प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गलवान घाटी संघर्ष के बाद पहली बार चीन की यात्रा पर जा रहे हैं। जानिए, उनके इस दौरे के राजनीतिक और कूटनीतिक मायने क्या।
प्रधानमंत्री मोदी की संभावित चीन यात्रा को भारत-चीन संबंधों में सुधार के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। गलवान झड़प के बाद दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था, लेकिन हाल के महीनों में सीमा पर तनाव कम करने के प्रयासों में प्रगति हुई है। अक्टूबर 2023 में दोनों देशों ने डेमचोक और देपसांग में सैन्य गतिरोध को समाप्त करने के लिए एक समझौता किया था।
भारत चीन संबंधों में सुधार
इस यात्रा से पहले विदेश मंत्री एस. जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में अपने चीनी समकक्षों से मुलाक़ात की थी।
जयशंकर ने जुलाई 2025 में बीजिंग में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की थी, जहां उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य करने और सीमा पर तनाव कम करने पर चर्चा की थी। जयशंकर ने कहा था कि पिछले नौ महीनों में दोनों देशों के बीच संबंधों में अच्छी प्रगति हुई है। उन्होंने कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली को भी एक सकारात्मक कदम बताया था।
पीएम दौरे का रणनीतिक महत्व
पीएम मोदी की यह यात्रा भारत की बहुपक्षीय कूटनीति को दिखाती है, जहां भारत अमेरिका, यूरोप, और अन्य पश्चिमी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने के साथ-साथ रूस और चीन जैसे देशों के साथ भी संतुलन बनाए रख रहा है। गलवान झड़प के बाद दोनों देशों के बीच अविश्वास की दीवार को तोड़ने के लिए यह दौरा एक बड़ा अवसर हो सकता है।
एससीओ शिखर सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मोदी की संभावित मुलाकात पर भी सभी की नजरें टिकी हैं। यह मुलाकात इसलिए भी अहम है, क्योंकि भारत 2026 में BRICS की अध्यक्षता संभालेगा।
डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ चेतावनी
प्रधानमंत्री मोदी की संभावित चीन यात्रा का समय तब आया है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के ख़िलाफ़ रूसी तेल आयात को लेकर कड़ी आलोचना की है और 25% टैरिफ़ को 'काफी हद तक' बढ़ाने की धमकी दी है। ट्रंप ने भारत और रूस को 'मृत अर्थव्यवस्थाएँ' क़रार देते हुए कहा कि भारत रूसी तेल खरीदकर यूक्रेन संकट से लाभ उठा रहा है।
भारत ने इसका कड़ा जवाब देते हुए कहा कि रूसी तेल का आयात उसकी राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए है और यह पारदर्शी तरीके से किया जा रहा है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने कहा, 'भारत और रूस के बीच स्थिर और टाइम-टेस्टेड साझेदारी है। हमारे द्विपक्षीय संबंध अपने गुणों पर टिके हैं और इन्हें किसी तीसरे देश के नज़रिए से नहीं देखा जाना चाहिए।'
जानकारों का कहना है कि ट्रंप की टैरिफ़ धमकी भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। 2023-24 में भारत ने अमेरिका को 77.5 अरब डॉलर के सामान का निर्यात किया था। ट्रंप ने भारत को 'टैरिफ़ किंग' कहकर आलोचना की है और अमेरिकी सामानों पर कम टैरिफ़ की मांग की है। भारत ने जवाब में कुछ आयात शुल्क कम किए हैं।
अजीत डोभाल की रूस यात्रा
इस बीच, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल मॉस्को में हैं, जहां वे भारत-रूस रक्षा और ऊर्जा सहयोग को मज़बूत करने पर चर्चा कर रहे हैं। यह यात्रा पहले से तय थी, लेकिन ट्रंप की टैरिफ़ धमकी के बाद इसका महत्व बढ़ गया है। माना जा रहा है कि डोभाल रूसी अधिकारियों के साथ S-400 मिसाइल प्रणाली की बाकी डिलीवरी और अन्य रक्षा खरीद पर चर्चा करेंगे। इसके अलावा, डोभाल के रूसी तेल आपूर्ति और भारत-रूस व्यापार पर भी बात करने की संभावना है। भारत ने 2022 के बाद से रूस से तेल आयात को कई गुना बढ़ाया है, जो अब उसके कुल तेल आयात का लगभग 40% है। भारत का कहना है कि रूसी तेल सस्ता होने के कारण यह उसके उपभोक्ताओं के हित में है। डोभाल की यात्रा रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की इस साल के अंत में भारत यात्रा की तैयारियों का हिस्सा भी है।
पीएम की यात्रा अहम क्यों?
मोदी की संभावित चीन यात्रा और डोभाल की रूस यात्रा भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को दिखाती है। ट्रंप प्रशासन के दबाव के बावजूद भारत ने रूस के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को बनाए रखने का फ़ैसला किया है। भारत और चीन के बीच संबंधों में सुधार की कोशिशें भी जारी हैं। हालांकि, अप्रैल में पहलगाम आतंकवादी हमले और उसके बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव ने क्षेत्रीय सुरक्षा को जटिल बना दिया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एससीओ शिखर सम्मेलन के लिए संभावित चीन यात्रा, डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ़ धमकियों और अजीत डोभाल की रूस यात्रा भारत की उलझी जियो-पॉलिटिकल स्थिति को दिखाती है। भारत एक ओर रूस के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत कर रहा है, वहीं दूसरी ओर चीन के साथ संबंधों को सामान्य करने की कोशिश कर रहा है। ट्रंप प्रशासन के दबाव के बीच भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को बनाए रखने के लिए संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है। आने वाले दिन यह तय करेंगे कि ये कूटनीतिक क़दम भारत के लिए कितने फायदेमंद साबित होंगे।