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दो हफ़्ते बाद भारत ने अब की सलमान रुश्दी पर हमले की निंदा

भारत ने गुरुवार को सलमान रुश्दी को न्यूयॉर्क में हुई छुरा घोंपने की घटना की निंदा की है। इसने इस घटना को 'भयावह' बताया है। भारत की यह पहली आधिकारिक प्रतिक्रिया है। यह प्रतिक्रिया रुश्दी पर हमले के क़रीब दो सप्ताह बाद अब आई है।

भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत हमेशा हिंसा और उग्रवाद के खिलाफ खड़ा रहा है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक साप्ताहिक ब्रीफिंग में सवालों के जवाब में कहा, 'हम सलमान रुश्दी पर हुए भीषण हमले की निंदा करते हैं और हम उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं।'

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रुश्दी पर दो हफ़्ते पहले जब हमला हुआ था तो दुनिया भर में इसके ख़िलाफ आक्रोश बढ़ा, लेकिन तब भारत ने चुप्पी साधे रखी थी।

बता दें कि लेखक सलमान रुश्दी पर 12 अगस्त को उस समय हमला कर दिया गया था जब वह न्यूयॉर्क शहर में एक कार्यक्रम में व्याख्यान देने वाले थे।

रुश्दी पर 1980 के दशक से ही मारने की धमकी दी जाती रही है। सलमान रुश्दी की किताब 'द सैटेनिक वर्सेज' ईरान में 1988 से बैन है। कई मुसलमान इसे ईशनिंदा मानते हैं।

बाद में ईरान के दिवंगत नेता, अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी ने एक फतवा जारी किया था, जिसमें रुश्दी की मौत का आह्वान किया गया था।
ईरानी सरकार के एक अधिकारी ने इस बात से इनकार किया है कि हमले में तेहरान शामिल था, हालांकि उन्होंने छुरा घोंपने को सही ठहराया।

अपनी चौथी किताब द सैटेनिक वर्सेज (1988) पर विवाद के बाद वह लोगों की नज़रों से दूर रहे। लेकिन, धमकियों के बावजूद उन्होंने 1990 के दशक में कई उपन्यास लिखे। 2007 में उन्हें साहित्य की सेवाओं के लिए महारानी एलिजाबेथ द्वितीय द्वारा 'सर' की उपाधि दी गई थी।

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उन्होंने नॉन-फिक्शन सहित एक दर्जन से अधिक कृतियों की रचना की। उनका पहला उपन्यास 1975 में सामने आया था, लेकिन उनकी एक मौलिक रचना आधुनिक भारत, मिडनाइट्स चिल्ड्रन (1981) के बारे में है, जिसके लिए उन्होंने बुकर पुरस्कार जीता।

75 वर्षीय रुश्दी भारतीय मूल के हैं और उन्होंने ब्रिटेन की नागरिकता ली हुई है। रुश्दी पिछले 20 वर्षों से अमेरिका में रह रहे हैं।

भारतीय मूल के उपन्यासकार रुश्दी ने 1981 में मिडनाइट्स चिल्ड्रन के साथ प्रसिद्धि हासिल की। इस किताब की अकेले ब्रिटेन में दस लाख से अधिक प्रतियां बिकीं।

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क़मर वहीद नक़वी
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