संसद का मानसून सत्र आज सोमवार 21 जुलाई से शुरू हो रहा है। सरकार ने कहा है कि वो सभी मुद्दों पर चर्चा को तैयार है। परंपरा के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी संसद के बाहर मीडिया से औपचारिक बातचीत करेंगे। आमतौर पर वो इस दौरान कोई सवाल मीडिया से नहीं लेते हैं। सत्र शुरू होने से पहले वो कुछ देर अपनी पार्टी के सांसदों को भी संबोधित करेंगे। मोदी संसद सत्र के दौरान 23 से 26 जुलाई तक सदन में नहीं होंगे और इस दौरान विदेश यात्रा पर होंगे।
इससे पहले केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने रविवार को दावा किया कि केंद्र सरकार संसद के मानसून सत्र में ऑपरेशन सिंदूर, पहलगाम आतंकी हमले और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विवादास्पद दावों जैसे मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार है। यह बयान सर्वदलीय बैठक के बाद आया, जो 21 जुलाई से शुरू होने वाले मानसून सत्र से पहले आयोजित की गई थी। हालांकि, सरकार की इस "खुले दिल" वाली पेशकश पर कई सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि विपक्ष ने पहले ही ऑपरेशन सिंदूर पर विशेष सत्र की मांग की थी, जिसे केंद्र ने ठुकरा दिया था। क्या यह चर्चा का वादा केवल एक दिखावा है, या सरकार वाकई पारदर्शिता की दिशा में कदम उठा रही है? इसके जवाब आने वाले दिनों में सत्र की कार्यवाही के दौरान मिलेंगे।

सर्वदलीय बैठक और सरकार का रुख 

रिजिजू ने सर्वदलीय बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा, “हम ऑपरेशन सिंदूर जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर संसद में चर्चा के लिए पूरी तरह तैयार हैं। सरकार और विपक्ष के बीच बेहतर समन्वय होना चाहिए ताकि सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चल सके।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि सरकार संसदीय नियमों और परंपराओं के अनुसार सभी मुद्दों पर चर्चा करेगी। हालांकि, विपक्षी नेताओं का कहना है कि सरकार ने पहले ऑपरेशन सिंदूर पर विशेष सत्र की मांग को खारिज कर दिया था, जिसके बाद यह बयान केवल राजनीतिक दबाव को कम करने की कोशिश हो सकती है।

ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम हमला 

ऑपरेशन सिंदूर 7 मई को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में शुरू किया गया था। पहलगाम हमले में 26 लोग मारे गए थे, जिनमें ज्यादातर पर्यटक थे। विपक्ष, विशेष रूप से कांग्रेस, ने इस ऑपरेशन के बाद भारत की विदेश नीति और कूटनीतिक रणनीति पर सवाल उठाए थे। कांग्रेस उस समय मांग की थी कि सरकार को पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर विशेष सत्र बुलाकर पारदर्शिता दिखानी चाहिए। लेकिन सरकार ने विशेष सत्र नहीं बुलाया और चर्चा से भागती रही।
सरकार की चुप्पी विवाद तब और गहरा गया जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच “सीजफायर” कराने में मध्यस्थता की थी। विपक्ष ने इस दावे को लेकर सरकार पर तीखे सवाल उठाए हैं, खासकर तब जब विदेश मंत्रालय ने इस पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया। कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर, विदेश नीति और बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (SIR) जैसे मुद्दों को संसद में उठाया जाएगा। रिजिजू ने ट्रंप के दावों पर कहा कि सरकार संसद में “उचित जवाब” देगी, लेकिन इस अस्पष्ट बयान ने संदेह को और बढ़ा दिया है। क्या सरकार वाकई इन सवालों का सामना करने को तैयार है, या यह केवल समय टालने की रणनीति है?

सर्वदलीय बैठक में क्या हुआ?  

सर्वदलीय बैठक में 51 दलों के 40 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। सर्वदलीय बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा में सदन के नेता जेपी नड्डा ने की, जिसमें सरकार का प्रतिनिधित्व किरण रिजिजू और राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने किया। इस बैठक में कांग्रेस नेता गौरव गोगोई और जयराम रमेश, एनसीपी (शरद पवार) सांसद सुप्रिया सुले, डीएमके के टीआर बालू और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (ए) के केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले और आप के संजय सिंह शामिल थे। बैठक में विपक्ष ने पहलगाम हमले, ऑपरेशन सिंदूर, ट्रंप के दावों, और बिहार में मतदाता सूची संशोधन जैसे मुद्दों को उठाने की बात कही। रिजिजू ने दावा किया कि यह एक “सकारात्मक” बैठक थी, लेकिन विपक्षी नेताओं का कहना है कि सरकार ने उनकी मांगों पर ठोस आश्वासन देने से परहेज किया।

जस्टिस वर्मा पर महाभियोग प्रस्ताव 

रिजिजू ने यह भी बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर 100 से अधिक सांसदों के हस्ताक्षर हो चुके हैं, जिसमें कांग्रेस के 40 सांसद, जिसमें राहुल गांधी भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया सभी दलों के सहयोग से आगे बढ़ेगी और यह “सरकार का अकेले का कदम नहीं है।” हालांकि, इस मुद्दे को ऑपरेशन सिंदूर जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों के साथ जोड़कर चर्चा में लाना क्या सरकार की रणनीति का हिस्सा है, यह सवाल उठ रहा है।

विपक्ष का आरोप: सरकार भाग रही है? 

विपक्ष ने सरकार पर आरोप लगाया है कि वह ऑपरेशन सिंदूर और ट्रंप के दावों पर खुली चर्चा से बच रही है। कांग्रेस ने दावा किया है कि सरकार ने विशेष सत्र की मांग को ठुकराकर “संसद से डर” दिखाया है। टीएमसी नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने एक्स पर इसे “संसद-फोबिया” करार दिया। विपक्ष का कहना है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की कूटनीतिक स्थिति और ट्रंप के दावों ने देश की संप्रभुता पर सवाल उठाए हैं, जिस पर सरकार को जवाब देना चाहिए।

सवालों के घेरे में सरकार की मंशा 

रिजिजू के बयान के बावजूद, कई सवाल अनुत्तरित हैं। पहला, सरकार ने विशेष सत्र की मांग को क्यों खारिज किया, अगर वह अब चर्चा के लिए तैयार है? दूसरा, ट्रंप के दावों पर विदेश मंत्रालय की चुप्पी और रिजिजू का “उचित जवाब” देने का वादा क्या केवल समय टालने की कोशिश है? तीसरा, क्या सरकार ऑपरेशन सिंदूर की कूटनीतिक और सामरिक जानकारी को संसद में पूरी पारदर्शिता के साथ साझा करेगी, या यह चर्चा केवल औपचारिकता तक सीमित रहेगी?
बहरहाल, कल सोमवार 21 जुलाई से शुरू होने वाला मानसून सत्र 21 अगस्त तक चलेगा, निश्चित रूप से एक तूफानी सत्र होने की उम्मीद है। सरकार की “खुले दिल” वाली पेशकश के बावजूद, विपक्ष के तीखे सवाल और जनता की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि क्या यह सत्र वाकई पारदर्शिता और जवाबदेही का मंच बनेगा, या फिर यह एक और राजनीतिक नाटक साबित होगा। ऑपरेशन सिंदूर और ट्रंप के दावों पर सरकार का रुख न केवल भारत की विदेश नीति को प्रभावित करेगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि क्या सरकार राष्ट्रीय हितों को पार्टीगत राजनीति से ऊपर रख पाएगी।