सुप्रीम कोर्ट ने निठारी कांड के दोषी सुरेंद्र कोली की सजा रद्द करते हुए उनकी रिहाई का आदेश दिया है। अदालत ने जांच और सबूतों पर गंभीर सवाल उठाए हैं। निठारी हत्याकांड अब नए मोड़ पर पहुँच गया है।
नोएडा के निठारी हत्याकांड से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुरेंद्र कोली की बलात्कार और हत्या की सजा को रद्द कर दिया। चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कोली की क्यूरेटिव याचिका को मंजूर करते हुए उनकी उम्रकैद की सजा को पलट दिया और निर्देश दिया कि यदि वे किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं, तो उन्हें तत्काल रिहा किया जाए। यह फैसला निठारी कांड के 13 मामलों में से अंतिम बचा केस था, जहां कोली की सजा बरकरार थी। 2006 के इस भयावह कांड में गरीब बच्चों और महिलाओं की हत्याओं ने पूरे देश को झकझोर दिया था। कोली को अब सभी 13 मामलों में बरी माना जाएगा, लेकिन पीड़ित परिवारों में गुस्सा भरा है, जो न्याय की मांग कर रहे हैं।
निठारी कांड 29 दिसंबर 2006 को पहली बार सामने आया था, जब नोएडा के सेक्टर-31 स्थित निठारी गांव में व्यवसायी मोनिंदर सिंह पंधेर के घर के पीछे एक नाले से आठ बच्चों के कंकाल बरामद हुए। पंधेर के घर में नौकर के रूप में काम करने वाले सुरेंद्र कोली को मुख्य आरोपी बनाया गया। जांच के दौरान घर के आसपास और नाले से 19 बच्चों और युवतियों के अवशेष मिले, जो ज्यादातर गरीब परिवारों के थे। ये बच्चे इलाके से लापता हो चुके थे। पुलिस ने आरोप लगाया कि कोली ने लड़कियों का अपहरण किया, बलात्कार किया, हत्या की, शवों को काटा और नाले में फेंक दिया। कैनिबलिज्म के आरोप भी लगे। पंधेर पर भी सहयोग का इल्जाम था।
इस कांड ने राष्ट्रीय स्तर पर सनसनी फैला दी। सीबीआई को जाँच सौंपी गई और दोषियों के खिलाफ 19 एफआईआर दर्ज की गईं। कोली पर 13 मामलों में हत्या, अपहरण, बलात्कार और सबूत नष्ट करने के आरोप थे, जबकि पंधेर पर 6 मामलों में। गाजियाबाद की स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने 2009-2011 में दोनों को कई मामलों में सजा सुनाई थी। लेकिन लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद अब कोली पूरी तरह बरी हो गए हैं।
हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक
कोली का यह अंतिम केस 14 वर्षीय लड़की की हत्या से जुड़ा था। स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने फरवरी 2009 में कोली को दोषी ठहराया और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2009 में सजा बरकरार रखी। सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में इसे पुष्टि की। लेकिन कोली ने 2015 में दया याचिका में देरी का हवाला देकर हाईकोर्ट से उम्रकैद में तब्दील करवाई।
16 अक्टूबर 2023 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोली को 12 मामलों और पंधेर को 2 मामलों में बरी कर दिया। हाईकोर्ट ने जांच में 'गंभीर लापरवाही, अविश्वसनीय सबूत और अनियमितताओं' का हवाला दिया। सीबीआई और यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन जुलाई 2025 में पीठ ने इन्हें खारिज कर दिया। कोली का अंतिम केस बाकी था, जहां सजा बरकरार थी। अक्टूबर 2025 में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोषसिद्धि 'केवल एक बयान और रसोई के चाकू की बरामदगी' पर आधारित है, जो अन्य मामलों में अविश्वसनीय साबित हुई। मंगलवार को क्यूरेटिव पिटिशन मंजूर करते हुए पीठ ने कहा, 'यह अपराध घिनौना है, पीड़ित परिवारों का दर्द असीम है, लेकिन कानूनी मानकों पर असली अपराधी का पता नहीं चला। दोषसिद्धि कल्पना पर नहीं टिक सकती।' जस्टिस विक्रम नाथ ने फैसला सुनाते हुए रिहाई का आदेश दिया।
पंधेर पहले ही बरी हो चुके हैं। उन पर एक मामले में अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम के तहत सजा हुई थी, लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि वे सजा काट चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
पीठ ने फैसले में निठारी कांड की 'भयावहता' को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि जांच में 'व्यापक लापरवाही' थी। कोली की दोषसिद्धि अन्य मामलों के सबूतों पर आधारित थी, जो बाद में अस्वीकार्य पाए गए। कोर्ट ने गंभीर खेद जताया कि असली अपराधी का पता नहीं चला।
असली अपराधी कौन?
सुप्रीम कोर्ट का फैसला निठारी कांड के एक अध्याय को बंद करता है, लेकिन सवाल बाकी है कि असली अपराधी कौन? गरीबों के बच्चों की हत्याओं ने सामाजिक असमानता उजागर की। कोर्ट ने पीड़ितों के दर्द को मान्यता दी, लेकिन न्यायिक प्रक्रिया की कमजोरियों पर सवाल उठाए। सवाल है कि क्या सरकार और सीबीआई सबूत जुटाने में नाकाम रहे और क्या दोषियों को सजा होगी?