क्या निशिकांत दुबे का एसवाई क़ुरैशी को 'मुस्लिम आयुक्त' कहना सिर्फ़ बयानबाज़ी है या यह बीजेपी और जेपी नड्डा को एक सियासी संदेश? इस विवाद ने राजनीतिक हलचल को तेज कर दिया है।
क्या निशिकांत दुबे बीजेपी और उसके अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के अनुशासन को खुली चुनौती दे रहे हैं? सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई पर 'गृह युद्ध' का ठीकरा फोड़कर पार्टी को असहज करने वाले दुबे ने अब पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ. एस.वाई. कुरैशी को 'मुस्लिम आयुक्त' कहकर नया विवाद खड़ा कर दिया। नड्डा की सख़्त चेतावनी और पार्टी के किनारा करने के बावजूद दुबे की यह बेलगाम बयानबाज़ी सियासी गलियारों में तूफ़ान मचा रही है। आखिर नड्डा की नसीहत का असर क्यों नहीं पड़ा? क्या दुबे की बयानबाजी बीजेपी के लिए सिरदर्द बन जाएगी, या यह एक सोची-समझी सियासी चाल है?
सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई पर विवादित बयान देने पर जेपी नड्डा की नसीहत देने के कुछ घंटों के अंदर ही निशिकांत दुबे ने अब पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ. एस.वाई. क़ुरैशी को निशाना बनाया है। निशिकांत दुबे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कुरैशी को 'चुनाव आयुक्त नहीं, मुस्लिम आयुक्त' क़रार दिया और गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने लिखा, 'आपके कार्यकाल में संथालपरगना में मतदाता सूची में बांग्लादेशी घुसपैठियों को बड़े पैमाने पर जोड़ा गया।' दुबे ने क़ुरैशी पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया और उनके कार्यकाल को विवादास्पद बताया।
निशिकांत दुबे का यह हमला क़ुरैशी के 17 अप्रैल के एक पोस्ट के जवाब में था, जिसमें क़ुरैशी ने वक़्फ़ संशोधन विधेयक 2025 को 'मुस्लिम ज़मीनों को हड़पने की सरकार की भयावह साज़िश' बताया था। क़ुरैशी ने लिखा था, 'मुझे यक़ीन है कि सुप्रीम कोर्ट इस पर सवाल उठाएगा। शरारती प्रचार तंत्र ने ग़लत सूचना फैलाकर अपना काम बख़ूबी किया है।'
इससे पहले दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर हमला बोलते हुए कहा था कि 'देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए सुप्रीम कोर्ट ज़िम्मेदार है' और 'जितने भी गृह युद्ध जैसे हालात बन रहे हैं, उसके लिए सीजेआई संजीव खन्ना ज़िम्मेदार हैं।' उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर 'न्यायिक अतिक्रमण' का आरोप लगाया और कहा कि अगर कोर्ट ही क़ानून बनाएगा, तो संसद और विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।
दुबे के सुप्रीम कोर्ट वाले बयान के बाद बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने तुरंत सोशल मीडिया पर बयान जारी कर पार्टी को इस विवाद से अलग किया। नड्डा ने कहा, 'निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा के न्यायपालिका और सीजेआई पर दिए गए बयान पूरी तरह व्यक्तिगत हैं। बीजेपी इनसे सहमत नहीं है और न ही इनका समर्थन करती है। हम इन बयानों को सिरे से खारिज करते हैं।' उन्होंने यह भी जोड़ा कि बीजेपी न्यायपालिका को लोकतंत्र का मज़बूत स्तंभ मानती है और उन्होंने दोनों सांसदों को भविष्य में ऐसे बयान देने से मना किया है।
नड्डा के इस सख्त निर्देश के बावजूद दुबे ने सिर्फ़ एक दिन बाद ही कुरैशी पर हमला बोल दिया। यह साफ़ तौर पर नड्डा की चेतावनी को नज़रअंदाज़ करने का संकेत देता है। दुबे के इस रुख ने बीजेपी के भीतर अनुशासन और नेतृत्व की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
निशिकांत दुबे झारखंड के गोड्डा से चार बार के सांसद हैं और उनकी आक्रामक और विवादित बयानबाज़ी उनकी पहचान रही है। वह अपने क्षेत्र में एक मज़बूत जनाधार रखते हैं और उनकी बयानबाज़ी को उनके समर्थक साहसी और सच बोलने वाला मानते हैं। सोशल मीडिया पर कुछ यूज़र्स ने उनके कुरैशी वाले बयान का समर्थन करते हुए कहा कि 'देश को ऐसे नेताओं की जरूरत है जो सच बोलें।' इस तरह का समर्थन दुबे को अपनी शैली बदलने से रोकता है, क्योंकि यह उनके वोट बैंक को मज़बूत करता है।
दुबे के बयान, चाहे सुप्रीम कोर्ट पर हों या कुरैशी पर, एक खास वैचारिक समूह को लुभाते हैं। वक़्फ़ विधेयक जैसे संवेदनशील मुद्दों पर उनकी टिप्पणियाँ और क़ुरैशी पर 'मुस्लिम आयुक्त' जैसे आरोप बीजेपी के कट्टर समर्थकों को लामबंद करने का काम करते हैं। यह ध्रुवीकरण दुबे को पार्टी के भीतर एक 'निर्भीक' नेता के रूप में पेश करता है, जिससे वह नड्डा की चेतावनी को नज़रअंदाज़ करने का जोखिम उठा सकते हैं।
नड्डा का बयान भले ही सख़्त था, लेकिन लगता है कि बीजेपी के पास ऐसे नेताओं पर लगाम कसने का कोई प्रभावी तंत्र नहीं है। स्थानीय स्तर पर मज़बूत दुबे जैसे सांसद अक्सर पार्टी लाइन से हटकर बयानबाजी करते हैं। पहले भी दुबे ने टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा पर 'कैश फॉर क्वेरी' जैसे गंभीर आरोप लगाए थे, जिससे वह सुर्खियों में रहे।
वैसे, माना जाता है कि दुबे के बयान पूरी तरह 'व्यक्तिगत' नहीं हैं। उनकी बयानबाजी बीजेपी की उस रणनीति का हिस्सा हो सकती है, जिसमें वह अपने कट्टर समर्थकों को संदेश देना चाहती है कि वह संवेदनशील मुद्दों पर आक्रामक रुख अपनाएगी। नड्डा का किनारा करना इस रणनीति का दूसरा पहलू हो सकता है, ताकि पार्टी औपचारिक तौर पर संस्थानों का सम्मान दिखाए, लेकिन अनौपचारिक रूप से ध्रुवीकरण का लाभ ले। हालांकि, इसकी पुष्टि के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है।
दुबे के क़ुरैशी पर हमले ने विपक्ष को एक और मौक़ा दे दिया। सीजेआई वाले बयान पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि बीजेपी संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश कर रही है।
मणिकम टैगोर ने दुबे के सुप्रीम कोर्ट वाले बयान को मानहानि वाला बताया और उम्मीद जताई कि कोर्ट इसका संज्ञान लेगा। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने बीजेपी पर तंज कसते हुए कहा, 'आप लोग ट्यूबलाइट हैं' यह बताने की कोशिश की यह बयान देरी से आया है।
सुप्रीम कोर्ट और कुरैशी पर दुबे के दोनों बयान वक़्फ़ संशोधन विधेयक के इर्द-गिर्द हैं। इस विधेयक को संसद ने हाल ही में पारित किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में इसकी संवैधानिकता को चुनौती दी गई है। कोर्ट ने सरकार से इसके कुछ प्रावधानों को लागू न करने का आश्वासन मांगा, जिसे दुबे ने 'न्यायिक हस्तक्षेप' क़रार दिया। क़ुरैशी का बयान भी इसी विधेयक पर था, जिसे दुबे ने 'मुस्लिम तुष्टिकरण' का हिस्सा बताया। यह दिखाता है कि दुबे इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देकर सियासी लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं।
निशिकांत दुबे की बयानबाज़ी बीजेपी के लिए दोधारी तलवार है। एक ओर, यह पार्टी के कट्टर समर्थकों को लामबंद करता है और वक़्फ़ जैसे मुद्दों पर ध्रुवीकरण को बढ़ावा देता है तो दूसरी ओर, यह बीजेपी की छवि को नुक़सान पहुँचाता है, खासकर तब जब पार्टी न्यायपालिका और संवैधानिक संस्थानों के प्रति सम्मान की बात करती है।
दुबे का यह रुख उनकी व्यक्तिगत सियासी महत्वाकांक्षा और स्थानीय लोकप्रियता से भी प्रेरित हो सकता है। वह जानते हैं कि उनकी बयानबाज़ी उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में रखती है, भले ही यह विवादास्पद हो। साथ ही, बीजेपी के लिए यह एक चेतावनी है कि उसे अपने नेताओं पर लगाम कसने के लिए और सख़्त क़दम उठाने होंगे, वरना ऐसी घटनाएँ पार्टी की साख को और नुक़सान पहुँचा सकती हैं।
निशिकांत दुबे की लगातार विवादित बयानबाज़ी और नड्डा की चेतावनी का बेअसर रहना बीजेपी के लिए एक गंभीर चुनौती है। यह न केवल पार्टी के भीतर अनुशासन की कमी को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कुछ नेता अपनी व्यक्तिगत छवि और सियासी लाभ के लिए पार्टी लाइन को नजरअंदाज करने को तैयार हैं। दुबे के बयान जहां एक वर्ग को लुभाते हैं, वहीं वे बीजेपी को न्यायपालिका और संवैधानिक संस्थानों के साथ टकराव की स्थिति में ला सकते हैं।
आने वाले दिन दिखाएंगे कि क्या बीजेपी दुबे जैसे नेताओं पर लगाम कस पाती है, या यह सिलसिला और विवादों को जन्म देता है। फ़िलहाल, यह साफ़ है कि निशिकांत दुबे का फायर मोड न केवल सियासी हलकों में हलचल मचा रहा है, बल्कि बीजेपी के लिए भी सिरदर्द बन गया है।