में फ़ैसला आने के बाद अब दिल्ली की एक अदालत ने तब्लीग़ी जमात के आठ सदस्यों को रिहा करते हुए कहा है कि इनके ख़िलाफ़ 'प्रथम दृष्टया कोई भी सबूत नहीं' है। इस बीच मुंबई पुलिस ने भी सबूतों के अभाव में दिल्ली में तब्लीग़ी जमात कार्यक्रम में भाग लेने आए इंडोनेशिया के 12  नागरिकों के ख़िलाफ़ ग़ैर-इरादतन हत्या के अभियोग को हटा लिया है। कई दूसरे मामलों में भी सबूत नहीं होने की बात कही गई है। इससे सवाल उठता है कि क्या पुलिस ने आँख बंद कर बिना सबूत के ही इन तब्लीग़ियों के ख़िलाफ़ अनाप-शनाप केस दर्ज कर लिए थे। क्या पुलिस ऐसे केस दर्ज कर 'भीड़' की फ़ेक न्यूज़, सोशल मीडिया पर नफ़रत फैलाने वाले अभियान का हिस्सा बन गयी थी? आख़िर बॉम्बे हाई कोर्ट को क्यों कहना पड़ा कि तब्लीग़ी जमात के कार्यक्रम में शिरकत करने विदेश से आए लोगों को कोरोना संक्रमण फैलने के मामले में 'बलि का बकरा’ बनाया गया?

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यह पूरा मामला मार्च के महीने में दिल्ली के निज़ामुद्दीन स्थित तब्लीग़ी जमात के मरकज़ में एक कार्यक्रम से जुड़ा हुआ है। इसमें देश-विदेश से हज़ारों लोगों ने शिरकत की थी। कार्यक्रम ख़त्म होने पर बड़ी संख्या में आए भारतीय तो अपने-अपने राज्यों में लौट गए थे लेकिन लॉकडाउन लागू हो जाने के कारण विदेशों से आए लोग मरकज़ में ही फँसे रह गए थे। उस कार्यक्रम में शामिल होने वाले कुछ लोगों में कोरोना संक्रमण की रिपोर्ट आई तो मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने का अभियान शुरू हो गया। सोशल मीडिया के ज़रिए जमकर दुष्प्रचार किया गया। आरोप लगाया गया कि सरकार कोरोना के आँकड़े भी धर्म के आधार पर जारी कर रही है और इससे नफ़रत का माहौल बना।

ऐसे माहौल में ही पुलिस ने तब्लीग़ी जमात के सदस्यों के ख़िलाफ़ अलग-अलग धाराओं में धड़ाधड़ केस दर्ज करने शुरू कर दिए थे। अब इन्हीं मामलों में जब अदालतों में सुनवाई शुरू हुई तो मामले टिक नहीं रहे हैं। पुलिस सबूत भी नहीं ढूँढ पा रही है।

कोर्ट द्वारा यह कहा जाना कि सबूत नहीं है, इसका मतलब क्या यह नहीं है कि पुलिस ने किसी दबाव में उनपर केस दर्ज किया और उनको गिरफ़्तार किया होगा?

अब दिल्ली के ही अदालत द्वारा 8 लोगों को आरोपों से मुक्त करने के मामले को देखिए। मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट गुरमोहन कौर ने आठों सदस्यों को डिस्चार्ज करते हुए कहा, 'जमा की गई पूरी चार्जशीट और दस्तावेज़ न तो मरकज़ में उनकी उपस्थिति दिखाते हैं और न ही कोई भागीदारी। रिकॉर्ड पर कोई दस्तावेज़ भी नहीं है जिससे लगे कि वह तब्लीग़ के काम में शामिल प्रतिभागियों में से एक था जैसे कि आरोप हैं...। यहाँ तक ​​कि इस अदालत की कार्यवाही आगे बढ़ाने के लिए अभियुक्तों के ख़िलाफ़ कुछ प्रथम दृष्टया सबूत होना चाहिए, जो नहीं है...।'

तब्लीग़ी जमात के प्रचार-प्रसार में शामिल होने के आरोपों पर दिल्ली के कोर्ट ने कहा, 'वास्तव में कोई सबूत नहीं है जिससे लगे कि मौजूद अभियुक्त किसी भी तरह से तब्लीग़ी जमात के सिद्धांतों और सिद्धांतों का प्रचार कर रहे थे या कथित तौर पर तब्लीग़ी के काम में लिप्त थे। आरोपपत्र में इस तथ्य पर कुछ भी नहीं है और उस रजिस्टर, जिस पर अभियोजन पक्ष भरोसा करता है, उसमें केवल तब्लीग़ी जमात में उनकी उपस्थिति या उपस्थिति के तथ्य को पुष्टि करता है, लेकिन यह कहीं नहीं दर्शाता है कि अभियुक्त ने वीज़ा मैनुअल में उल्लिखित शर्तों का उल्लंघन किया था।'

बता दें कि दिल्ली पुलिस ने तब्लीग़ी जमात के क़रीब साढ़े नौ सौ विदेशी सदस्यों के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया था। उनमें से अधिकतर कोर्ट में याचिका लगाकर और अनुमति लेकर अपने-अपने देश चले गए। लेकिन 44 दिल्ली में ही रुककर ट्रायल का सामना कर रहे हैं। इन्ही में से आठ को दिल्ली के साकेत कोर्ट ने सोमवार को रिहा कर दिया। बाक़ी के 36 को भी विदेशी अधिनियम की धारा 14 और आईपीसी की धारा 270 और 271 के तहत पहले ही रिहा किया जा चुका है। हालाँकि वे अभी भी महामारी अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम और अन्य आईपीसी धाराओं के तहत आरोपों का सामना कर रहे हैं।

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पुलिस ने ग़ैर इरादतन हत्या का आरोप क्यों हटाया?

मुंबई की बांद्रा पुलिस ने तब्लीग़ी जमात के 12 इंडोनेशियाई सदस्यों के ख़िलाफ़ लगाए गए ग़ैर इरादतन हत्या के आरोपों को हटा लिया है। ये सभी कोरोना नेगेटिव आए थे और शुरुआत में इनके ख़िलाफ़ दो धाराएँ लगाई गई थीं। इनमें से एक धारा के तहत दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास की सज़ा भी हो सकती है। ये धाराएँ इसलिए लगाई गई थीं क्योंकि उस मरकज़ में शामिल होने के कारण उन पर आरोप लगाए गए थे कि वे कोरोना वायरस फैलाने के लिए ज़िम्मेदार थे। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' को बताया कि चूँकि यह आरोप लगाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं पाया गया कि हत्या और हत्या के प्रयास वाली धारा के आरोपों में वे शामिल थे या नहीं, इसलिए उन आरोपों को हटा दिया गया है।

हालाँकि सबूत के अभाव में गंभीर धाराएँ हटा दी गईं, लेकिन सभी 12 इंडोनेशियाई लॉकडाउन नियमों, वीज़ा की शर्तों और महामारी रोग अधिनियम की धाराओं के उल्लंघन के मामले में अन्य आरोपों का सामना करेंगे।

'बलि का बकरा बनाया गया'

इससे पहले पिछले हफ़्ते ही बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ ने अदालत ने इस संबंध में केंद्र सरकार, महाराष्ट्र सरकार और मीडिया के रवैये की सख़्त आलोचना करते हुए विदेश से आए 29 जमातियों के ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर को भी रद्द कर दिया। यह एफ़आईआर महाराष्ट्र पुलिस द्वारा टूरिस्ट वीज़ा नियमों और शर्तों के कथित तौर पर उल्लंघन को लेकर दर्ज की गई थी। 

इस दौरान कोर्ट ने  कहा, 'राजनीतिक सत्ता किसी भी महामारी या आपदा के दौरान कोई बलि का बकरा खोजती है और मौजूदा हालात इस बात को दिखाते हैं कि इन विदेशियों को बलि का बकरा बनाया गया है। जबकि पहले के हालात और भारत में कोरोना संक्रमण से संबंधित ताज़ा आँकड़े यह दिखाते हैं कि इन लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।’ अदालत ने यह भी कहा, 'हमें इसे लेकर पछतावा होना चाहिए और इन लोगों को हुए नुक़सान की भरपाई के लिए कुछ सकारात्मक क़दम उठाने चाहिए।’

उन्हें अपने देश लौटने का अधिकार: मद्रास हाई कोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में 31 विदेशी नागरिकों के ख़िलाफ़ आपराधिक कार्यवाही बंद करने का निर्देश दिया है। उन पर वीज़ा शर्तों का उल्लंघन कर दिल्ली में मार्च में हुई तब्लीग़ी जमात की बैठक में भाग लेने के आरोप में फॉरेनर्स एक्ट के तहत कार्यवाही हो रही थी। कोर्ट की बेंच ने कहा, ‘चूँकि याचिकाकर्ताओं ने क़ानून के उल्लंघन के कारण पहले ही पर्याप्त रूप से कष्ट उठा लिया है, और चिकित्सा आपातकाल की स्थिति है, इसलिए याचिकाकर्ताओं को जल्द से जल्द अपने मूल देशों को लौटने का अधिकार है।’

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सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

इधर पटना में चल रहे तब्लीग़ी जमात के केस के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से इस पर जवाब देने को कहा है कि क्यों न सभी मामले की एक साथ सुनवाई की जाए। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने कहा कि मानवीय आधार पर इन केसों पर एक साथ सुनवाई की जानी चाहिए। इसका केंद्र सरकार की तरफ़ से पेश सॉलिसिटर जनरल ने इस आधार पर विरोध किया कि इससे कई दिक्कतें बढ़ जाएँगी। बता दें कि 6 अगस्त को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि तब्लीग़ी जमात के कार्यक्रम में शामिल होने वाले विदेशी नागरिकों के ख़िलाफ़ जारी लुकआउट नोटिस को वापस ले लिया गया है। 

बहरहाल, इन सभी मामलों में या तो कोर्ट ने सबूत नहीं होने की बात कही है या फिर पुलिस ने ही केस दर्ज करने के बाद सबूत नहीं होने पर केस हटा लिया है। तो सवाल यही उठता है कि मार्च और अप्रैल महीने में तब्लीग़ियों और इनके माध्यम से पूरे मुसलिम समाज को निशाना क्यों बनाया गया? यह नफ़रत किसने फैलाई और वे लोग अब कहाँ हैं जो तब तब्लीग़ियों के ख़िलाफ़ अनाप-शनाप कुछ भी बोले जा रहे थे?

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क़मर वहीद नक़वी
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