जम्मू-कश्मीर की पूंछ कोर्ट ने शनिवार को न्यूज़ चैनलों ZEE News और News18 के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर के दौरान एक टीचर के बारे में झूठी और अपमानजनक खबर प्रसारित करने के आरोप में एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया है। यह मामला हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर के कवरेज से संबंधित है, जो पहलगाम हमले के बाद भारत की पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई थी। भारत के कई न्यूज़ चैनल फर्जी खबर देने, दो समुदायों के खिलाफ भड़काने वाली खबरें चलाने के आरोपों से घिरे हैं।
बार एंड बेंच की खबर के मुताबिक शिकायतकर्ता ने कोर्ट में आरोप लगाया कि इन चैनलों ने 7 मई को पाकिस्तानी गोलीबारी में मारे गए एक स्थानीय टीचर, कारी मोहम्मद इकबाल, को गलत तरीके से "पाकिस्तानी आतंकवादी" के रूप में पेश किया। ज़ी न्यूज़ और न्यूज़18 इंडिया ने ऑपरेशन सिंदूर की लाइव रिपोर्टिंग के दौरान उन्हें "कुख्यात कमांडर" के रूप में पेश किया और बिना किसी आधिकारिक स्रोत से पुष्टि के उन्हें आतंकवाद से जोड़ा। खबरों में उनकी तस्वीर और पूरा नाम भी दिखाया गया, जिससे उनकी प्रतिष्ठा और उनके परिवार को गंभीर नुकसान पहुंचा। बाद में सच्चाई सामने आने पर इन चैनलों ने अपनी कवरेज वापस ले ली, लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक पूंछ के उप-न्यायाधीश/विशेष मोबाइल मजिस्ट्रेट की अदालत ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए संबंधित स्टेशन हाउस ऑफिसर (SHO) को सात दिनों के भीतर FIR दर्ज करने और कार्रवाई रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया। इसके अलावा, कोर्ट ने दोनों चैनलों पर 5 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
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मीडिया पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी

बार एंड एंड बेंच के मुताबिक अदालत ने मीडिया की जिम्मेदारी पर भी कड़ी टिप्पणी की, जिसमें कहा गया कि प्रेस को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत संरक्षण प्राप्त है। लेकिन यह अधिकार अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों के अधीन है, खासकर मानहानि, सार्वजनिक व्यवस्था और शालीनता से जुड़े मामलों में। जज ने एक मृत नागरिक टीचर को “बिना किसी सत्यापन के” आतंकवादी के रूप में ब्रांडिंग करना गंभीर गैरजिम्मेदाराना पत्रकारिता बताया, जो सार्वजनिक अशांति को बढ़ावा देने और सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंचाने में भूमिका निभाती है।
अदालत ने यह भी कहा कि भले ही न्यूज़ चैनलों ने बाद में माफ़ी मांगी, लेकिन उनका शुरुआती प्रसारण, जिसमें कारी इकबाल को 2019 के पुलवामा आतंकी हमले से जोड़ा गया, सार्वजनिक शरारत और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के बराबर था। इस खबर को तथ्यात्मक सत्यापन के बिना प्रसारित किया गया। यह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 353 (2), 356 और 196 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 के तहत दंडनीय अपराध हैं। प्रसारण के परिणामों को निष्प्रभावी करने के लिए माफ़ी को अपर्याप्त बताते हुए, कोर्ट ने पुलिस के कर्तव्य को बताया कि एक बार संज्ञेय अपराध का खुलासा होने पर कार्रवाई करना आवश्यक है।
सोशल मीडिया पर इस फैसले को लेकर व्यापक चर्चा हो रही है। कई यूजर्स ने इसे एक महत्वपूर्ण कदम बताया और चैनलों की गैर-जिम्मेदाराना पत्रकारिता की आलोचना की। एक एक्स पोस्ट में कहा गया, "यह कितनी शर्म की बात है कि जब पूरा देश शोक मना रहा था, तब इन चैनलों ने एक शहीद टीचर को आतंकवादी बता दिया।" 
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बहरहाल, यह घटना मीडिया की विश्वसनीयता और जिम्मेदारी पर सवाल उठा रही है, खासकर संवेदनशील मुद्दों पर कवरेज के दौरान। कोर्ट का यह फैसला गलत खबरों के प्रसार को रोकने और पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। हालांकि कई अदालतों ने इससे पहले भी मीडिया की गैरजिम्मेदारी पर टिप्पणियां की हैं लेकिन इस संबंध में कोई नतीजा सामने नहीं आया।