यूक्रेन संकट ने भारत को ऐसे चौराहे पर ला खड़ा किया है, जहाँ यूरोप से हज़ारों किलोमीटर दूर एशिया प्रशांत और हिंद-प्रशांत में इसके हित प्रभावित हो सकते हैं, संकट के समय साथ खड़े रहने वाले पारंपरिक मित्र देशों से संबंध बिगड़ सकते हैं और भविष्य को देखते हुए इसने जिन देशों का हाथ थामा है, उनसे रिश्तों पर दूरगामी असर पड़ सकता है। यूरोप के जिस भौगोलिक-रणनीतिक संकट से भारत सीधे तौर पर जुड़ा हुआ नहीं है, उसका असर इसके अपने पास- पड़ोस के भौगोलिक राजनीतिक समीकरण पर प्रभाव पड़ सकता है और अंतरराष्ट्रीय जगत में इसके अपने हित प्रभावित हो सकते हैं।