लद्दाख हिंसा मामले में सोनम वांगचुक की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। उन्होंने याचिका में कहा कि एनएसए के तहत की गई सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी अवैध है।
क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक की पत्नी डॉ. गितांजली अंगमो ने सुप्रीम कोर्ट में हेबियस कॉर्पस याचिका दायर कर पति की राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम यानी एनसीए के तहत गिरफ्तारी को चुनौती दी है। याचिका में वांगचुक की तत्काल और बिना शर्त रिहाई की मांग की गई है और आरोप लगाया गया है कि उनकी गिरफ्तारी एक सुनियोजित 'विच-हंट' का हिस्सा है। वांगचुक को 26 सितंबर को लद्दाख पुलिस ने गिरफ्तार कर राजस्थान के जोधपुर जेल स्थानांतरित कर दिया था। 24 सितंबर को लेह में हुई हिंसक झड़पों के बाद यह क़दम उठाया गया था। इन झड़पों में चार लोगों की मौत हो गई और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए।
डॉ. अंगमो ने याचिका में कहा है कि उन्हें अभी तक गिरफ्तारी के आदेश की प्रति नहीं दी गई है, जो संवैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन है। उन्होंने वांगचुक के स्वास्थ्य की जानकारी न मिलने और उनसे संपर्क न होने की शिकायत की है। याचिका वकील सर्वम रितम खरे के माध्यम से 2 अक्टूबर को दायर की गई, लेकिन दशहरा अवकाश के कारण सुनवाई की तारीख साफ़ नहीं है। अंगमो ने बुधवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, लद्दाख के उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और लेह जिला कलेक्टर को पत्र लिखकर भी हस्तक्षेप की मांग की थी।
सोनम वांगचुक पिछले चार वर्षों से लद्दाख के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा, स्थानीय नौकरियों की सुरक्षा और संवैधानिक संरक्षण की मांग कर रहे हैं। वे लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की वकालत कर रहे हैं, जो आदिवासी क्षेत्रों को विशेष अधिकार देती है। 24 सितंबर को लेह में शांतिपूर्ण प्रदर्शन हिंसक हो गया, जब प्रदर्शनकारियों ने सरकारी भवनों, वाहनों और संस्थानों पर हमला किया। पुलिस कार्रवाई में चार नागरिकों की मौत हो गई और 140 से अधिक लोग घायल हुए।
लद्दाख प्रशासन ने वांगचुक को हिंसा भड़काने का दोषी ठहराया। एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि वांगचुक ने सरकार के वार्ता प्रस्तावों के बावजूद अपनी भूख हड़ताल जारी रखी और नेपाली आंदोलनों तथा अरब स्प्रिंग का हवाला देकर भड़काऊ भाषण दिए। इन भाषणों और भ्रामक वीडियो के कारण हिंसा भड़की, जिसके परिणामस्वरूप पुलिसकर्मियों पर हमला हुआ और चार मौतें हुईं। प्रशासन ने कहा कि वांगचुक को लेह जिले में रखना सुरक्षित नहीं था, इसलिए उन्हें जोधपुर जेल भेजा गया। कुल 44 लोगों को हिंसा से जुड़े मामलों में गिरफ्तार किया गया है।
सोनम वांगचुक ने हिंसा के बाद अपनी भूख हड़ताल ख़त्म कर शांति की अपील की थी, लेकिन फिर भी एनएसए के तहत गिरफ्तार कर लिया गया।
पाक जासूस से संबंध के आरोपों का खंडन
गिरफ्तारी के बाद लद्दाख पुलिस ने वांगचुक पर पाकिस्तानी खुफिया एजेंट से संपर्क में होने का आरोप लगाया। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में अंगमो ने इन आरोपों को 'झूठा और गलत' बताते हुए खारिज किया। उन्होंने कहा, 'हम इन आरोपों की कड़ी निंदा करते हैं। एक नैरेटिव गढ़ा जा रहा है किसी को फँसाने के लिए। जब केंद्र सरकार चीनी सामान खरीद रही थी, तब वांगचुक चीन से लड़ने की बात कर रहे थे।'
अंगमो ने पत्र में लिखा, 'पूरी तरह विच-हंट पिछले एक महीने से चल रहा है, जो क्लाइमेट एक्टिविस्ट की भावना को कुचलने का प्रयास है। सोनम कभी किसी के लिए ख़तरा नहीं हो सकते, विशेषकर अपने देश के लिए।' उन्होंने सवाल उठाया कि क्या लद्दाख जैसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में अनियंत्रित विकास के खिलाफ लड़ना अपराध है? उन्होंने उत्तराखंड, हिमाचल और पूर्वोत्तर के हाल के अनुभवों का हवाला देते हुए कहा कि देश ने सबक सीखा है। अंगमो ने एक्स पर पत्र की कॉपी साझा करते हुए लिखा, 'मैंने सुप्रीम कोर्ट से राहत मांगी है। आज एक सप्ताह हो गया, फिर भी सोनम के स्वास्थ्य, स्थिति या गिरफ्तारी के आधारों की कोई जानकारी नहीं मिली।'
सिविल सोसाइटी संगठनों और एक्टिविस्टों ने वांगचुक की रिहाई की मांग की है। लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन यानी एलबीए के अध्यक्ष चेरिंग डोरजे लक्रुक ने गृह मंत्रालय से वांगचुक की सुरक्षा सुनिश्चित करने का अनुरोध किया। लेह एपेक्स बॉडी एलएबी के सह-सहायक ने कहा कि आंदोलन पिछले पांच वर्षों से संवैधानिक संरक्षण के लिए चल रहा है। हिंसा की घटनाओं और मौतों की न्यायिक जांच की मांग उठी है, साथ ही ट्रोलिंग और फर्जी वीडियो के खिलाफ चेतावनी दी गई। लद्दाख प्रशासन ने 'विच-हंट' के आरोपों को खारिज किया और कहा कि कार्रवाई कानूनी और ज़रूरी थी।
न्याय की प्रतीक्षा में लद्दाख!
सुप्रीम कोर्ट का फैसला लद्दाख आंदोलन के भविष्य को प्रभावित कर सकता है। अंगमो की याचिका एनएसए के दुरुपयोग और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे को उजागर करती है। वांगचुक की रिहाई से न केवल परिवार को राहत मिलेगी, बल्कि संवाद की राह भी खुलेगी। लद्दाख के लोग संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखेंगे, लेकिन शांति बनाए रखने की अपील की जा रही है।