Anil Ambani Company Fraud: एसबीआई ने फंड के दुरुपयोग का हवाला देते हुए अनिल अंबानी की पुरानी कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस के लोन खाते को फ्रॉड बताया है। इस मामले की सीबीआई जांच की मांग हो रही है।
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने अनिल अंबानी के नेतृत्व वाली टेलीकॉम कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) के लोन खाते को 'धोखाधड़ी' के रूप में रखा है। बैंक ने कंपनी के पूर्व निदेशक अनिल अंबानी का नाम भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को भेजने का फैसला किया है। यह जानकारी कंपनी ने एक रेगुलेटरी फाइलिंग में दी, जिसमें बताया गया कि उसे 23 जून 2025 को एसबीआई से एक पत्र प्राप्त हुआ, जो 30 जून को कंपनी तक पहुंचा। इतनी बड़ी धोखाधड़ी में अभी तक अनिल अंबानी के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुआ। अनिल अंबानी भारत के प्रमुख उद्योगपति मुकेश अंबानी के भाई हैं। अनिल अंबानी तमाम तरह के विवादों में फंसे रहे हैं, इसके बावजूद उन्हें भारत सरकार से कई कॉन्ट्रैक्ट प्राप्त हुए।
एसबीआई से लोन लेकर उसे दूसरे कर्ज चुकाने में लगाया
एसबीआई की धोखाधड़ी पहचान समिति (एफआईसी) ने अपने पत्र में कहा कि लोन फंड के इस्तेमाल में अनियमितताएं पाई गईं। समिति ने पाया कि रिलायंस कम्युनिकेशंस ने कुल 31,580 करोड़ रुपये के लोन में से 13,667 करोड़ रुपये (लगभग 44%) का इस्तेमाल अन्य कर्जों और अन्य वित्तीय दायित्वों को चुकाने में किया, जबकि 12,692 करोड़ रुपये का भुगतान संबद्ध पक्षों को किया गया, जो बैंक के उधार दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है।
पत्र में कहा गया, "हमने अपने शो-कॉज नोटिस के जवाबों का संज्ञान लिया है और उनकी जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है कि कंपनी ने लोन दस्तावेजों की शर्तों का पालन न करने या खाते के संचालन में देखी गई अनियमितताओं को संतोषजनक ढंग से स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त कारण नहीं दिए।"
एसबीआई ने यह भी उल्लेख किया कि देना बैंक से प्राप्त 250 करोड़ रुपये का ऋण, जो वैधानिक बकाये के लिए था, उसका इस्तेमाल निर्धारित उद्देश्य के लिए नहीं किया गया। इसके बजाय, यह राशि रिलायंस कम्युनिकेशंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (आरसीआईएल) को अंतर-कॉर्पोरेट जमा के रूप में दी गई और बाद में इसे बाहरी वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) ऋण चुकाने के लिए उपयोग किया गया।
इसी तरह, इंडिया इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी लिमिटेड (आईआईएफसीएल) से पूंजीगत व्यय के लिए स्वीकृत 248 करोड़ रुपये के ऋण में से 63 करोड़ रुपये रिलायंस इंफ्राटेल लिमिटेड (आरआईटीएल) और 77 करोड़ रुपये आरआईईएल को ऋण चुकाने के लिए दिए गए। ये लेनदेन सीधे इन कंपनियों को न करके आरसीआईएल के जरिए किए गए, जिसका कारण प्रबंधन या अनिल अंबानी द्वारा नहीं बताया गया। समिति ने इसे धन के दुरुपयोग और विश्वास का उल्लंघन माना।
रिलायंस कम्युनिकेशंस ने अपनी रेगुलेटरी फाइलिंग में कहा कि यह मामला 2016 से पहले का है और कंपनी वर्तमान में कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) की प्रक्रिया में है, जो 2019 में शुरू हुई थी। कंपनी का कहना है कि दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) के तहत, इन ऋणों को समाधान योजना के माध्यम से हल किया जाना है। यानी दिवालिया घोषित किया जाना है। कंपनी ने यह भी दावा किया कि आईबीसी की धारा 32ए के तहत, अगर राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) समाधान योजना को मंजूरी देता है, तो कंपनी को सीआईआरपी शुरू होने से पहले के कथित अपराधों के लिए दायित्व से छूट मिल जाएगी।
अगर अनिल अंबानी और उनकी कंपनी को दिवालिया घोषित किया जाता है तो उन्हें एसबीआई के लोग को चुकाना नहीं पड़ेगा। बेशक एसबीआई ने उनकी कंपनी को फ्रॉड घोषित कर दिया है। अनिल अंबानी बहुत रसूख वाले कारोबारी हैं। मौजूदा सरकार से उनके सीधे संबंध हैं।
अनिल अंबानी के वकीलों ने एसबीआई के इस कदम को "एक्स-पार्टे" और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन बताया। उन्होंने दावा किया कि बैंक ने अंबानी के कम्युनिकेशन का जवाब नहीं दिया और न ही उन्हें व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि यह आदेश सुप्रीम कोर्ट, बॉम्बे हाई कोर्ट और आरबीआई दिशानिर्देशों के खिलाफ है।
आरबीआई के दिशानिर्देशों के अनुसार, किसी खाते को 'धोखाधड़ी' (फ्रॉड) घोषित करने के बाद, बैंक को 21 दिनों के भीतर आरबीआई को इसकी सूचना देनी होती है और मामले को पुलिस या केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपना होता है।
धोखाधड़ी के लिए जिम्मेदार उधारकर्ता, जिसमें निदेशक और अन्य पूर्णकालिक निदेशक शामिल हैं, को पांच साल तक बैंकों, विकास वित्तीय संस्थानों और सरकारी स्वामित्व वाले गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से वित्त प्राप्त करने से रोक दिया जाता है।
रिलायंस कम्युनिकेशंस ने कहा कि वह इस मामले में कानूनी सलाह ले रही है और आगे की कार्रवाई पर विचार कर रही है। यह कदम अनिल अंबानी के लिए एक और झटका है, जिनका व्यापारिक साम्राज्य पहले से ही कई वित्तीय और कानूनी चुनौतियों का सामना कर रहा है।