उत्तर भारत में प्रदूषण की समस्या दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है। दिल्ली और आसपास के इलाकों में जहरीली हवा की वजह से करोड़ों लोगों की ज़िंदगियाँ प्रभावित हो रही हैं। सांस की बीमारियाँ बढ़ गई हैं, अस्पतालों में मरीजों की भीड़ लगी है। स्कूल बंद करने पड़े, सड़कों पर वाहनों पर रोक लगानी पड़ी, लेकिन अफसोस की बात है कि संसद में इस बड़े मुद्दे पर कोई चर्चा तक नहीं हो सकी। संसद का शीतकालीन सत्र आज यानी 19 दिसंबर को खत्म हो गया, लेकिन प्रदूषण पर बातचीत का मौका ही नहीं मिला। इसके बजाय संसद में वंदे मातरम, मनरेगा का नाम बदलने और नेहरू को भला-बुरा कहने वाली पुरानी बातों पर बहस होती रही। तो क्या ज़हरीली और जानलेवा हवा को सरकार मुद्दा ही नहीं मान रही?

प्रदूषण पर चर्चा की उम्मीद थी, लेकिन नहीं हुई

सत्र के आखिरी दिनों में उम्मीद थी कि उत्तर भारत के प्रदूषण पर सांसद चर्चा करेंगे। पिछले हफ्ते राहुल गांधी ने दिल्ली के प्रदूषण पर जोरदार तरीके से आवाज उठाई थी। उन्होंने कहा था कि यह एक बड़ा मुद्दा है और इस पर तुरंत बहस होनी चाहिए। केंद्र सरकार ने भी इस पर सहमति जताई थी। लेकिन दिल्ली और एनसीआर के लोग जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं, फिर भी यह चर्चा नहीं हो सकी।
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केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को गुरुवार शाम 6 बजे लोकसभा में प्रदूषण पर जवाब देना था। लेकिन सदन दोबारा शुरू होने के एक घंटे बाद ही स्थगित हो गया। उस समय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान जी राम जी बिल पर बोल रहे थे और विपक्षी सांसद जोरदार नारेबाजी कर रहे थे। इस बीच बिल पास हो गया, लेकिन विपक्ष ने इसको लेकर सरकार पर हमला किया। फिर आधी रात को राज्यसभा में भी यह बिल पास हो गया। इस बीच प्रदूषण की चर्चा रद्द हो गई।

विपक्ष ने उठाई थी मांग

चर्चा से पहले कई कांग्रेस नेताओं ने संसद में स्थगन प्रस्ताव दिया था। वे दिल्ली के प्रदूषण पर तुरंत बहस चाहते थे। कन्याकुमारी के सांसद विजय वसंत ने तो केंद्र सरकार से अपील की कि दिल्ली-एनसीआर में राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया जाए। उन्होंने कहा कि शहर में घना स्मॉग छाया हुआ है, जो लोगों की सेहत को बर्बाद कर रहा है।
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दिल्ली की हवा कितनी खराब?

दिल्ली में 13 से 15 दिसंबर तक एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी एक्यूआई गंभीर और गंभीर प्लस स्तर पर रहा। 16 दिसंबर से थोड़ी राहत मिली, लेकिन अब फिर से एक्यूआई गंभीर के करीब पहुंच गया है। कई जगहों पर 400 से ज्यादा रीडिंग आ रही है। ऊपर से घना कोहरा स्थिति को और बदतर बना रहा है। इस वजह से स्कूल बंद करने पड़े, वाहनों पर पाबंदियां लगीं और लोगों को घरों में रहने की सलाह दी गई। अस्पतालों में सांस की बीमारियों के मरीज बढ़ गए हैं।

अब प्रदूषण पर चर्चा कम से कम 2026 के बजट सत्र से पहले नहीं हो सकेगी। तब तक सांसद फिर से बहस के लिए तैयार होंगे।

फिर इस सत्र में क्या हुआ?

संसद का शीतकालीन सत्र 1 दिसंबर को शुरू हुआ था। इस दौरान परमाणु ऊर्जा से जुड़ा बिल और ग्रामीण रोजगार से जुड़ा बिल जैसे कई अहम बिल पास हुए। संसद के शीतकालीन सत्र में वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ, मनरेगा को बदलकर VB-G RAM G बिल करने, नेहरू जी की पुरानी नीतियों जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई।

वंदे मातरम पर लंबी बहस: यह सत्र की शुरुआत में ही बड़ा मुद्दा बना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में बहस शुरू की। उन्होंने दावा किया कि वंदे मातरम आज़ादी की लड़ाई का नारा था, लेकिन कांग्रेस ने 1937 में मुस्लिम लीग के दबाव में गाने के कुछ हिस्सों को हटा दिया, जिससे देश बंटवारे की ओर गया। अमित शाह और जेपी नड्डा ने भी राज्यसभा में यही बात दोहराई। विपक्ष ने कहा कि यह बहस सिर्फ नेहरू जी को बदनाम करने के लिए थी, जबकि यह राष्ट्रीय गान की तरह पवित्र है।

मनरेगा का नाम बदलना: यह सबसे विवादास्पद रहा। सरकार ने मनरेगा को बदलकर नया VB-G RAM G बिल पास किया। लेकिन विपक्ष ने विरोध किया कि महात्मा गांधी का नाम हटाना ग़लत है, राज्य सरकारों पर बोझ बढ़ेगा और यह गरीबों के हक कम करेगा। बहस के दौरान हंगामा हुआ, कागज फाड़े गए, और बिल पास हो गया।

नेहरू जी की 'नाकामियां' पर हमले: वंदे मातरम की बहस में बार-बार नेहरू का ज़िक्र आया। सरकार ने नेहरू की जमकर आलोचना की। विपक्ष ने जवाब दिया कि यह फैसला कांग्रेस वर्किंग कमिटी का था, जिसमें गांधी जी, पटेल जी भी शामिल थे, सिर्फ नेहरू जी को क्यों निशाना बनाया जा रहा? इन मुद्दों पर घंटों बहस हुई, लेकिन ये ज्यादातर राजनीतिक और ऐतिहासिक थे।
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क्या इससे ज़्यादा ज़रूरी मुद्दे थे?

कई लोग यही मानते हैं कि इससे कहीं ज़्यादा ज़रूरी कई मुद्दे थे। दिल्ली का प्रदूषण तो इसमें सबसे बड़ा है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने चर्चा की मांग की, सरकार ने सहमति भी दी, लेकिन चर्चा नहीं ही हो पाई। भले ही सरकार ने जी राम जी बिल पास कराने के लिए संसद को आधी रात तक चलवाया। बेरोजगारी, महंगाई, मणिपुर की हिंसा, चुनाव सुधारों में धांधली के आरोप जैसे मुद्दे उठे, लेकिन कई मुद्दों पर पूरी चर्चा नहीं हुई।

सत्र खत्म होने के बाद क्या हुआ?

संसद स्थगित होने के बाद लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने दोनों पक्षों के सांसदों से मुलाकात की। तस्वीरों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी एक साथ चाय पीते नजर आए। सूत्रों के मुताबिक, पीएम मोदी और प्रियंका गांधी ने प्रियंका के निर्वाचन क्षेत्र वायनाड पर सकारात्मक बातचीत की। प्रियंका गांधी इस सत्र में विपक्ष की प्रमुख आवाज रहीं। अगर प्रदूषण पर चर्चा होती, तो वे विपक्ष की तरफ से इसे शुरू करतीं।
यह बेहद अफसोसजनक है कि इतने बड़े मुद्दे पर संसद में समय नहीं निकाला जा सका। प्रदूषण न सिर्फ दिल्ली बल्कि पूरे उत्तर भारत की सबसे बड़ी समस्या है। करोड़ों लोग इससे प्रभावित हैं, लेकिन राजनीतिक बहसों में यह पीछे छूट गया।