विख्यात अर्थशास्त्री, नोबल पुरस्कार से सम्मानित डॉ अमर्त्य सेन ने कहा है कि 2024 का चुनाव बीजेपी के पक्ष में एकतरफा नहीं होने जा रहा है। इस चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियों की खास भूमिका होगी। डॉ अमर्त्य सेन ने आज 14 जनवरी को न्यूज एजेंसी पीटीआई को लंबा इंटरव्यू दिया है। यह इंटरव्यू दो हिस्सों में है। पहले हिस्से में डॉ सेन ने 2024 के लोकसभा चुनाव और दूसरे हिस्से में नागरिकता कानून लाए बिना अल्पसंख्यकों की भूमिका को बीजेपी द्वारा खत्म किए जाने पर बात की गई है।
डॉ सेन ने पीटीआई से खास इंटरव्यू में कहा - मुझे लगता है कि 2024 आम चुनाव के लिए कई क्षेत्रीय दल साफतौर पर महत्वपूर्ण हैं। इनमें डीएके एक महत्वपूर्ण पार्टी है, तृणमूल निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है और समाजवादी पार्टी की कुछ स्थिति है लेकिन क्या इसे बढ़ाया जा सकता है, मुझे नहीं पता।
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एक सवाल पर डॉ अमर्त्य सेन ने कहा - बीजेपी के मुकाबले कोई पार्टी नहीं खड़ी हो सकती, सिर्फ इसी नजरिए को मान लेना गलत होगा। हालांकि बीजेपी ने खुद को हिन्दुओं की पार्टी के रूप में स्थापित किया है लेकिन इस वजह से बीजेपी को मजबूत मान लेने का नजरिया गलत होगा। क्षेत्रीय दलों के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। मोदी के मुकाबले ममता बनर्जी को बतौर पीएम प्रत्याशी के सवाल पर अमर्त्य सेन ने कहा- 
हालांकि तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी में भारत का अगला प्रधानमंत्री बनने की क्षमता है। लेकिन दूसरी ओर, यह अभी तक स्थापित नहीं हुआ है कि ममता बीजेपी के खिलाफ जनता की निराशा की ताकतों को एकजुट तरीके से खींच सकती हैं ताकि इसे संभव बनाया जा सके। लेकिन उनके पास भारत में राजनीतिक दलों की गुटबंदी को खत्म करने के लिए नेतृत्व है।
बता दें कि एनसीपी और जेडीयू सहित कई दलों के नेताओं ने 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस सहित एक नए गठबंधन का आह्वान किया है। उन्होंने जोर देकर यह बात कही कि एकजुट विपक्ष और बीजेपी का मुकाबला हो तो बीजेपी हार जाएगी।

डॉ सेन ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी इस इंटरव्यू में यह भी की है कि -
बीजेपी ने भारत के नजरिए को काफी हद तक तंग कर दिया है। इसने भारत की समझ और पहचान को सिर्फ हिंदू भारत और हिंदीभाषी भारत के रूप में इस तरह संकुचित कर दिया है कि अगर आज भारत में बीजेपी का कोई विकल्प नहीं है तो यह दुख की बात होगी।
अर्थशास्त्री ने बीजेपी को बहुत मजबूत बताए जाने के सवाल पर जवाब दिया। उन्होंने कहा - 
अगर बीजेपी मजबूत और शक्तिशाली दिखती है, तो इसमें कमजोरी भी है। इसलिए, मुझे लगता है कि अगर अन्य राजनीतिक दल वास्तव में कोशिश करते हैं तो वे बहस में आ पाएंगे। मैं विरोधी दलों को खारिज करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं मानता।
बता दें कि ममता बनर्जी की टीएमसी, के चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) ने 2019 के आम चुनाव के लिए फेडरल फ्रंट का गठन किया था। उसी साल जनवरी में तृणमूल प्रमुख द्वारा आयोजित एक भव्य बैठक में कोलकाता में जुटे तमाम नेताओं के बीच बातचीत हुई थी। जेडीएस नेता और कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, अरविंद केजरीवाल (आप), तमिलनाडु के एमके स्टालिन (डीएमके), अखिलेश यादव (सपा), शरद पवार (एनसीपी), जम्मू-कश्मीर के उमर अब्दुल्ला व फारूक अब्दुल्ला और अरुणाचल प्रदेश के गेगोंग अपांग पहुंचे थे।
अमर्त्य सेन ने 2024 के चुनाव जीतने की कांग्रेस की क्षमता के बारे में संदेह व्यक्त किया। उनका मानना ​​​​है कि कांग्रेस "कमजोर" हो गई है। लेकिन अखिल भारतीय नजरिया रखने वाली यही एकमात्र पार्टी है। डॉ सेन के शब्द हैं - 
ऐसा लगता है कि कांग्रेस बहुत कमजोर हो गई है और मुझे नहीं पता कि कोई कांग्रेस पर कितना भरोसा कर सकता है। दूसरी ओर, कांग्रेस निश्चित रूप से एक अखिल भारतीय नजरिया प्रदान करती है जिसे कोई अन्य पार्टी नहीं ले सकती है। पार्टी में भीतर से विभाजन हैं। यानी पार्टी बंटी हुई है।

अल्पसंख्यकों की भूमिका क्या होगी





अर्थशास्त्री डॉ अमर्त्यन सेन ने इस बात पर भी रोशनी डाली कि देश में आने वाले समय में अल्पसंख्यकों की क्या भूमिका हो सकती है। डॉ सेन ने कहा - जहां तक ​​​​मैं देख सकता हूं, भाजपा के उद्देश्यों में से एक (सीएए को लागू करके) अल्पसंख्यकों की भूमिका को कम करना और उन्हें कम महत्वपूर्ण बनाना है। वो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भारत में हिंदू बहुसंख्यक ताकतों की भूमिका को बढ़ाना चाहती है। 
उन्होंने कहा-
यह भारत जैसे देश के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है, जिसे एक धर्मनिरपेक्ष, समतावादी राष्ट्र माना जाता है। इसका इस्तेमाल विशेष रूप से दुर्भाग्यपूर्ण भेदभावपूर्ण कार्रवाई के लिए भी किया गया है, चाहे वह बांग्लादेश या पश्चिम बंगाल से अल्पसंख्यकों को स्वदेशी के बजाय विदेशी घोषित किया गया हो। यह बहुत ही अपमानजनक और मैं इसे मूल रूप से एक बुरा कदम मानूंगा।
यह पूछे जाने पर कि क्या बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने इन वर्षों में अपने प्रदर्शन में सुधार किया है। डॉ सेन ने जवाब दिया- मुझे नहीं लगता कि इसमें सुधार हुआ है। महात्मा गांधी ने एक समूह को दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश नहीं की। धार्मिक रूप से दृढ़ता से प्रतिबद्ध हिंदू होने के बावजूद, वह मुसलमानों को स्वतंत्रता से पहले उस समय की तुलना में बहुत अधिक देने के लिए तैयार थे।
डॉ अमर्त्य सेन ने पीटीआई से कहा-
मुझे लगता है कि महात्मा गांधी का कदम एक निष्पक्ष संस्कृति, एक न्यायपूर्ण राजनीति और राष्ट्रीय पहचान की अच्छी भावना के लिए था। किसी दिन, भारत को मुसलमानों जैसे अल्पसंख्यकों की उपेक्षा पर पछतावा होगा।
बता दें कि सीएए के जरिए केंद्र की बीजेपी सरकार बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय राष्ट्रीयता देना चाहती है। इसे 11 दिसंबर, 2019 को संसद द्वारा पारित किया गया था और अगले दिन राष्ट्रपति की मंजूरी प्राप्त हुई थी। इसके बाद गृह मंत्रालय ने इसे अधिसूचित किया था। हालाँकि, कानून को अभी लागू किया जाना बाकी है, क्योंकि सीएए के तहत नियम बनाए जाने बाकी हैं।