प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय यानी पीएमएमएल ने जवाहरलाल नेहरू के ऐतिहासिक कागजातों को वापस लाने के लिए क़ानूनी जंग का ऐलान कर दिया है। नेहरू के एडविना माउंटबेटन और अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे दिग्गजों के साथ पत्राचार वाले ये बेशक़ीमती दस्तावेज 2008 में कथित तौर पर सोनिया गांधी द्वारा ले जाए गए थे। 

प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय यानी पीएमएमएल को पहले नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी यानी एनएमएमएल के नाम से जाना जाता था। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार पीएमएमएल ने नेहरू के निजी कागजातों को वापस पाने का यह निर्णय सोमवार को पीएमएमएल सोसाइटी की वार्षिक आम बैठक में लिया। इस बैठक की अध्यक्षता खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की।

नेहरू से जुड़े दस्तावेज़ में क्या हैं?

पीएमएमएल के रिकॉर्डों के आधार पर दावा किया जाता रहा है कि 2008 में सोनिया गांधी द्वारा 51 कार्टनों में नेहरू से संबंधित अहम दस्तावेज ले जाए गए थे। इनमें नेहरू के प्रमुख व्यक्तियों जैसे स्वतंत्रता सेनानी जयप्रकाश नारायण, ब्रिटिश वायसराय की पत्नी एडविना माउंटबेटन, वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन, स्वतंत्रता सेनानी अरुणा आसफ अली, नेहरू की बहन विजया लक्ष्मी पंडित और बाबू जगजीवन राम के साथ पत्राचार शामिल हैं। ये दस्तावेज ऐतिहासिक और शोध के नज़रिए से बेहद मूल्यवान हैं, क्योंकि ये भारत के पहले प्रधानमंत्री के विचारों, नीतियों और उनके समय की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों को समझने में अहम स्रोत हैं।

इन कागजातों को दशकों पहले नेहरू-गांधी परिवार द्वारा नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी को दान किया गया था, ताकि वे विद्वानों, इतिहासकारों और जनता के लिए सुलभ रहें। हालांकि, 2008 में इन्हें संग्रहालय से हटा लिया गया, जिसके बाद से यह मुद्दा समय-समय पर चर्चा में रहा है।

सोनिया गांधी को लिखा था ख़त

इस साल की शुरुआत में पीएमएमएल प्रशासन ने पहली बार सोनिया गांधी के कार्यालय को एक आधिकारिक पत्र भेजकर इन कागजातों को वापस करने की मांग की थी। पत्र में अनुरोध किया गया था कि ये दस्तावेज विद्वानों और शोधकर्ताओं के लिए फिर से उपलब्ध कराए जाएं। हालांकि, इस पत्र का कोई जवाब नहीं मिला और न ही कागजात वापस किए गए।

सोमवार को हुई पीएमएमएल सोसाइटी की वार्षिक आम बैठक में इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा हुई। अंग्रेज़ी अख़बार ने बैठक में मौजूद सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी है कि सदस्यों के बीच इस बात पर सहमति बनी कि इन कागजातों को वापस लाने के लिए अब क़ानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। यह निर्णय इसलिए भी अहम है, क्योंकि ये दस्तावेज न केवल नेहरू की व्यक्तिगत विरासत का हिस्सा हैं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय धरोहर का भी एक अभिन्न अंग हैं।
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रिपोर्ट के अनुसार बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने न केवल नेहरू के कागजातों के मुद्दे पर जोर दिया, बल्कि देश के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने पर जोर दिया। उन्होंने देश के सभी संग्रहालयों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस विकसित करने और भारत का एक संग्रहालय नक्शा तैयार करने का सुझाव दिया। इस प्रस्ताव का उद्देश्य देश की समृद्ध विरासत को डिजिटल और फिजिकल रूप से एकीकृत करना है, ताकि यह जनता और शोधकर्ताओं के लिए आसानी से सुलभ हो।

नेहरू से जुड़े कागजातों का महत्व

नेहरू के कागजात ऐतिहासिक शोध के लिए अमूल्य हैं। इनमें भारत के स्वतंत्रता संग्राम, आजादी के बाद के शुरुआती वर्षों, विदेश नीति, और नेहरू के वैश्विक नेताओं के साथ संबंधों से जुड़ी अहम जानकारी शामिल है। एडविना माउंटबेटन के साथ उनके पत्राचार न केवल व्यक्तिगत स्तर पर उनके संबंधों को दिखाते हैं, बल्कि भारत-ब्रिटेन संबंधों के संदर्भ में भी अहम हैं। इसी तरह, अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ पत्राचार भारत के वैज्ञानिक नज़रिए और वैश्विक बौद्धिक संवाद को रेखांकित करते हैं।
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पीएमएमएल अब इस मामले में कानूनी विशेषज्ञों से परामर्श करेगा और कानूनी प्रक्रिया शुरू करेगा। हालांकि, यह साफ़ नहीं है कि इस प्रक्रिया में कितना समय लगेगा या इसका परिणाम क्या होगा। इस बीच, यह मामला राजनीतिक और ऐतिहासिक दोनों नज़रिए से चर्चा का विषय बना हुआ है। कुछ लोग इसे नेहरू की विरासत को संरक्षित करने की दिशा में एक सकारात्मक क़दम मान रहे हैं, जबकि अन्य इसे राजनीतिक विवाद के रूप में देख रहे हैं।