नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) ने कक्षा 8 के लिए नई सामाजिक विज्ञान की किताब 'एक्सप्लोरिंग सोसाइटी: इंडिया एंड बियॉन्ड' जारी की है, जिसमें दिल्ली सल्तनत और मुगल शासकों के इतिहास को नए नजरिए से पेश किया गया है। इस किताब में मुगल शासकों, विशेष रूप से बाबर, अकबर और औरंगजेब के जुल्म-सितम पर जोर दिया गया है। लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया है कि अतीत की घटनाओं के लिए आज किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए। एनसीईआरटी पिछले चार साल से तमाम स्कूली किताबों में इतिहास को बदलने में जुटी हुई है। यह कोई पहला मामला नहीं है।
किताब में बाबर को "क्रूर और निर्दयी विजेता" के रूप में लिखा गया है, जो शहरों की पूरी आबादी का नरसंहार करता था और महिलाओं व बच्चों को गुलाम बनाता था। अकबर के शासन को "क्रूरता और सहनशीलका का मिलाजुला रूप" बताया गया है, जिसमें चित्तौड़ किले पर कब्जे के दौरान 30,000 नागरिकों के नरसंहार और महिलाओं व बच्चों को गुलाम बनाने का जिक्र है। औरंगजेब के बारे में कहा गया है कि उसने मंदिरों और गुरुद्वारों को नष्ट किया। पाठ्यपुस्तक में 13वीं से 17वीं सदी तक के भारतीय इतिहास को कवर करने वाला चैप्टर 'रीशेपिंग इंडिया'ज पॉलिटिकल मैप' दिल्ली सल्तनत, मुगलों, विजयनगर साम्राज्य और सिखों के उदय को शामिल करता है।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक एनसीईआरटी ने इस नजरिए का बचाव करते हुए कहा कि यह ऐतिहासिक घटनाओं को संतुलित और सबूत आधारित तरीके से पेश करता है। पुस्तक में 'नोट ऑन सम डार्कर पीरियड्स इन हिस्ट्री' नामक एक खंड शामिल है, जिसमें ऐतिहासिक घटनाओं को शामिल करने का औचित्य समझाया गया है। इसके अलावा, एक चैप्टर में यह सावधानी नोट भी जोड़ा गया है कि "अतीत की घटनाओं के लिए आज किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए।" यह नजरिया राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचे (एनसीएफ-एसई) 2023 के अनुरूप है, जो भारतीय परंपराओं और ज्ञान सिस्टम पर जोर देता है। 
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किताब में में जजिया टैक्स का भी जिक्र है। जिसे कुछ सुल्तानों ने गैर-मुस्लिमों पर लगाया था। इसे सार्वजनिक अपमान का स्रोत और धर्म परिवर्तन को बढ़ावा देने के रूप में बताया गया है। जबकि पुरानी कक्षा 7 की किताब में इसे गैर-मुस्लिमों द्वारा दिए जाने वाले टैक्स के रूप में बताया गया था। यानी मुगल काल के कुछ सुल्तानों के जजिया टैक्स को अब धर्म परिवर्तन को बढ़ाने वाला बता दिया गया है।
इंडियन एक्सप्रेस से एनसीईआरटी के सामाजिक विज्ञान के लिए पाठ्यचर्या क्षेत्र समूह के प्रमुख माइकल दानिनो ने कहा, "हम मुगल शासकों को बदनाम नहीं कर रहे हैं, बल्कि उनकी जटिलताओं को दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं। हमें इतिहास को साफ-सुथरा नहीं बनाना चाहिए, बल्कि यह दिखाना चाहिए कि इन शासकों की सीमाएँ थीं और उन्होंने जुल्म भी किए।"
पुस्तक में मुगलों के खिलाफ प्रतिरोध को भी बताया गया है, जिसमें जाट किसानों, भील, गोंड, संथाल और कोच जनजातियों, रानी दुर्गावती और अहोमों का उल्लेख है। पुरानी कक्षा 7 की पाठ्यपुस्तक की तुलना में इस नई पुस्तक में मंदिरों पर हमलों और शासकों की क्रूरता पर अधिक ध्यान दिया गया है।
यह कोर्सबुक 2025-26 शैक्षणिक सत्र के लिए तैयार की गई है और इसमें दिल्ली सल्तनत और मुगल काल को पहले कक्षा 7 में पढ़ाया जाता था, लेकिन अब इसे कक्षा 8 के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।
एनसीईआरटी का इतिहास पुनर्लेखन और निष्पक्षता का सवाल 
एनसीईआरटी की कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान की नई पाठ्यपुस्तक में मुगलों की "क्रूरता" को शामिल करने का निर्णय विवादास्पद है। इतिहास को निष्पक्षता के साथ प्रस्तुत करना एक जटिल कार्य है, क्योंकि यह विभिन्न दृष्टिकोणों और तथ्यों के संतुलन पर निर्भर करता है। एनसीईआरटी का दावा है कि यह कदम "इतिहास के अंधकारमय हिस्सों" को उजागर करने के लिए उठाया गया है, लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या केवल मुगलों की नकारात्मक छवि को उभारना निष्पक्ष है। 
मुगल शासन ने भारत में कला, संस्कृति, वास्तुकला और प्रशासनिक सुधारों में भी योगदान दिया, जैसे कि अकबर का धार्मिक सहिष्णुता और शाहजहाँ के स्मारकों का निर्माण। भारत के प्रधानमंत्री आज भी लालकिले की प्राचीर से ही हर 15 अगस्त को तिरंगा फहराते हैं। राष्ट्रपति भवन भी अंग्रेजों का बनाया हुआ है। अगर पाठ्यपुस्तकें सिर्फ मुगलों की "क्रूरता" पर केंद्रित होती हैं, तो यह एकतरफा दृष्टिकोण इतिहास को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत कर सकता है, जो निष्पक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है। बच्चों को इतिहास का संपूर्ण ज्ञान देना जरूरी है, जिसमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू शामिल हों।

भारत के वास्तविक इतिहास से वंचित करने का खतरा 

एनसीईआरटी के इस नजरिए से बच्चों को भारत के समृद्ध और जटिल इतिहास का वास्तविक स्वरूप समझने का अवसर छिन सकता है। भारत का इतिहास केवल विजेताओं की क्रूरता या युद्धों तक सीमित नहीं है; यह विविध संस्कृतियों, धर्मों, और सामाजिक सुधारों का संगम है। उदाहरण के लिए, मुगल काल में सूफी और भक्ति आंदोलनों ने सामाजिक एकता को बढ़ावा दिया, और उनकी प्रशासनिक नीतियों ने आधुनिक भारत के आधार को मजबूत किया। 
अगर पाठ्यपुस्तकें केवल नकारात्मक पहलुओं पर जोर देती हैं, तो बच्चे इस सांस्कृतिक समृद्धि और ऐतिहासिक संतुलन से वंचित रह जाएंगे। इससे न केवल उनकी ऐतिहासिक समझ सीमित होगी, बल्कि वे भारत की बहुलवादी परंपरा को पूरी तरह से समझने में असमर्थ होंगे। इतिहास की यह चुनी हुई प्रस्तुति बच्चों में गलत धारणाएं पैदा कर सकती है, जो आगे चलकर उनकी सोच को प्रभावित करेगी।

बच्चों में गलत सूचना का खतरा और उसका प्रभाव 

एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में इतिहास के चयनात्मक पुनर्लेखन से गलत सूचना फैलने का गंभीर खतरा है। जब इतिहास को एक खास नजरिए या एजेंडे के तहत प्रस्तुत किया जाता है, तो यह न केवल तथ्यों को विकृत करता है, बल्कि समाज में ध्रुवीकरण को भी बढ़ावा देता है। बच्चे, जो अपनी प्रारंभिक शिक्षा के दौरान इन पाठ्यपुस्तकों पर निर्भर करते हैं, ऐसी एकतरफा जानकारी को सत्य मान सकते हैं। यह उनकी आलोचनात्मक सोच को प्रभावित कर सकता है और ऐतिहासिक तथ्यों की गहरी समझ को बाधित कर सकता है। 
इसके अलावा, मुगलों जैसे ऐतिहासिक शासकों को केवल "क्रूर" के रूप में चित्रित करना भारत के सामाजिक सौहार्द को कमजोर कर सकता है, क्योंकि यह एक विशेष समुदाय को निशाना बनाने की गलत धारणा पैदा कर सकता है। इसलिए, एनसीईआरटी को चाहिए कि वह इतिहास को तथ्यपरक, संतुलित और समावेशी तरीके से प्रस्तुत करे, ताकि बच्चों को भारत के वास्तविक और समृद्ध इतिहास की सही समझ मिले।