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फाइल फोटो

हेट स्पीच के आरोपियों से होगा समान कानूनी व्यवहार : सुप्रीम कोर्ट

देश में बढ़ती हेट स्पीच और इससे जुड़े अपराध के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट में  शुक्रवार को सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि हेट स्पीच के मामले में आरोपी चाहे किसी भी पक्ष का हो उसके साथ समान कानूनी व्यवहार किया जाएगा। ऐसे लोगों से कानूनी तरीके से निपटा जाएगा। 
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इसमें हाल ही में  नूंह-गुरुग्राम सांप्रदायिक हिंसा के बाद मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार के लिए कुछ समूहों द्वारा किए गए आह्वान के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाली याचिका भा शामिल है। 

लाईव लॉ वेबसाइट की एक रिपोर्ट के मुताबिक सुनवाई को दौरान न्यायमूर्ति संजीन खन्ना ने स्पष्ट रूप से कहा कि हेट स्पीच देने वालों पर कानून अपराधी की पहचान की परवाह किए बिना लागू होगा। उन्होंने कहा कि हम बहुत स्पष्ट हैं। चाहे वह एक पक्ष हो या दूसरा पक्ष, उनके साथ एक जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए। यदि कोई किसी ऐसी चीज में शामिल होता है जिसे हम 'नफरत फैलाने वाला' के रूप में जानते हैं तो उनसे कानून के मुताबिक निपटा जाएगा।  

शुक्रवार को हुई इस सुनवाई में जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि हमें बिहार में जातिगत जनगणना से जुड़े मुद्दे पर सुनवाई करनी है। हेट स्पीच पर हम 25 अगस्त को अगली सुनवाई करेंगे। इसके बाद मामले की सुनवाई 25 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी गई।बिहार में जातिगत जनगणना के खिलाफ दायर याचिका पर भी जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच सुनवाई कर रही है।

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हेट स्पीच और हेट क्राइम पूरी तरह से अस्वीकार्य है

इससे पहले हेट स्पीच के मामले पर 11 अगस्त को हुई सुनवाई में कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस तरह के मामले से निपटने के लिए एक समिति बनाने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हेट स्पीच और हेट क्राइम रोकना आवश्यक है और ये पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं। हेट स्पीच और हेट क्राइम को रोकने के लिए एक मैकेनिज्म बनाना जरूरी है। कोर्ट ने कहा था कि हमें इस समस्या का हल निकालना होगा।
हरियाणा के नूंह में सांप्रदायिक हिंसा के बाद कुछ हिंदू संगठनों की  महापंचायत में बुलाई गई थी। इस महापंचायत में मुस्लिमों के आर्थिक बहिष्कर की बात कही गई थी। इसके  खिलाफ पिछले दिनों पत्रकार शाहीन अब्दुल्ला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इसमें कोर्ट से मांग की गई थी कि वह खुलेआम नफरत भरे भाषणों पर रोक लगाने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दे।

नफरती भाषण रोकने के लिए 101 महिला वकीलों ने लिखा पत्र 

इससे पहले गुरुवार को नूंह हिंसा के बाद हरियाणा में मुस्लिमों के आर्थिक बहिष्कार जैसे नफरती भाषणों को रोकने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट की महिला वकीलों के फोरम ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ को एक पत्र भेजा था। इसमें मांग की गई है कि नूंह सहित हरियाणा के विभिन्न स्थानों में नफरत भरे भाषण हाल के दिनों में दिए गए हैं। इसके वीडियो सोशल मीडिया पर चल रहे हैं। इन वीडियो में मुस्लिमों के आर्थिक बहिष्कार जैसी नफरती बातें कही गई हैं। इन महिला वकीलों ने मांग की है कि इन नफरती भाषण के वीडियो को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट तत्काल हस्तक्षेप करे।  

101 महिला वकीलों के हस्ताक्षर वाले 3 पेज के इस पत्र में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसलों का हवाला  देते हुए इन्हें रोकने की गुहार लगाई गई है। उन्होंने नफरत से भरे भाषण वाले वीडियो पर चिंता जताते हुए कोर्ट से अपनी तीन मांगे की हैं। उन्होंने मांग की है कि हरियाणा सरकार को नफरती भाषण रोकने के लिए कदम उठाने, नफरती भाषण के वीडियो पर रोक लगाने और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करने का आदेश दिया जाए। 

लॉ से जुड़ी खबरों की वेबसाइट बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक  दिल्ली हाईकोर्ट की महिला वकीलों के फोरम ने अपने पत्र में कहा कि सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वाले भाषण और लक्षित हिंसा भड़काने वाले वीडियो सामने आए हैं और इसलिए ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए राज्य को निर्देश जारी किया जाना चाहिए। इसके अलावा, राज्य को उन वीडियो को ट्रैक करने और प्रतिबंधित करने का आदेश दिया जाना चाहिए जो किसी समुदाय, पूजा स्थलों को नुकसान पहुंचाने की धमकी देते हैं या किसी समुदाय के आर्थिक बहिष्कार का आग्रह करते हैं। 
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सांप्रदायिक नारे लगाते हुए वीडियो दिख रहे सोशल मीडिया पर 

इस पत्र में कहा गया है कि, चिंता इस बात से बढ़ जाती है कि सोशल मीडिया पर फैले इन वीडियो में लोगों को जुलूस में हथियार ले जाते हुए, संविधान, शस्त्र अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने फैसलों के माध्यम से निर्धारित कानूनों का उल्लंघन कर सांप्रदायिक नारे लगाते हुए दिखाया गया है।इसके बावजूद, इन वीडियो का कोई सत्यापन या ऐसे कृत्यों में लिप्त व्यक्तियों के खिलाफ कोई कार्रवाई होती नहीं दिख रही है। यह भारत में सामाजिक सद्भाव और कानून के शासन के लिए एक उन्होंने कहा है कि खतरनाक खतरा है। अगर इसे अनियंत्रित रहने दिया गया, तो नफरत और हिंसा की इस बढ़ती प्रवृत्ति को नियंत्रित करना असंभव हो सकता है। 
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क़मर वहीद नक़वी
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