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किसानों को विश्वास, कृषि क़ानून वापस लेगी सरकार?

किसान अड़े हैं। कृषि क़ानूनों को वापस लेने से कुछ भी कम स्वीकार नहीं है। हाँ और ना में जवाब चाहते हैं। इसका क्या मतलब है? किसानों में आत्मविश्वास दिखता है। शनिवार को पत्रकारों से ऑल इंडिया किसान सभा के महासचिव हन्नान मौला ने कहा, 'लगता है सरकार इन क़ानूनों के वापस लेगी।' किसानों को ऐसा विश्वास क्या इसलिए भी हो रहा है कि सरकार अपने स्तर पर किसानों को मनाने की तैयारी कर रही है? सरकार पर चौतरफ़ा दबाव है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दबाव पड़ने लगा है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो किसानों का समर्थन कर चुके हैं और भारत की तीखी प्रतिक्रिया के बावजूद वह अपनी बात पर कायम हैं। ब्रिटेन के भी कुछ सांसदों ने प्रयास शुरू किये हैं। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में किसान आंदोलन ख़बर बन रहा है।

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किसानों ने जब अपना रवैया और भी सख़्त कर लिया है और भारत बंद का आह्वान कर दिया है ऐसे में संसद के विशेष सत्र बुलाए जाने को लेकर सुगबुगाहट है। ऐसा तब है जब लोकसभा में कांग्रेस की तरफ़ से विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने स्पीकर ओम बिड़ला को किसानों के आंदोलन सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा के लिए पत्र लिखा है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने भी सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि किसानों के साथ गतिरोध को ख़त्म करने के लिए एक विकल्प के तौर पर संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने पर विचार किया जा रहा है। हालाँकि रिपोर्ट के अनुसार, स्पीकर के कार्यालय ने कहा है कि सरकारी तौर पर ऐसी कोई चर्चा नहीं हुई है। 

संसद के विशेष सत्र की सुगबुगाहट तब है जब अब तक किसानों के साथ चल रही वार्ता विफल रही है। अब तक पाँच दौर की वार्ता हो चुकी है। किसानों ने 8 दिसंबर को भारत बंद की चेतावनी दी है। किसानों के संगठन क़ानूनों को वापस लिए जाने पर अड़े हैं। 

केंद्र सरकार ने शनिवार को ही कहा है कि वह ठोस प्रस्ताव तैयार करेगी और 8 दिसंबर के भारत बंद के एक दिन बाद यानी 9 दिसंबर को कृषि संगठनों से बातचीत करेगी। छठे दौर की इस बातचीत के लिए किसान तैयार भी हो गए हैं।

बता दें कि किसानों और केंद्र सरकार के बीच दिल्ली के विज्ञान भवन में शनिवार को कई घंटों तक चली बैठक बेनतीजा रही। केंद्र सरकार अब कृषि क़ानूनों में संशोधन के लिए भी तैयार दिख रही है। लेकिन किसानों का साफ़ कहना है कि उन्हें इन तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने से कम पर कुछ भी मंजूर नहीं है। बैठक में किसान संगठनों के नेताओं के अलावा कृषि मंत्री तोमर, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल, उद्योग राज्य मंत्री सोम प्रकाश और कृषि महकमे के आला अफ़सर मौजूद रहे। 

कृषि क़ानूनों को वापस लेने के अलावा किसानों की यह भी मांग है कि एमएसपी पर क़ानून बनाया जाए, पराली जलाने से संबंधित अध्यादेश और बिजली बिल 2020 को भी वापस लिया जाए। 

वीडियो में देखिए, किसान आंदोलन पर क्या बीजेपी की ऐतिहासिक भूल?

बैठक के बाद किसान नेताओं ने कहा कि सरकार ने उनकी मांगों पर विचार करने के लिए और वक़्त मांगा है। इस बैठक में भी किसान नेताओं ने सरकार से कहा है कि उन्हें ये कृषि क़ानून किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं हैं। किसानों ने सरकार से कहा कि वह हां या ना में जवाब दे कि वह इन क़ानूनों को रद्द करेगी या नहीं। 

बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा, ‘आज कई विषयों पर बातचीत हुई। हम लोग चाहते थे कि कुछ विषयों पर हमें सुझाव मिल जाएँ लेकिन बातचीत के दौरान यह संभव नहीं हो सका।’ तोमर ने किसान नेताओं से अपील की कि वे बच्चों और बुजुर्गों से धरना स्थल से घर जाने के लिए कहें। 

farmers protest may force center to repeal farm laws - Satya Hindi
किसानों के साथ सरकार की इस बैठक से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों के मुद्दों पर अपने मंत्रिमंडल से चर्चा की थी। बैठक में गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल मौजूद रहे थे।
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अमित कुमार सिंह
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