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पीएम मोदी ने उर्जित की तुलना 'पैसे के ढेर पर बैठे सांप' से की: पूर्व वित्त सचिव

मोदी सरकार 2019 के चुनाव से पहले आरबीआई के जमा पैसे के पीछे पड़ी थी। इस पर एक के बाद एक धमाके होते जा रहे हैं। पहला धमाका 2018 में तब हुआ था जब उर्जित पटेल ने इस्तीफ़ा दिया था। फिर डेप्युटी गवर्नर रहे विरल आचार्य ने धमाका किया। और अब पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने धमाका किया है। गर्ग ने कहा है कि 14 सितंबर, 2018 को बुलाई गई बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल पर अपना आपा खो दिया था और उनकी तुलना 'पैसे के ढेर पर बैठने वाले सांप' से कर दी थी।

पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने यह दावा अपनी पुस्तक 'वी आल्सो मेक पॉलिसी' में किया है। हार्पर कॉलिन्स द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक अक्टूबर में रिलीज़ होने वाली है। गर्ग ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि पटेल और तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली और प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा सहित अन्य सरकारी अधिकारियों के साथ लगभग दो घंटे तक प्रजेंटेशन और चर्चाओं को सुनने के बाद प्रधानमंत्री को कोई समाधान नहीं निकलता दिखा। गर्ग लिखते हैं कि उसी दौरान पीएम ने गहरी नाराजगी जताई। उन्होंने लिखा है कि उन्होंने पहली बार प्रधानमंत्री मोदी को उतने ग़ुस्से में देखा था। उस बैठक में तत्कालीन रेल मंत्री पीयूष गोयल, तत्कालीन अतिरिक्त प्रधान सचिव पी.के. मिश्रा, तत्कालीन डीएफएस सचिव राजीव कुमार, गर्ग और आरबीआई के तत्कालीन दो डिप्टी गवर्नर, विरल आचार्य और एन.एस. विश्वनाथन भी शामिल थे।

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ये विरल आचार्य वही हैं जिन्होंने हाल ही में उर्जित पटेल के इस्तीफे के पहले के घटनाक्रमों का खुलासा कर धमाका किया था। इसी महीने उन्होंने दावा किया था कि मोदी सरकार ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव पूर्व ख़र्च के लिए 2018 में 2-3 लाख करोड़ रुपये देने के लिए कहा था। उन्होंने तो ये भी दावा किया कि पूर्व की सरकारों के दौरान भी जमा रुपये को मोदी सरकार ने मांगा था। इन वजहों से सरकार और आरबीआई में टकराव की स्थिति बनी थी।

2017 से 2019 तक आरबीआई के डिप्टी गवर्नर के रूप में कार्य करने वाले विरल आचार्य ने दावा किया था कि रुपये देने से इनकार करने पर केंद्रीय बैंक और सरकार के बीच टकराव शुरू हो गया। उन्होंने अपनी पुस्तक, 'क्वेस्ट फॉर रिस्टोरिंग फाइनेंशियल स्टेबिलिटी इन इंडिया' की नई प्रस्तावना में ये दावे किए हैं। सबसे पहली बार यह किताब 2020 में छपी थी।

जब आरबीआई के तत्कालीन गर्वनर उर्जित पटेल और बाद में डेप्युटी गवर्नर रहे विरल आचार्य ने इस्तीफ़ा दिया था तब भी आरबीआई और सरकार के बीच टकराव और रुपये ट्रांसफर की ख़बरें आई थीं। 
आरबीआई गवर्नर का कार्यकाल सिर्फ़ 3 साल का होता है और उर्जित पटेल ने कार्यकाल पूरा होने के 9 महीने पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया था। विरल आचार्य ने तय समय से छह माह पहले इस्तीफ़ा दे दिया था।
बहरहाल, पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने अपनी किताब में उर्जित पटेल के इस्तीफे पर एक चैप्टर लिखा है और उसमें उन घटनाक्रमों का ज़िक्र है जो उनके इस्तीफ़े से पहले घटे थे। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार पूर्व वित्त सचिव ने लिखा है कि 'मुश्किल आर्थिक हालात और सरकार व आरबीआई के बीच काफी तनाव के बीच हुई बैठक में उर्जित पटेल ने कुछ सिफारिशें पेश कीं- सब कुछ सरकार को करने के लिए था और आरबीआई के लिए कुछ नहीं, सिवाय इसके कि वह पहले से ही जो कर रहा था।' उन्होंने किताब में आगे लिखा है, 'उस समय, पीएम ने अपना आपा खो दिया और उर्जित पटेल पर हमला कर दिया। मैंने उन्हें पहली बार इतने गुस्से में देखा था।' गर्ग लिखा है, 'उन्होंने उर्जित पटेल की तुलना धन के ढेर पर बैठे सांप से की, क्योंकि वह आरबीआई के जमा भंडार को किसी भी उपयोग में लेने देने के प्रति अनिच्छुक थे।' 
ex-finance secretary says pm modi compared urjit patel to snake - Satya Hindi

रिपोर्ट के अनुसार गर्ग ने किताब में लिखा है, 'उन्होंने कुछ गंभीर कड़वी बातें कीं। उन्होंने ऐसे कई विषय उठाए जहां आरबीआई की हठधर्मिता भारत को नुकसान पहुंचा रही थी। उन्होंने बरकरार रखे गए अधिशेष पैसे के मुद्दे को भी उठाया... उन्होंने एक पीएम के रूप में उर्जित पटेल को बिना निर्देश जारी किए, बोर्ड की बैठक बुलाने और अरुण जेटली और वित्त टीम के परामर्श से मुद्दों का समाधान खोजने के लिए कहा।'

गर्ग ने लिखा, '10 अगस्त, 2017 को आरबीआई की बोर्ड बैठक में आरबीआई बोर्ड सदस्य के रूप में मैंने पहली बैठक में भाग लिया था, जिसमें वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए आरबीआई अधिशेष के 44,200 करोड़ रुपये में से 13,400 करोड़ रुपये को बनाए रखने का प्रस्ताव रखा गया था।' आरबीआई ने बताया था कि वर्ष 2016-17 के लिए सरकार को अधिशेष के रूप में लगभग 30,000 करोड़ रुपये हस्तांतरण के लिए उपलब्ध होंगे। गर्ग ने कहा कि उन्होंने पिछले वर्षों की तर्ज पर अधिशेष का 100 प्रतिशत भारत सरकार को हस्तांतरित करने के लिए कहा था।

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गर्ग ने लिखा है कि उर्जित पटेल के प्रति सरकार की निराशा 12 फरवरी, 2018 को शुरू हुई जब वह बैंकिंग क्षेत्र के गैर-निष्पादित ऋणों यानी एनपीए से निपटने और इन डिफॉल्टरों को दिवाला और दिवालियापन संहिता के तहत समाधान के लिए लेने के लिए एक बेहद सख्त फॉर्मूलेशन लेकर आए थे। सरकार के साथ नीतिगत मतभेदों को लेकर पटेल ने आख़िरकार 10 दिसंबर, 2018 को आरबीआई गवर्नर के पद से इस्तीफा दे दिया था।

बता दें कि नोटबंदी जैसे फ़ैसले पर आलोचनाएँ झेलने के बाद भी पद पर बने रहने वाले उर्जित पटेल ने जब 2018 में इस्तीफ़ा दे दिया तो गंभीर सवाल पूछे जाने लगे कि कुछ न कुछ गड़बड़ है। उस दौरान जब आरबीआई के खज़ाने में मौजूद अतिरिक्त धन सरकार को दे देने का तत्कालीन वित्त मंत्रालय का प्रस्ताव आया तो सरकार के साथ खड़े रहने वाले उर्जित पटेल का विरोध चरम पर पहुँच गया था। टकराव बढ़ा तो सरकार ने अप्रत्‍याशित रूप से आरबीआई एक्ट के सेक्शन 7 को लागू कर दिया। यह वह सेक्शन है जो सरकार को आरबीआई के कामों में दख़लअंदाज़ी करने की छूट देता है।

ex-finance secretary says pm modi compared urjit patel to snake - Satya Hindi

उस दौर में आरबीआई में सरकार के दबाव का विरोध सिर्फ़ उर्जित पटेल ही नहीं कर रहे थे डिप्‍टी गवर्नर विरल आचार्य ने भी खुले रूप से सार्वजनिक मंचों से यह कहना शुरू कर दिया था कि केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता ख़त्म करने के परिणाम घातक हो सकते हैं।

आचार्य केंद्रीय बैंक के रिजर्व से ज़रूरत से ज़्यादा पैसा सरकार के पास ट्रांसफर करने को ख़तरनाक बताते थे और इस सम्बन्ध में अर्जेंटीना का उदाहरण भी देते थे कि कैसे वहाँ के बैंक ने 6.6 बिलियन डॉलर का ऐसा ही एक ट्रांसफर देकर उस देश के इतिहास की सबसे बड़ी संवैधानिक आपदा को जन्म दे दिया था।

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आचार्य ने दावा किया था कि नोटबंदी के साल के दौरान, नए बैंक नोटों की छपाई के खर्च ने केंद्र को किए गए हस्तांतरण को कम कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि इसके परिणामस्वरूप 2019 के चुनावों से पहले सरकार की धन की मांग तेज हो गई।

आचार्य ने पहली बार अक्टूबर 2018 में एक व्याख्यान में सरकार और आरबीआई के बीच टकराव को उजागर किया था। उन्होंने चेतावनी दी थी कि केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता को कम करना संभावित रूप से विनाशकारी हो सकता है, और कहा था कि जो सरकारें इसका सम्मान नहीं करती हैं, उन्हें देर-सबेर आर्थिक बाज़ार के कोप का सामना करना पड़ता है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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