भारत ने शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रताले जलविद्युत परियोजनाओं से संबंधित हेग के स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (Permanent Court of Arbitration) के ताजा फैसले को पूरी तरह खारिज कर दिया। विदेश मंत्रालय (MEA) ने इस फैसले को "पाकिस्तान के इशारे पर नई चाल" करार देते हुए कहा कि भारत ने इस तथाकथित मध्यस्थता न्यायालय की वैधता को कभी स्वीकार नहीं किया है। मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि यह कोर्ट 1960 के सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) का उल्लंघन करते हुए गठित किया गया है, और इसलिए इसके किसी भी फैसले या कार्यवाही को भारत अवैध और अमान्य मानता है।
मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, "आज (शुक्रवार), तथाकथित मध्यस्थता न्यायालय ने सिंधु जल संधि 1960 का स्पष्ट उल्लंघन करते हुए पाकिस्तान के पक्ष में अवॉर्ड जारी है। यह अवॉर्ड जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रताले जलविद्युत परियोजनाओं के संबंध में है। भारत ने इस तथाकथित न्यायालय के अस्तित्व को कानूनी रूप से कभी मान्यता नहीं दी।
यह विवाद 330 मेगावाट की किशनगंगा जलविद्युत परियोजना (जो झेलम नदी की सहायक नदी किशनगंगा पर बन रही है) और 850 मेगावाट की रताले परियोजना (जो चिनाब नदी पर बन रही है) से संबंधित है। पाकिस्तान ने इन परियोजनाओं के डिज़ाइन और जल प्रवाह पर संभावित प्रभाव को लेकर आपत्ति जताई है। उसका दावा है कि यह सिंधु जल संधि का उल्लंघन है।
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भारत ने इस मध्यस्थता न्यायालय की कार्यवाही में कभी भाग नहीं लिया, क्योंकि उसका मानना है कि इसका गठन संधि के प्रावधानों के खिलाफ है। भारत का कहना है कि संधि के तहत विवाद समाधान के लिए एक सिलसिलेवार तंत्र (graded mechanism) है। जिसके तहत पहले स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission) और फिर तटस्थ विशेषज्ञ (Neutral Expert) के जरिए विवाद सुलझाया जाना चाहिए। हालांकि, पाकिस्तान ने 2016 में एकतरफा रूप से मध्यस्थता न्यायालय का रुख किया, जिसे भारत ने अवैध माना।
विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में पाकिस्तान पर तीखा हमला बोला और कहा, "पाकिस्तान के इशारे पर यह नवीनतम चाल आतंकवाद के वैश्विक केंद्र के रूप में उसकी जिम्मेदारी से बचने का एक और हताश प्रयास है। इस फर्जी मध्यस्थता तंत्र का सहारा लेना पाकिस्तान की दशकों पुरानी धोखाधड़ी और अंतरराष्ट्रीय मंचों के दुरुपयोग की रणनीति की ही तरह है।"
ताज़ा विवाद और घटनाक्रम अप्रैल 2025 में पहलगाम आतंकी हमले के बाद आया है। पाकिस्तान प्रायोजित इस हमले में भारत के 26 नागरिक मारे गए थे। इसके बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई राजनयिक और आर्थिक कदम उठाए, जिसमें सिंधु जल संधि को निलंबित करना शामिल था। विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने तब घोषणा की थी कि यह संधि तब तक "निलंबित" रहेगी जब तक पाकिस्तान "विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से" सीमा पार आतंकवाद का समर्थन बंद नहीं करता।
भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि संधि के निलंबन के दौरान वह इसके किसी भी दायित्व को पूरा करने के लिए बाध्य नहीं है। मंत्रालय ने कहा, "कोई भी मध्यस्थता न्यायालय, विशेष रूप से यह अवैध रूप से गठित निकाय, जिसका कानून की नजर में कोई अस्तित्व नहीं है, भारत के संप्रभु अधिकारों के तहत की गई कार्रवाइयों की वैधता की जांच करने का अधिकार नहीं रखता।"
सिंधु जल संधि, जो 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के बीच करार से सामने आई थी, पूर्वी नदियों (सतलुज, ब्यास और रवि) का पानी पाकिस्तान को आवंटित करती है। संधि दोनों देशों की नदियों पर इस्तेमाल की अनुमति देती है। किशनगंगा और रताले परियोजनाएं ऐसी ही जलविद्युत परियोजनाएं हैं।
पाकिस्तान ने इस फैसले को चुनौती देने की बात कही है, और उसका कहना है कि वह संधि लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि, भारत ने मध्यस्थता न्यायालय के सभी फैसलों को खारिज कर दिया है और अपनी स्थिति पर डटा हुआ है।
यह तनाव भारत-पाकिस्तान संबंधों में लंबे समय से चली आ रही कड़वाहट को बताता है। यह 1947 के विभाजन, कश्मीर विवाद, और 2001, 2008, 2016, 2019, और 2025 के आतंकी हमलों से और गहरा गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह हालिया संकट, जिसमें ड्रोन युद्ध और क्रूज मिसाइलों का इस्तेमाल हुआ, दोनों देशों के बीच तकनीकी युद्ध की नई शुरुआत को भी बताता है। हालांकि मई 2025 में युद्धविराम की घोषणा हुई, लेकिन दोनों देशों के बीच राजनयिक और सैन्य तनाव बरकरार है, जिससे दक्षिण एशिया में स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं। उधर, मिडिल ईस्ट में भी संकट शुरू हो चुका है।