प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान ने भारतीय राजनीति में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है जिसमें उन्होंने कहा है कि यदि वक़्फ़ संपत्तियों का उपयोग ईमानदारी से किया गया होता तो मुस्लिम युवाओं को साइकिल पंक्चर बनाकर अपनी आजीविका कमाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। इस बयान पर विपक्षी नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इसे न केवल आपत्तिजनक बल्कि प्रधानमंत्री पद की गरिमा के ख़िलाफ़ बताया है।

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इस बयान की कड़ी आलोचना करते हुए सवाल उठाया कि पीएम मोदी ने अपने 11 साल के शासन में ग़रीबों, चाहे हिंदू हों या मुस्लिम, के लिए क्या किया है। ओवैसी ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट पर लिखा, 'वक़्फ़ संपत्तियों के साथ जो हुआ, उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि वक़्फ़ क़ानून हमेशा से कमजोर थे। मोदी के वक़्फ़ संशोधन इसे और कमजोर करेंगे।' उन्होंने यह भी कहा कि पीएम का बयान मुस्लिम समुदाय को हाशिए पर धकेलने की कोशिश है।

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कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने इस बयान को 'सोशल मीडिया ट्रोल्स की भाषा' क़रार देते हुए कहा कि यह प्रधानमंत्री जैसे पद की गरिमा को ठेस पहुँचाता है। उन्होंने कहा, 'मुसलमान सिर्फ़ पंक्चर नहीं बनाते। मैं बता सकता हूँ कि मुस्लिमों ने क्या-क्या बनाया है, लेकिन यह समय उसका नहीं है।'


वक़्फ़ संपत्तियाँ लंबे समय से भारतीय राजनीति में चर्चा का विषय रही हैं। पीएम मोदी ने अपने भाषण में दावा किया कि लाखों हेक्टेयर वक़्फ़ संपत्तियों का दुरुपयोग हुआ है, जिसके कारण मुस्लिम समुदाय के युवाओं को आर्थिक रूप से संघर्ष करना पड़ रहा है। उन्होंने वक़्फ़ संशोधन विधेयक का उल्लेख करते हुए इसे मुस्लिम समुदाय के हित में बताया। हालाँकि, विपक्ष का कहना है कि यह विधेयक वक़्फ़ बोर्ड की स्वायत्तता को कमजोर करेगा और इसका असली मक़सद मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाना है।

यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश में वक़्फ़ संशोधन विधेयक को लेकर पहले से ही तनाव है। विपक्ष ने इसे धार्मिक ध्रुवीकरण का हथियार बताया है, जबकि सत्तारूढ़ बीजेपी का दावा है कि यह विधेयक वक़्फ़ संपत्तियों में पारदर्शिता लाने के लिए है। पीएम के इस बयान ने इस मुद्दे को और हवा दी है, जिससे विपक्ष को बीजेपी पर हमला करने का एक और मौक़ा मिल गया है।

इमरान प्रतापगढ़ी ने अपने बयान में यह भी सवाल उठाया कि यदि बीजेपी मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए इतनी चिंतित है तो उसने मुख्तार अब्बास नक़वी, शाहनवाज हुसैन, एमजे अकबर और जफर इस्लाम जैसे अपने प्रमुख मुस्लिम नेताओं को किनारे क्यों कर दिया। उन्होंने यह भी तंज कसा कि बीजेपी के पास लोकसभा में वक़्फ़ विधेयक पेश करने के लिए एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है।

कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने सवाल उठाया कि प्रधानमंत्री ने संविधान निर्माता बीआर आंबेडकर की जयंती पर संसद में आयोजित समारोह में उन्हें श्रद्धांजलि क्यों नहीं दी। उन्होंने प्रधानमंत्री के उस सवाल का जवाब भी दिया जिसमें उन्होंने सवाल किया कि कांग्रेस किसी मुस्लिम को पार्टी के अध्यक्ष क्यों नहीं बताती? इस पर कांग्रेस प्रवक्ता ने पूछा कि बीजेपी में दलित मुख्यमंत्री क्यों नहीं है। 

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प्रधानमंत्री ने सोमवार को कांग्रेस पर तुष्टीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया और कहा कि इस नज़रिए ने मुसलमानों को भी नुक़सान पहुँचाया है। उन्होंने कहा, 'कांग्रेस ने केवल कुछ कट्टरपंथियों को खुश किया है। बाक़ी समाज अशिक्षित और ग़रीब बना हुआ है। इस गलत दृष्टिकोण का सबसे बड़ा सबूत वक़्फ़ क़ानून है।' वक़्फ़ संशोधन विधेयक इस महीने की शुरुआत में संसद से पारित हो गया और अब यह एक अधिनियम है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस क़ानून का विरोध किया और आरोप लगाया कि सरकार वक़्फ़ संपत्तियों पर नज़र रख रही है और अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बना रही है। बीजेपी का कहना है कि विधेयक वक़्फ़ संपत्तियों के निर्बाध प्रबंधन के लिए बहुत ज़रूरी संशोधन लेकर आया है।


बहरहाल, पीएम का यह बयान न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक स्तर पर भी बहस का कारण बन गया है। मुस्लिम समुदाय के कुछ नेताओं और बुद्धिजीवियों ने इसे एक पूरे समुदाय को निम्न-स्तरीय पेशे से जोड़ने की कोशिश के रूप में देखा है, जो सामाजिक एकता को नुक़सान पहुँचा सकता है। सोशल मीडिया पर भी इस बयान को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएँ देखने को मिलीं, जहाँ कुछ लोग इसे मजाक के रूप में ले रहे हैं तो कुछ ने इसे गंभीरता से लेते हुए नाराज़गी जताई।

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यह विवाद एक बार फिर भारत में धार्मिक और सामाजिक मुद्दों पर गहरे विभाजन को उजागर करता है। विपक्ष इस बयान को बीजेपी के ख़िलाफ़ एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकता है, खासकर उन राज्यों में जहां मुस्लिम मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

प्रधानमंत्री का 'मुसलमान पंक्चर बनाते हैं' बयान केवल एक टिप्पणी नहीं, बल्कि देश की जटिल राजनीति को दिखाता है। विपक्ष ने इसे एक अवसर के रूप में लिया है, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या यह बहस वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और मुस्लिम समुदाय के आर्थिक सशक्तिकरण की वास्तविक समस्याओं को हल करने की दिशा में ले जाएगी, या फिर यह केवल राजनीतिक स्कोर सेटल करने का एक और दौर बनकर रह जाएगा।