तमिलनाडु में डीएमके के बाद अब केरल में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग यानी आईयूएमएल ने एसआईआर के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। आईयूएमएल ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर केरल में चल रही विशेष गहन संशोधन प्रक्रिया यानी एसआईआर को तत्काल रोकने की मांग की है। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी.के. कुन्हालीकुट्टी की ओर से दाखिल याचिका में चुनाव आयोग के 27 अक्टूबर के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसके तहत केरल सहित कई राज्यों में एसआईआर को लागू किया गया है।

याचिका में कहा गया है कि एसआईआर का समय 4 नवंबर से 4 दिसंबर 2025 जानबूझकर ऐसा चुना गया है जो केरल में होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों 9 और 11 दिसंबर को मतदान के साथ पूरी तरह टकरा रहा है। 11 नवंबर को ही स्थानीय निकाय चुनावों की अधिसूचना जारी हो चुकी है और आदर्श आचार संहिता लागू है। आईयूएमएल का आरोप है कि एक साथ दो बड़े अभियान चलाने से न सिर्फ प्रशासनिक मशीनरी पर असहनीय दबाव पड़ रहा है, बल्कि मतदाताओं के नाम कटने का भी ख़तरा है।
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बीएलओ की आत्महत्या को बनाया आधार

याचिका में हाल ही में केरल में बूथ लेवल ऑफिसर यानी बीएलओ अनीश जॉर्ज की आत्महत्या का ज़िक्र करते हुए कहा गया है कि एसआईआर के तहत बीएलओ पर तीन बार घर-घर जाकर फॉर्म भरवाने, वापस लेने और फिर फिजिकल वेरिफिकेशन करने का इतना दबाव डाला जा रहा है कि मानसिक तनाव से अधिकारी टूट रहे हैं। राजस्थान में भी एक बीएलओ की ऐसे ही दबाव में आत्महत्या करने की ख़बर आई थी।

याचिकाकर्ता ने कहा है कि 30 दिनों में बीएलओ को एक ही घर में तीन बार जाना है। अगर कोई मतदाता किसी एक चरण में मौजूद नहीं रहा तो उसका नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से बाहर हो जाएगा। यह व्यावहारिक रूप से असंभव है और मतदाता अधिकार का खुला उल्लंघन है।

NRI मतदाताओं पर सबसे बड़ा खतरा

केरल में बड़ी संख्या में एनआरआई मतदाता हैं। याचिका में कहा गया है कि भले ही चुनाव आयोग ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की सुविधा दे रहा हो, लेकिन अंतिम वेरिफिकेशन के लिए बीएलओ को फिजिकल विजिट करना अनिवार्य है। विदेश में रहने वाले एनआरआई जब बीएलओ के विजिट के समय मौजूद नहीं होंगे तो उनका नाम स्वतः कट जाएगा। आईयूएमएल ने इसे 'मतदाताओं को जानबूझकर बाहर करने की साजिश' क़रार दिया है।

इसके अलावा बुजुर्ग, प्रवासी मजदूर, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग और जिनके पास मनरेगा जॉब कार्ड जैसे कई सामान्य पहचान-पत्र नहीं हैं, उनके नाम भी कटने का खतरा बताया गया है। याचिका में एसआईआर को 'चुनाव आयोग की शक्ति से परे जाकर नागरिकता सत्यापन का बैकडोर तरीका' करार दिया गया है। याचिका में मांग की गई है कि संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(a), 21, 325, 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की विभिन्न धाराओं का उल्लंघन करने वाले चुनाव आयोग के आदेश को तत्काल स्थगित किया जाए।
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केरल हाईकोर्ट ने पहले खारिज की थी याचिका

कुछ दिन पहले केरल सरकार ने भी हाईकोर्ट में एसआईआर टालने की याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने सुनवाई योग्य नहीं माना था। अब आईयूएमएल ने सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही बिहार, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में एसआईआर के खिलाफ याचिकाएँ लंबित हैं। बिहार में एसआईआर पूरा हो चुका है क्योंकि कोर्ट ने उसे रोकने से इनकार कर दिया था, लेकिन बाकी राज्यों में प्रक्रिया अभी चल रही है। केरल की याचिका भी अब इन्हीं याचिकाओं के साथ टैग होकर सुनवाई के लिए आएगी।

तमिलनाडु में विजय ने भी उठाए गंभीर सवाल

इसी बीच, तमिलनाडु में अभिनेता विजय की पार्टी तमिलगा वेट्री कझगम यानी टीवीके ने भी एसआईआर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। विजय ने वीडियो संदेश जारी कर कहा कि तमिलनाडु की 6.38 करोड़ आबादी में से लाखों लोग वोटिंग अधिकार खो सकते हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या यह वोटर लिस्ट संशोधन है या छिपी हुई नई रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया?
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विजय क्या बोले

टीवीके प्रमुख विजय ने कई सवाल उठाए हैं। उन्होंने पूछा कि एक महीने में पूरे राज्य में फॉर्म कैसे पहुंचेंगे? क्या लोगों को घर में बैठकर BLO का इंतजार करना पड़ेगा? फर्जी और मृत मतदाताओं को हटाना चाहिए, लेकिन पहले से वैध मतदाताओं को दोबारा रजिस्टर क्यों करवाना पड़ रहा है? टीवीके कार्यकर्ताओं तक फॉर्म नहीं पहुंच रहे। उन्होंने युवा मतदाताओं से विशेष सतर्क रहने और फॉर्म-6 भरकर बीएलओ का संपर्क नंबर लेने की अपील की।

केरल से लेकर तमिलनाडु तक एसआईआर को लेकर राजनीतिक तापमान तेज हो गया है। विपक्षी दल इसे 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले मतदाताओं को डराने-हटाने की रणनीति बता रहे हैं, जबकि चुनाव आयोग इसे 'चुनावी शुद्धिकरण' बता रहा है। अब सारी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं।