तिब्बती बौद्ध धर्म के सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने अपने 90वें जन्मदिन से ठीक पहले अपने उत्तराधिकारी की चयन प्रक्रिया को लेकर बड़ा ऐलान किया है। उन्होंने साफ़ किया कि उनके रेनकार्नेशन और उत्तराधिकारी के चयन का एकमात्र अधिकार उनकी ग़ैर-लाभकारी संस्था ‘गदेन फोद्रांग ट्रस्ट’ के पास होगा। इस बयान ने चीन को तिलमिला दिया है। इसने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चुनने के लिए चीन सरकार की मंजूरी ज़रूरी है। इस विवाद ने तिब्बती बौद्ध धर्म और क्षेत्रीय राजनीति को लेकर नई बहस छेड़ दी है। 

धर्मशाला में दलाई लामा ने तिब्बती बौद्ध समुदाय को आश्वस्त किया कि 600 साल पुरानी दलाई लामा की परंपरा उनके निधन के बाद भी जारी रहेगी। उन्होंने कहा, 'मैं यह साफ़ करता हूँ कि दलाई लामा की संस्था निरंतर बनी रहेगी। भारत में स्थित गदेन फोद्रांग ट्रस्ट को मेरे रेनकार्नेशन की पहचान करने का एकमात्र अधिकार होगा। इसमें किसी अन्य की कोई भूमिका नहीं होगी।'
उन्होंने यह भी संकेत दिया कि उनका उत्तराधिकारी तिब्बत के बाहर जन्म ले सकता है और यह ज़रूरी नहीं कि वह पुरुष ही हो। यह बयान तिब्बती बौद्ध परंपराओं के अनुसार है, जिसमें पुनर्जन्म की प्रक्रिया में लिंग या राष्ट्रीयता की कोई बाध्यता नहीं है। दलाई लामा के क़रीबी सहयोगी और गदेन फोद्रांग ट्रस्ट के वरिष्ठ अधिकारी सामधोंग रिनपोछे ने बताया कि दलाई लामा अभी स्वस्थ हैं और उन्होंने उत्तराधिकारी के चयन के लिए कोई लिखित निर्देश अभी तक जारी नहीं किए हैं।

चीन की प्रतिक्रिया

दलाई लामा के इस ऐलान के कुछ ही घंटों बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने तीखी प्रतिक्रिया दी। प्रवक्ता माओ निंग ने बीजिंग में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "दलाई लामा, पंचेन लामा और अन्य प्रमुख बौद्ध हस्तियों के पुनर्जन्म का चयन ‘स्वर्ण कलश’ (गोल्डन अर्न) से लॉटरी निकालकर और केंद्रीय सरकार की मंजूरी के साथ होना चाहिए। यह प्रक्रिया चीन के कानूनों, धार्मिक रीति-रिवाजों और ऐतिहासिक परंपराओं के अनुसार होनी चाहिए।”

चीन का यह दावा 18वीं सदी में किंग राजवंश द्वारा शुरू की गई परंपरा पर आधारित है, जिसमें प्रमुख लामाओं के चयन के लिए स्वर्ण कलश का उपयोग किया जाता था। हालाँकि, तिब्बती समुदाय इस प्रक्रिया को चीन द्वारा तिब्बत पर नियंत्रण बढ़ाने का एक राजनीतिक हथियार मानता है।

माओ निंग ने यह भी कहा कि तिब्बती बौद्ध धर्म 'चीन में जन्मा है और इसमें चीनी विशेषताएँ हैं।' इसे तिब्बती समुदाय ने धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला करार दिया।

धर्मशाल में शरण लिए हुए हैं दलाई लामा

दलाई लामा का असली नाम तेनजिन ग्यात्सो है। वह 1959 में तिब्बत में चीनी सैन्य दमन के बाद भारत में शरण लेने को मजबूर हुए थे। तब से वे हिमाचल प्रदेश की धर्मशाला में निर्वासित तिब्बती सरकार के केंद्र में रह रहे हैं। चीन उन्हें विघटनकारी और अलगाववादी मानता है, जबकि दलाई लामा खुद को साधारण बौद्ध भिक्षु बताते हैं। वह शांति व अहिंसा के लिए विश्व स्तर पर सम्मानित हैं।
चीन ने 1951 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया था और 1959 में तिब्बत में हुए असफल विद्रोह को कुचलने के बाद दलाई लामा को भारत भागना पड़ा। तब से चीन तिब्बत के धार्मिक और सांस्कृतिक मामलों में हस्तक्षेप करता रहा है। 1995 में चीन ने पंचेन लामा के चयन में हस्तक्षेप किया और अपने चुने हुए उम्मीदवार को नियुक्त किया, जबकि दलाई लामा द्वारा चुने गए पंचेन लामा को ग़ायब कर दिया गया। तिब्बती समुदाय को डर है कि चीन दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन में भी ऐसा ही हस्तक्षेप करेगा।

तिब्बती समुदाय की चिंता

दलाई लामा के बयान ने तिब्बती समुदाय को राहत दी है, क्योंकि उनकी बढ़ती उम्र (6 जुलाई 2025 को 90 साल) के कारण उत्तराधिकारी के मुद्दे पर अनिश्चितता थी। लेकिन चीन के दावे ने तनाव बढ़ा दिया है। जानकारों का कहना है कि यदि चीन अपना अलग दलाई लामा नियुक्त करता है तो इससे तिब्बती बौद्ध धर्म में विभाजन हो सकता है। निर्वासित तिब्बती प्रशासन के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. लोबसांग सांगाय ने कहा, 'चीन का हस्तक्षेप सिर्फ़ धार्मिक नियंत्रण नहीं, बल्कि तिब्बत पर अपनी पकड़ मज़बूत करने की रणनीति है।'

निर्वासित तिब्बती प्रशासन के अध्यक्ष पेन्पा त्सेरिंग ने भी कहा है कि हम चीन के दखल को स्वीकार नहीं करेंगे, दलाई लामा की परंपरा तिब्बती बौद्ध धर्म की आत्मा है और इसका चयन केवल धार्मिक परंपराओं के आधार पर होगा।

भारत की भूमिका क्या?

दलाई लामा का यह बयान भारत के लिए भी एक कूटनीतिक जीत माना जा रहा है। गदेन फोद्रांग ट्रस्ट भारत में स्थित है और दलाई लामा के इस ऐलान ने धर्मशाला को तिब्बती आध्यात्मिक वैधता का केंद्र बना दिया है। माना जा रहा है कि यह क़दम चीन के प्रचार और समानांतर नियुक्तियों को रोकने में मदद करेगा।

भारत ने हमेशा दलाई लामा और तिब्बती समुदाय का समर्थन किया है और इस मुद्दे पर भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ सकता है। दलाई लामा ने पहले भी कहा था कि उनका उत्तराधिकारी भारत या किसी अन्य स्वतंत्र देश में जन्म ले सकता है, जिससे चीन का प्रभाव कम होगा।

क्या हो सकता है भविष्य में?

जानकारों का मानना है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन को लेकर दो हालात बन सकते हैं- 

दो दलाई लामा: चीन अपने चुने हुए उम्मीदवार को दलाई लामा घोषित कर सकता है, जिससे तिब्बती बौद्ध धर्म में विभाजन हो सकता है।

तिब्बती परंपराओं का पालन: गदेन फोद्रांग ट्रस्ट पारंपरिक बौद्ध रीति-रिवाजों के आधार पर उत्तराधिकारी का चयन करेगा।

दलाई लामा ने अपने बयान में यह भी कहा कि उनके उत्तराधिकारी का चयन विभिन्न तिब्बती बौद्ध परंपराओं के प्रमुखों और धर्म रक्षकों के परामर्श से होगा।

दलाई लामा का यह ऐलान तिब्बती बौद्ध धर्म की निरंतरता और स्वायत्तता के लिए एक ऐतिहासिक क़दम है। यह न केवल धार्मिक, बल्कि राजनीतिक और कूटनीतिक नज़रिए से भी अहम है। चीन का दावा और दलाई लामा का जवाब तिब्बत के भविष्य, धार्मिक स्वतंत्रता और भारत-चीन संबंधों पर गहरा असर डाल सकता है। जैसे-जैसे दलाई लामा का 90वां जन्मदिन नज़दीक आ रहा है, दुनिया की नज़रें इस विवाद पर टिकी हैं। क्या तिब्बती परंपराएँ जीतेंगी, या चीन अपनी मर्जी थोपेगा?