loader
फ़ोटो साभार: ट्विटर/रमेश पोखरियाल निशंक (वीडियो ग्रैब)

क्या सिर्फ़ नई शिक्षा नीति की घोषणा से ही भारत बन जाएगा ‘विश्व गुरु’?

भारत सरकार ने क़रीब 34 साल बाद देश में नयी शिक्षा नीति की घोषणा की है और साथ ही यह वादा किया है कि वह इसके लिए देश की जीडीपी का छह फ़ीसदी हिस्सा ख़र्च करेगी। देश में सरकार की योजनाएँ और दावे हमेशा ही आकर्षक होते हैं इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता। योजनाओं में अंत्योदय यानी अंतिम व्यक्ति तक उसका लाभ पहुँचाने की बात कही जाती है लेकिन आज तक शायद ही कोई ऐसी योजना हो जिसने यह कर दिखाया हो। वैसे, मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में देश में अंतरराष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालय निर्माण करने की योजना की भी घोषणा की थी। इस योजना के तहत जियो और मणिपाल यूनिवर्सिटी को एक-एक हज़ार करोड़ रुपये देने की घोषणा हुई थी। लेकिन इन दोनों विश्विद्यालयों का क्या हुआ यह अभी तक पता नहीं चला है।

ताज़ा ख़बरें

चलिए बात करते हैं शिक्षा और उसके लिए घोषित जीडीपी के छह फ़ीसदी हिस्से की। चूँकि देश में मोदी युग चल रहा है तो बात उन्हीं की सरकार के कार्यकाल की करते हैं कि उनकी सरकार इसको लेकर कितनी जागरूक रही है। शिक्षा के लिए आवंटित केंद्रीय बजट का हिस्सा 2014-15 में 4.14 फ़ीसदी था, जो गिरकर 2019-20 में 3.4 फ़ीसदी हो गया और यह जानकारी आप 2014 से 2020 तक के बजट दस्तावेज़ों से हासिल कर सकते हैं। इसमें भी स्कूली शिक्षा के मामले में, बजट अन्य के मुक़ाबले कम हो गया है। 

बजट के संशोधित अनुमानों के आधार पर, स्कूली शिक्षा को आवंटित कुल धनराशि 2014-15 में 38,600 करोड़ रुपये से घटकर 2018-19 में 37,100 करोड़ रुपये हो गई। दरअसल, शिक्षा पर देश के सरकारी बजट के 20 फ़ीसदी ख़र्च करने की जो बात सरकार द्वारा बार-बार कही जाती है, वह तभी जाकर संभव हो सकती है जब केंद्र सरकार के साथ-साथ, राज्य भी अपना ख़र्च बढ़ाएँ। वर्तमान में, शिक्षा ख़र्च का बड़ा हिस्सा (75-80 फ़ीसदी के बीच) राज्यों से आता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में राज्यों द्वारा भी इसमें कटौती या कमी की जा रही है जिसका विपरीत असर तेज़ी से दिखाई भी देता है।

पिछले एक दशक के दौरान शिक्षा के क्षेत्र में ख़र्च देश के जीडीपी के 3 प्रतिशत से भी कम रहा है, जबकि प्रस्तावित वैश्विक मानक 6 प्रतिशत है। और अब मोदी सरकार ने घोषित किया है कि वह भी इसी मानक के अनुसार शिक्षा पर ख़र्च करने वाली है।
यह कोई अजूबा बात नहीं है जो इस सरकार द्वारा घोषित की जा रही है। दरअसल, शिक्षा नीति का निर्धारण करने के लिए 1964 में बने कोठारी आयोग का सबसे प्रमुख सुझाव था कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6 प्रतिशत शिक्षा के मद में ख़र्च किया जाए। प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1968) में इसे एक राष्ट्रीय लक्ष्य भी बनाया गया था। लेकिन इस राष्ट्रीय लक्ष्य को आज 40 साल बाद भी नहीं प्राप्त किया जा सका है।

लेकिन 2014-15 में जब मोदी सरकार ने पहली बार बजट पेश किया था तो उसमें शिक्षा क्षेत्र को 83000 करोड़ रुपए का बजट दिया गया था। बाद में इसे उसी साल घटाकर 69000 करोड़ रुपए कर दिया गया। इसके बाद शिक्षा बजट उस दर से नहीं बढ़ा, जिस तरह उसे बढ़ना चाहिए था। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान निर्मला सीतारमण ने जब जुलाई, 2019 में बजट पेश किया तो शिक्षा क्षेत्र को 94,854 करोड़ रुपए का बजट मिला, जो 2014 के बजट से महज 15.68 फ़ीसदी अधिक है। जबकि इस दौरान कुल बजट 55 फ़ीसदी से अधिक बढ़ा। 

देश से और ख़बरें

2014-15 में सम्पूर्ण बजट की राशि 17.95 लाख करोड़ रुपये थी जो 2019-20 में बढ़कर 27.86 लाख करोड़ हो गई। देश में न सिर्फ़ शिक्षा के क्षेत्र में बजट काफ़ी कम है, इसका वितरण भी काफ़ी असमान-सा है। 2019-20 के बजट के अनुसार शिक्षा के क्षेत्र में जो 94,854 करोड़ जारी किए गए, उसमें स्कूली शिक्षा का बजट 5653.63 करोड़ रुपए और उच्च शिक्षा का बजट 38,317.36 करोड़ रुपए है। उच्च शिक्षा के 38,317.36 करोड़ रुपए में से देश के लगभग 1000 विश्वविद्यालयों का हिस्सा 6843 करोड़ रुपए है। 

देश में 50 से भी कम संख्या में आईआईटी और आईआईएम का बजट विश्वविधालयों के बजट से कहीं अधिक है। देश भर के 23 आईआईटी कॉलेजों का बजट 6410 करोड़ रुपए जबकि देश के 20 आईआईएम कॉलेजों को 445 करोड़ रुपया मिलता है।

यही कारण है कि हमारे देश की विश्वविद्यालयीय शिक्षा बेहद नाजुक स्थिति में है। 

बजट के असमान वितरण के अलावा एक और समस्या यह है कि शिक्षा के क्षेत्र में जितना बजट प्रस्तावित किया जाता है, उतना ख़र्च नहीं हो पाता। सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 10 सालों में 8 बार ऐसा मौक़ा आया जब शिक्षा पर प्रस्तावित बजट ख़र्च नहीं हो सका। इस रिपोर्ट के अनुसार 2014 से 2019 के दौरान लगभग 4 लाख करोड़ रुपये प्रस्तावित बजट शिक्षा के क्षेत्र में ख़र्च नहीं हो सका। ऐसे में सवाल यह उठता है कि सरकार ने जो घोषणा की है वह महज घोषणा ही रहने वाली है या कुछ परिवर्तन भी होगा!

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
संजय राय
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें