स्टैंड-अप कॉमेडियन समय रैना सहित पाँच कॉमेडियनों को विकलांग व्यक्तियों का मजाक उड़ाने के लिए माफी मांगनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को यह निर्देश समय रैना और अन्य यूट्यूब चैनलों को दिया। कोर्ट ने उनको अपने सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और यूट्यूब चैनलों पर साफ़ माफ़ी दिखाने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि विकलांग लोगों का मजाक उड़ाने पर सोशल मीडिया के इंफ्लूएंसरों पर जुर्माना भी लगाया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब आप भाषण को कॉमर्शियलाइज कर रहे हैं, तो आप किसी समुदाय की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचा सकते। कोर्ट ने समय रैना और कई अन्य हास्य कलाकारों को विकलांग व्यक्तियों का मजाक उड़ाने वाले चुटकुलों के लिए फटकार लगाई। इसने कहा कि विकलांग व्यक्तियों का मजाक उड़ाना मानवाधिकारों का उल्लंघन है और समाज में संवेदनशीलता की कमी को दिखाता है।
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जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अपराध से ज़्यादा पश्चाताप होना चाहिए। कोर्ट ने माफ़ी के अलावा दंड और मुआवजे पर बाद में फ़ैसला लेने का संकेत दिया और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को पक्षकार बनाने की याचिका स्वीकार कर ली।

यह फ़ैसला एसएमए क्योर फाउंडेशन द्वारा दायर याचिका पर आया है, जिसमें समय रैना, विपुन गोयल, बलराज परमजीत सिंह घई, सोनाली ठक्कर उर्फ सोनाली आदित्य देसाई और निशांत जगदीश तंवर द्वारा विकलांगों का मजाक उड़ाने वाले वीडियो को चिह्नित किया गया था। संगठन ने विकलांगों का मजाक उड़ाने से रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी करने की भी मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि इस तरह की सामग्री न केवल प्रभावित व्यक्तियों को मानसिक आघात पहुँचाती है, बल्कि समाज में पूर्वाग्रहों को बढ़ावा देती है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दूसरे समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले व्यावसायिक भाषणों पर लागू नहीं हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से दिव्यांगजनों, महिलाओं, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों का अपमान करने या उनका उपहास करने वाले भाषणों पर अंकुश लगाने के लिए सोशल मीडिया के लिए दिशानिर्देश बनाने को कहा। इसने कहा, 'सोशल मीडिया नियमों के लिए दिशानिर्देश बिना सोचे-समझे नहीं बनाए जाने चाहिए, बल्कि सभी जुड़े लोगों के विचारों वाले व्यापक मानदंडों पर आधारित होने चाहिए।'

'इंडियाज गॉट लेटेंट' से जुड़ा मामला

यह मामला हाल ही में वायरल हुए 'इंडियाज गॉट लेटेंट' विवाद से जुड़ा है, जिसमें इन कॉमेडियनों ने अपने पॉडकास्ट और यूट्यूब वीडियो में विकलांग व्यक्तियों की नकल करके हास्य का प्रयास किया था। याचिका में आरोप लगाया गया कि ये मजाक विकलांग व्यक्तियों की गरिमा का अपमान करते हैं और मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं। स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी जैसी बीमारियों से प्रभावित लोगों के लिए काम करने वाले एसएमए क्योर फाउंडेशन ने तर्क दिया कि इस तरह की सामग्री सोशल मीडिया पर बेतहाशा फैल रही है, जो पूर्वाग्रहों को बढ़ावा देती है।
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कोर्ट ने पहले याचिका पर नोटिस जारी किया था और मुंबई पुलिस कमिश्नर को निर्देश दिया था कि समय रैना और अन्य कॉमेडियनों को नोटिस देकर अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा जाए। कोर्ट ने चेतावनी दी थी कि यदि वे पेश न हुए तो कदम उठाए जाएंगे। इसके अलावा, मामले की संवेदनशीलता और महत्व को देखते हुए अटॉर्नी जनरल फॉर इंडिया को भी सहायता के लिए बुलाया गया।

विकलांगों की गरिमा का अधिकार

बाद में पांचों कॉमेडियन कोर्ट में पेश हुए। कोर्ट ने उन्हें जवाब दाखिल करने का समय दिया, लेकिन सोनाली ठक्कर को ऑनलाइन पेश होने की छूट दी गई, जबकि अन्य को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया। कोर्ट ने साफ़ किया कि विकलांगों की गरिमा का अधिकार गंभीर मुद्दा है और अनुपस्थिति को गंभीरता से लिया जाएगा।
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इस बीच, यूट्यूबर रणवीर अल्लाहाबादिया और आशीष चंचलानी ने भी अलग याचिकाएं दायर कीं, जिनमें उनके खिलाफ दर्ज एफ़आईआर को क्लब करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने अल्लाहाबादिया को अंतरिम संरक्षण दिया और उनका पासपोर्ट जारी करने का आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश न केवल इन कॉमेडियनों को माफी मांगने के लिए बाध्य करता है, बल्कि समाज को संवेदनशीलता सिखाता है। जबकि हास्य की स्वतंत्रता बरकरार रहेगी, लेकिन यह दूसरों की गरिमा पर नहीं हो सकती। कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए तारीख तय की है, जहां दंड और दिशानिर्देशों पर अंतिम फैसला होगा। यह मामला एक बार फिर याद दिलाता है कि डिजिटल जमाने में व्यावसायिक अभिव्यक्ति के साथ सामाजिक जिम्मेदारी जुड़ी हुई है।