इंडिगो संकट गहराने के बीच सवाल उठ रहा है कि क्या गलती सिर्फ एयरलाइन की है, या सरकार और DGCA की निगरानी में गंभीर चूक हुई है? उड़ान रद्द, स्टाफ विवाद और नियामकीय ढिलाई- पढ़ें राज्यसभा में मंत्री ने क्या जवाब दिया।
क्या इंडिगो संकट के लिए सिर्फ एयरलाइन दोषी है और सरकार, नागरिक उड्डयन मंत्रालय और डीजीसीए ज़िम्मेदार नहीं हैं? दो साल पहले डीजीसीए ने नियम बनाए और एयरलाइन ने नियम को लागू नहीं किया तो सरकार, मंत्रालय और डीजीसीए क्या सो रहे थे? आख़िर जब हाहाकार मचा तो केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री राममोहन नायडू क्यों कह रहे हैं कि सरकार सख्त कार्रवाई करेगी और हर एयरलाइन के लिए मिसाल कायम करेगी? यदि सरकार कार्रवाई करेगी तो किस किस पर, क्या अपने मंत्रालय और डीजीसीए पर भी कार्रवाई होगी?
दरअसल, भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो के फ्लाइट कैंसिलेशन संकट ने पूरे विमानन क्षेत्र को हिला दिया है। 2 दिसंबर से शुरू हुए इस संकट में हज़ारों उड़ानें रद्द हो चुकी हैं। इससे हजारों यात्री दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, बेंगलुरु और चेन्नई जैसे हवाई अड्डों पर फंस गए। शुक्रवार को 1600 से अधिक, शनिवार को 700 से ज्यादा और रविवार को 650 से अधिक उड़ानें रद्द हुईं। लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि क्या इस संकट के लिए सिर्फ इंडिगो जिम्मेदार है? दो साल पहले डीजीसीए द्वारा बनाए गए फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन यानी एफडीटीएल नियमों को लागू न करने पर सरकार, नागरिक उड्डयन मंत्रालय और डीजीसीए ने क्या किया था?
पायलटों की कमी, नियमों की अवहेलना
इंडिगो का यह संकट अचानक नहीं, बल्कि लंबे समय से चली आ रही लापरवाही का परिणाम है। डीजीसीए ने 2023 की शुरुआत में एफडीटीएल नियमों की घोषणा की थी, जो पायलटों की थकान कम करने और सुरक्षा बढ़ाने के लिए बनाए गए थे। इन नियमों के दूसरे चरण को 1 नवंबर 2025 से लागू किया गया, जिसमें साप्ताहिक आराम अवधि को 36 से बढ़ाकर 48 घंटे करना, रात्रि उड़ानों को 10 घंटे तक सीमित करना, मध्यरात्रि से सुबह की लैंडिंग को प्रति सप्ताह दो तक सीमित करना और तिमाही थकान रिपोर्ट जमा करना शामिल था।
इंडिगो को इन नियमों के लिए दो साल का समय दिया गया था, लेकिन पायलट संगठनों के आरोप हैं कि एयरलाइन ने पायलटों की भर्ती पर रोक लगा दी, वेतन फ्रीज कर दिया और लागत नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित किया। नतीजा? पायलटों की भारी कमी हुई, जिससे 2 दिसंबर से उड़ानें रद्द होने लगीं। इंडिगो ने इसे 'परिचालन संकट' बताया और माफी मांगी, लेकिन पायलट यूनियनों ने इसे 'लागत-केंद्रित छोटी सोच' का नतीजा करार दिया।कई रिपोर्टों में कहा गया है कि एयर इंडिया और अकासा एयर जैसी अन्य एयरलाइन्स ने पायलटों की भर्ती करके इन नियमों का पालन किया, जबकि इंडिगो की अनदेखी ने पूरे क्षेत्र को प्रभावित किया। फेडरेशन ऑफ इंडियन पायलट्स ने कहा कि पायलटों के वेतन और लाभों में वर्षों से ठहराव ने समस्या को बढ़ाया। लेकिन सवाल यह है कि डीजीसीए ने इन नियमों की निगरानी क्यों नहीं की?
अगस्त 2025 में ही परिवहन, पर्यटन और संस्कृति पर संसद की स्थायी समिति ने डीजीसीए को चेतावनी दी थी कि एफडीटीएल अनुपालन की 'कड़ी निगरानी' की जाए, ताकि एयरलाइन्स सुरक्षा उपायों को दरकिनार न कर सकें। समिति ने पायलटों और एयर ट्रैफिक कंट्रोलर्स के तनाव और थकान पर जोर दिया था।
इसके साथ ही मानसिक स्वास्थ्य दिशानिर्देशों को लागू करने और क्रू ट्रेनिंग की सिफारिश की थी। लेकिन यह 'रेड फ्लैग' नजरअंदाज कर दिया गया, जिसका नतीजा आज का संकट है।
मंत्री का 'सख्त कार्रवाई' का वादा, लेकिन देर क्यों?
केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री किंजरापु राममोहन नायडू ने संसद में कहा, 'इंडिगो के क्रू प्रबंधन में गड़बड़ी हुई है। अन्य एयरलाइन्स तैयार थीं, लेकिन इंडिगो की लापरवाही से यात्रियों को परेशानी हुई। सरकार सख्त कार्रवाई करेगी और हर एयरलाइन के लिए मिसाल कायम करेगी। कोई एयरलाइन नियमों से ऊपर नहीं है।' उन्होंने साफ़ किया कि एफडीटीएल नियमों की निगरानी पिछले एक महीने से हो रही थी और 1 दिसंबर की बैठक में इंडिगो ने कोई चिंता नहीं जताई, लेकिन 3 दिसंबर को स्थिति अचानक बिगड़ी। मंत्री ने कहा कि डीजीसीए ने इंडिगो सीईओ पीटर एल्बर्स को शो-कॉज नोटिस जारी किया है। साथ ही, सरकार ने अस्थायी रूप से कुछ एफडीटीएल नियमों में छूट दी है, जैसे मध्यरात्रि लैंडिंग कैप और ड्यूटी टाइम, जो 10 फरवरी 2026 तक लागू रहेगी।विपक्ष ने किया वॉकआउट
विपक्षी दलों ने मंत्री के जवाब से संतुष्ट न होने का आरोप लगाते हुए सदन से वॉकआउट कर दिया। कांग्रेस और अन्य विपक्षी सांसदों ने भारतीय विमानन क्षेत्र में इंडिगो और एयर इंडिया के डुओपॉली यानी दो प्रमुख एयरलाइनों का वर्चस्व पर फिर से सवाल उठाए। उनका कहना था कि दो ही कंपनियों के पास बाजार का बड़ा हिस्सा होने से यात्रियों का शोषण हो रहा है।
जवाब में मंत्री नायडू ने कहा कि सरकार हमेशा से नए खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करती रही है और भारत में पांच बड़ी एयरलाइंस होने की पूरी संभावना है।
मंत्री ने यात्रियों के लिए तत्काल कदम भी बताए: रद्द उड़ानों के लिए पूरा रिफंड, हवाई किराया कैप और फंसे यात्रियों को ट्रेन टिकट की व्यवस्था। लेकिन विपक्ष का सवाल बरकरार है कि अगर निगरानी हो रही थी, तो संकट इतना बड़ा क्यों हो गया? क्या सरकार ने इंडिगो के दबाव में झुककर नियमों में छूट दी?
सरकार और डीजीसीए की जिम्मेदारी
इस संकट ने नागरिक उड्डयन मंत्रालय और डीजीसीए की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए हैं। डीजीसीए ने 6 दिसंबर को इंडिगो को दूसरा शो-कॉज नोटिस जारी किया, जिसमें सुरक्षा चूक और एफडीटीएल उल्लंघन का आरोप लगाया गया। डीजीसीए अधिकारी रविंदर सिंह जामवाल ने कहा, 'इंडिगो ने विश्वसनीय संचालन सुनिश्चित करने में विफलता दिखाई।' लेकिन आलोचक पूछ रहे हैं कि दो साल पुराने नियमों पर अमल न होने पर डीजीसीए 'सो' क्यों रहा था? अगस्त की चेतावनी के बावजूद इसे लागू नहीं किया जा सका।जानकारों का मानना है कि भारत का तेजी से बढ़ता विमानन बाजार पांच बड़ी एयरलाइन्स को समर्थन दे सकता है, लेकिन एकाधिकार-जैसे हालात ने इंडिगो को लापरवाह बनाया। जून 2025 के एयर इंडिया क्रैश के बाद सुरक्षा जांचों ने अन्य एयरलाइन्स को सतर्क किया, लेकिन लगता है कि इंडिगो ने सबक नहीं सीखा। सरकार ने उच्च-स्तरीय जांच का आदेश दिया है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह 'मिसाल' सिर्फ शब्दों तक सीमित रहेगी, या वास्तविक सुधार लाएगी?
इंडिगो ने मांगी माफी
इंडिगो ने लगातार दूसरी बार यात्रियों से माफी मांगी है और दावा किया है कि वह अतिरिक्त पायलटों की भर्ती तेज कर रही है। कंपनी का कहना है कि अगले कुछ दिनों में परिचालन पूरी तरह सामान्य हो जाएगा। हालाँकि यात्रियों का ग़ुस्सा अभी ठंडा नहीं हुआ है।
इंडिगो संकट ने साबित कर दिया कि विमानन सुरक्षा में कोई समझौता बर्दाश्त नहीं। एयरलाइन की जिम्मेदारी साफ़ है, लेकिन सरकार और डीजीसीए की निगरानी तंत्र में खामियाँ उजागर हुई हैं। मंत्री नायडू का 'सख्त कार्रवाई' वादा स्वागतयोग्य है, लेकिन खुद सरकार और डीजीसीए की लापरवाही का क्या? अब जांच के नतीजे बताएंगे कि क्या वाकई 'मिसाल' कायम होगी, या यह सिर्फ एक और सरकारी बयानबाजी साबित होगी।