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भीमा कोरेगांव केस: SC से वर्नोन गोंसाल्वेस, अरुण फरेरा को जमानत

सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2018 से जेल में बंद भीमा कोरेगांव मामले के आरोपी वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा को आख़िरकार जमानत दे दी है। उनपर भीमा कोरेगांव हिंसा के संबंध में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए के तहत आरोप लगाए गए। अदालत ने शुक्रवार को उनको जमानत देते हुए कहा, 'यह गोंसाल्वेस और फरेरा को जमानत देता है, क्योंकि उन्हें हिरासत में लिए हुए लगभग 5 साल बीत चुके हैं। जमानत के लिए मामला बनता है।'

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह देखते हुए कि दोनों पांच साल से अधिक समय से हिरासत में हैं, उनके खिलाफ आरोप गंभीर हैं, लेकिन केवल यही जमानत से इनकार करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है।

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गोंसाल्वेस और फरेरा को 2018 में पुणे के भीमा कोरेगांव में हुई जाति-आधारित हिंसा और प्रतिबंधित अति-वामपंथी संगठन, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के साथ कथित संबंध रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला जस्टिस अनिरुद्ध बोस और सुधांशु धूलिया की पीठ ने सुनाया। इसने दिसंबर 2021 में बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा उनकी जमानत याचिका खारिज करने के बाद उनकी याचिका पर सुनवाई की। डिवीजन बेंच ने 3 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

जमानत देते समय अदालत ने इस बात को ध्यान में रखा कि वर्नोन गोंसाल्वेस को पहले एक बार यूएपीए सहित अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था, और इसी तरह की गतिविधियों के आरोप में उनके खिलाफ एक आपराधिक मामला लंबित है। इसलिए, उसने कुछ शर्तें लगाई हैं। उन्हें जमानत देने से इनकार करने के बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने निर्देश दिया कि उन्हें ऐसी शर्तों पर जमानत पर रिहा किया जाएगा जो विशेष एनआईए अदालत लगा सकती है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने कहा कि कुछ शर्तें ये होनी चाहिए-

  • वे ट्रायल कोर्ट की अनुमति प्राप्त किए बिना महाराष्ट्र नहीं छोड़ेंगे।
  • उन्हें अपना पासपोर्ट एनआईए के पास जमा करना होगा और जांच अधिकारी को अपना पता और मोबाइल फोन नंबर बताना होगा।
  • इस अवधि के दौरान उनके पास केवल एक मोबाइल कनेक्शन हो सकता है।
  • उनके मोबाइल फोन चौबीसों घंटे चार्ज और सक्रिय रहने चाहिए। उन्हें अपने मोबाइल फोन की लोकेशन स्थिति को 24 घंटे सक्रिय रखना होगा। 
  • उनका फोन एनआईए के आईओ के साथ जोड़ा जाएगा ताकि वह किसी भी समय उनके सटीक स्थान की पहचान कर सके।
  • वे सप्ताह में एक बार जांच अधिकारी को भी रिपोर्ट करेंगे।

गोंसाल्वेस और फरेरा 2018 से मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं और बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा उनकी जमानत याचिका खारिज होने के बाद उन्होंने जमानत के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। दोनों ने तर्क दिया कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था, जबकि उसने सह-अभियुक्त सुधा भारद्वाज को जमानत दे दी थी।

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10 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में मामले के एक अन्य आरोपी गौतम नवलखा को उनकी स्वास्थ्य स्थिति और बुढ़ापे को देखते हुए एक महीने की अवधि के लिए घर में नज़रबंद रखने की अनुमति दी थी। बाद में इसने उनकी नज़रबंदी को बढ़ा दिया। जांच एजेंसी ने उन्हें अप्रैल 2020 में गिरफ्तार किया था। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 82 वर्षीय कार्यकर्ता पी वरवरा राव को जमानत दे दी थी।

वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा व 14 अन्य लोगों पर राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने दिसंबर 2017 में पुणे में भीमा कोरेगांव युद्ध स्मारक के पास हुई जातीय हिंसा के लिए ज़िम्मेदार होने का आरोप लगाया।

कोरेगांव भीमा की लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ मनाने के लिए 31 दिसंबर, 2017 को एल्गार परिषद ने बैठक की थी। हर साल 1 जनवरी को दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगाँव में जमा होते हैं और वे वहाँ बनाये गए 'विजय स्तम्भ' के सामने अपना सम्मान प्रकट करते हैं। 2018 को 200वीं वर्षगाँठ थी लिहाज़ा बड़े पैमाने पर लोग जुटे थे। इस दौरान हिंसा हो गई थी। इस हिंसा का आरोप एल्गार परिषद पर लगाया गया। ऐसा इसलिए कि 200वीं वर्षगांठ से एक दिन पहले एल्गार परिषद की बैठक हुई थी।

इसी के सिलसिले में जून 2018 में मुंबई, नागपुर और दिल्ली से कथित तौर पर माओवादियों से करीबी संबंध रखने वाले पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया था। बाद में अन्य लोगों को भी गिरफ़्तार किया गया था। कार्यक्रम के बाद विश्रामबाग पुलिस स्टेशन में दर्ज एक प्राथमिकी के अनुसार, एल्गार परिषद कार्यक्रम में उत्तेजक भाषण दिए गए, जिससे कोरेगांव-भीमा में हिंसा भड़क उठी।

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क़मर वहीद नक़वी
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