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पीएम केयर्स फंड फिर चर्चा में, हाईकोर्ट ने क्यों कहा- सूचना नहीं मिलेगी

दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें आयकर विभाग को आरटीआई के तहत आवेदक गिरीश मित्तल को पीएम केयर्स फंड में टैक्स छूट का दर्जा देने से संबंधित जानकारी का खुलासा करने का निर्देश दिया गया था। .

अदालत ने कहा कि आयकर अधिनियम आरटीआई अधिनियम से ऊपर है। उसने कहा कि ऐसी किसी एजेंसी से संबंधित जानकारी केवल विशेष परिस्थितियों में ही हासिल की जा सकती है। यह आदेश आयकर विभाग द्वारा अप्रैल 2022 के आदेश के खिलाफ एक अपील में पारित किया गया था, जिसमें उसे पीएम केयर्स फंड द्वारा दायर छूट आवेदन में प्रस्तुत दस्तावेजों की प्रतियां प्रदान करने का निर्देश दिया गया था।

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जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की बेंच ने 23 पेज के आदेश में कहा- "मांगी गई जानकारी का खुलासा करने के लिए किसी सामान्य अधिनियम के तहत किसी अन्य प्राधिकारी की संतुष्टि को रद्द नहीं किया जा सकता है।" हाईकोर्ट ने कहा-  “आयकर अधिनियम की धारा 138 (1) (बी) और धारा 138 (2) जो आयकर अधिनियम के तहत किसी तीसरे पक्ष से संबंधित जानकारी देने से संबंधित एक विशिष्ट प्रक्रिया है। यह आरटीआई अधिनियम की धारा 22 को खत्म कर देती है। यहां आवेदक द्वारा मांगी गई जानकारी स्पष्ट रूप से आयकर अधिनियम की धारा 138(1)(बी) के अंतर्गत आती है। इसलिए, ऐसी जानकारी प्रकट करने से पहले प्रधान मुख्य आयुक्त या मुख्य आयुक्त या प्रधान आयुक्त या आयुक्त की संतुष्टि आवश्यक है।“ 
जज ने कहा- “सीआईसी के पास आयकर अधिनियम की धारा 138 के तहत प्रदान की गई जानकारी पेश करने का निर्देश देने का अधिकार क्षेत्र नहीं है। किसी भी मामले में, भले ही उनके पास अधिकार क्षेत्र हो, पीएम केयर्स के मामले में सुनवाई का नोटिस देने का अधिकार उस धारा के तहत नहीं है।”
सुनवाई के दौरान आयकर विभाग ने विशेष वकील जोहेब हुसैन के माध्यम से पेश होकर कहा कि किसी करदाता से संबंधित किसी भी आयकर प्राधिकारी द्वारा प्राप्त या प्राप्त की गई कोई भी जानकारी केवल आयकर अधिनियम के तहत निर्धारित तरीके से मांगी जा सकती है, सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत नहीं।

विशेष वकील हुसैन ने कहा, केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) जानकारी नहीं दे सकते क्योंकि यह आयकर अधिनियम के तहत आदेश के विपरीत है। यह भी तर्क दिया गया कि मांगी गई जानकारी को आरटीआई अधिनियम के तहत छूट दी गई थी क्योंकि इसका खुलासा पीएम केयर्स फंड की सुनवाई के बिना नहीं किया जा सकता था।

अधिवक्ता प्रणव सचदेवा के जरिए आवेदक ने तर्क दिया कि यह कोष जनता की सेवा के लिए बनाया गया है। आवेदक त्वरित मंजूरी देने में आयकर विभाग द्वारा अपनाई गई सटीक प्रक्रिया जानना चाहता था और यह देखना चाहता था कि क्या विभाग ने छूट देते समय किसी नियम की अनदेखी की है। 

क्या है पीएम केयर्स फंड, कितना पैसा आया, कहां गया

PM CARES फंड को कोविड-19 महामारी के दौरान स्थापित किया गया था। इस फंड से हमें कोविड और अन्य आपातकालीन स्थितियों से लड़ने में मदद मिलनी थी। लेकिन यह विवादों में घिर गया। पीएमओ ने दिल्ली हाईकोर्ट को स्पष्ट कर दिया है कि यह कोई 'सार्वजनिक प्राधिकरण' नहीं है; और अपनी कार्यप्रणाली के प्रति जनता के प्रति जवाबदेह नहीं है! इसलिए इसके बारे में कोई सूचना सार्वजनिक नहीं की जा सकती।

बिजनेस स्टैंडर्ड ने अप्रैल 2023 में अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने 2019-20 और 2021-22 के बीच पीएम केयर फंड में कम से कम 2913.6 करोड़ रुपये का योगदान दिया। बिजनेस स्टैंडर्ड ने ऐसी 57 कंपनियों की पहचान की थी। सूची में शीर्ष पांच दानदाताओं में तेल और प्राकृतिक गैस निगम, एनटीपीसी, पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन और पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन हैं। सभी 200 करोड़ से अधिक का योगदान दे रहे थे।

पीएम केयर्स फंड को भी एफसीआरए के तहत छूट दी गई है, और आधिकारिक रिकॉर्ड यह भी बताते हैं कि फंड को पिछले तीन वर्षों के दौरान विदेशी दान के रूप में 535.44 करोड़ रुपये प्राप्त हुए, जिसमें चीन से दान भी शामिल है।

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तो कुल मिलाकर फंड को तीन वर्षों में यानी 2020 से 2023 तक 12,691.82 करोड़ रुपये का दान मिला है। जबकि इसके रसीद और भुगतान खातों के अनुसार, मार्च 2022 तक इसमें 5,415.65 करोड़ रुपये का बिना खर्च किया गया फंड शेष था। यह जांचने के लिए पर्याप्त डेटा नहीं है कि पैसा खर्च क्यों नहीं किया गया। यह डेटा भी नहीं है कि जो रकम खर्च की गई, वो कहां खर्च की गई। सवाल यह है कि इस फंड को निजी क्यों बनाया गया। सरकारी कंपनियों ने फंड में महत्वपूर्ण फंड का योगदान दिया है, जो सरकार को अपने ही खर्च के प्रति जवाबदेह बनाता है।

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क़मर वहीद नक़वी
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