स्वतंत्रता दिवस पर सावरकर को महात्मा गांधी से 'बड़ा' दिखाने के मोदी सरकार के एक विवादित पोस्टर पर हंगामा खड़ा हो गया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि जिन सावरकर पर देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का मुक़दमा चला उन्हें महात्मा से बड़ा दिखाने की कोशिश की गई है। बीजेपी पर हमला करते हुए कांग्रेस ने कहा है कि पेट्रोल में इथेनॉल की मिलावट करते-करते अब आप स्वतंत्रता सेनानियों में भी मिलावट करने लग गए। पंडित नेहरू और सरदार पटेल को कमतर दिखाने का आरोप लगाते हुए इसने कहा है कि यह स्वतंत्रता संग्राम के नायकों की विरासत को कमजोर करने की साजिश है।

दरअसल, यह विवाद तब खड़ा हुआ जब भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पेट्रोलियम मंत्रालय ने एक पोस्टर साझा किया। इस पोस्टर में स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर की तस्वीर को प्रमुखता से दिखाया गया है। इस तस्वीर में सावरकर और गांधी के अलावा भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर है। सावरकर की तस्वीर सबसे ऊपर दायीं तरफ़ है और फिर महात्मा गांधी की तस्वीर थोड़ी नीचे बायीं तरफ़। इसके बाद भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर है। इस पोस्टर को कांग्रेस पार्टी ने महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे स्वतंत्रता संग्राम के दिग्गजों के अपमान के रूप में देखा है। कांग्रेस नेताओं ने इस कदम को इतिहास के साथ छेड़छाड़ और स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत को कमजोर करने का प्रयास करार दिया है।

कांग्रेस नेताओं का तीखा हमला

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पवन खेड़ा ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, 'पेट्रोल में इथेनॉल की मिलावट करते-करते अब आप स्वतंत्रता सेनानियों में भी मिलावट करने लग गए।' पार्टी ने इसे महिमामंडन करने का प्रयास बताया और इसे स्वतंत्रता दिवस की भावना के खिलाफ करार दिया।
कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने इस कदम को 'ऑरवेलियन' करार देते हुए कहा, "हर स्वतंत्रता दिवस पर मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने और देशद्रोहियों को नायक बनाने में जुटी रहती है। यह ऑरवेलियन छवि पंडित नेहरू और सरदार पटेल जी को पूरी तरह से नकारती है, हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति उनकी अवमानना को दिखाती है। छवि में सावरकर जैसे अंग्रेज़ों के दया याचना करने वाले को आज़ादी दिलाने वाले और निर्विवाद महात्मा से ऊपर उठाती है। उन लोगों से और क्या कहा जा सकता है जिनके पूर्वजों ने अंग्रेजों के साथ मिलकर विभाजन और नफ़रत के बीज बोए थे जो आज भी हमें परेशान करते हैं?"
कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने भी इस मुद्दे पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, 'जिस सावरकर पर गांधी की हत्या का मुकदमा चला, उसे महात्मा से बड़ा दिखा दिया।' श्रीनेत ने इसे स्वतंत्रता संग्राम के उन नायकों का अपमान बताया जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया।

विवाद का केंद्र: सावरकर की भूमिका

विनायक दामोदर सावरकर को हिंदुत्व विचारधारा का प्रणेता माना जाता है। वह स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका के लिए एक विवादास्पद व्यक्तित्व रहे हैं। कुछ लोग उन्हें एक प्रखर राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देखते हैं जिन्होंने काला पानी की सजा काटी, जबकि अन्य उनकी अंग्रेजों से माफी मांगने और महात्मा गांधी की हत्या के मामले में मुकदमा चलने की वजह से उनकी भूमिका पर सवाल उठाते हैं।

सावरकर पर 1948 में महात्मा गांधी की हत्या की साजिश में शामिल होने का मुकदमा चला था, हालांकि सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया गया था। 

कांग्रेस नेताओं ने इस तथ्य को बार-बार उजागर करते हुए कहा कि सावरकर को गांधी जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी के साथ तुलना करना न केवल अनुचित है, बल्कि यह उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान है, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।

पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर साझा किए गए पोस्टर को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएँ देखने को मिलीं। कई यूजरों ने इसे इतिहास के साथ छेड़छाड़ और महिमामंडन करने का प्रयास बताया। कांग्रेस समर्थकों और अन्य यूजरों ने इस पोस्टर को लेकर सरकार पर निशाना साधा और इसे राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों की अवमानना बताया। 

सरकार की प्रतिक्रिया

पेट्रोलियम मंत्रालय या केंद्र सरकार की ओर से इस विवाद पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, इस तरह के कदम पहले भी विवादों का कारण बन चुके हैं, जब सरकार ने सावरकर को स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नायकों में से एक के रूप में पेश करने की कोशिश की थी।

इतिहास के पुनर्लेखन का आरोप

कांग्रेस नेताओं ने इस घटना को इतिहास को पुनर्लेखन करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा बताया। वेणुगोपाल ने कहा, 'हर स्वतंत्रता दिवस पर मोदी सरकार इतिहास को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करती है और देशद्रोहियों को नायक बनाने की कोशिश करती है।' उन्होंने इसे एक सुनियोजित प्रयास बताया, जिसका उद्देश्य स्वतंत्रता संग्राम की मूल भावना को कमजोर करना और उन नेताओं को हाशिए पर डालना है, जिन्होंने अहिंसा और एकता के सिद्धांतों पर देश को आज़ादी दिलाई।

गांधी और सावरकर पर बहस

इस विवाद ने एक बार फिर सावरकर और गांधी के बीच की वैचारिक और ऐतिहासिक बहस को हवा दी है। जहां एक ओर सावरकर को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का प्रतीक माना जाता है, वहीं दूसरी ओर गांधी को अहिंसा और सर्वधर्म समभाव का प्रतीक माना जाता है। इस तरह के विवादों ने देश में वैचारिक ध्रुवीकरण को और गहरा कर दिया है, जिससे राजनीतिक और सामाजिक चर्चाएं और तेज हो गई हैं।

कई इतिहासकारों और विश्लेषकों का मानना है कि सावरकर की भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना और गांधी, नेहरू, और पटेल जैसे नेताओं को कमतर दिखाना एक विशेष विचारधारा को बढ़ावा देने का प्रयास हो सकता है। इस मुद्दे पर आगे और बहस होने की संभावना है, क्योंकि स्वतंत्रता संग्राम के नायकों की विरासत को लेकर देश में हमेशा से संवेदनशीलता रही है।

स्वतंत्रता दिवस जैसे पवित्र अवसर पर सावरकर को गांधी से ऊपर दिखाने वाला पोस्टर न केवल कांग्रेस बल्कि कई अन्य लोगों के लिए भी अपमानजनक रहा है। यह घटना न केवल इतिहास की व्याख्या को लेकर मतभेदों को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के प्रति सम्मान और उनकी विरासत को संरक्षित करने की ज़िम्मेदारी कितनी अहम है। इस विवाद ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि इतिहास को कैसे याद किया जाए और किन नायकों को किस तरह से सम्मान दिया जाए।