एक राजनीतिक व्यक्तित्व के तौर पर राजीव-सोनिया की मैं घनघोर आलोचक रही हूँ। इसके उलट मेरे पिता दोनों के घनघोर प्रशंसक...। इस बात के बावजूद कि उन्हें ये लगता रहा कि राजीव जैसे सुदर्शन व्यक्ति सोनिया की तुलना में ज्यादा सुदर्शन पार्टनर डिजर्व करते हैं, वे सोनिया के व्यक्तित्व के कायल रहे।
राजीव की मृत्यु के बाद पापा सहानुभूति से भरकर कहा करते थे, ‘यहाँ क्या रखा है सोनिया के लिए अब! उसे अपने बच्चों को लेकर अपने मायके चले जाना चाहिए। बच्चे वहाँ सुरक्षित रहेंगे। यहाँ अब परिवार में कोई बचा भी तो नहीं है।’
जब सोनिया गाँधी कांग्रेस की अध्यक्ष बनी और कांग्रेस सत्ता में आई तो जाहिर तौर पर प्रधानमंत्री पद के लिए सोनियाजी की दावेदारी सबसे प्रबल थी। उस चुनाव के दौरान मेरी भी सोनिया गाँधी के प्रधानमंत्री बनने को लेकर आपत्ति थी औऱ पापा से इस मामले में लंबी-लंबी बहसें हुआ करती थीं।
सुषमा स्वराज की उस धमकी के बाद, जिसमें वो बोली थीं, ‘यदि सोनिया गाँधी प्रधानमंत्री बनेंगी तो मैं सिर मुँडवाकर जमीन पर सोना शुरू कर दूँगी।’, पापा बहुत व्यथित हुए थे। मुझे आज भी उनके शब्द औऱ उनके फेशियल एक्प्रेशन हूबहू याद है।
पापा ने बहुत हिकारत से कहा था, ‘क्या औरत है ये?’ फिर गर्व से बोले, ‘जब देश की जनता ने सोनिया गाँधी के प्रधानमंत्री की दावेदारी को समर्थन दिया है, जब देश का संविधान उन्हें प्रधानमंत्री होने से नहीं रोकता तो ये कौन है?’
मैं तब भी विरोध में थी औऱ मेरा तर्क ये था कि सौ करोड़ लोगों के देश में क्या एक भी ऐसा काबिल व्यक्ति नहीं है कि एक विदेशी मूल की महिला इस देश की प्रधानमंत्री बनें! पापा बहुत तार्किक नहीं थे, उनके पास इस बात का जवाब नहीं था।
बाद में राजेश ने ये कहकर मुझे सन्न कर दिया था कि, ‘तुम्हारे जो तर्क है वे कोई नए तर्क नहीं हैं, ये इसी समाज से पाए तर्क हैं। एक स्त्री जो अपना परिवार-घर सब छोड़कर आपके यहाँ आती हैं, आपके परिवार को, परंपराओं और समाज को अपनाती है, आपके बच्चों को जन्म देती हैं। आप उसकी कोख से पैदा हुए बेटे को अपना कुलदीपक कहते हैं, उसे अपना वारिस बनाते हैं, मगर उसकी माँ दूसरे घर की ही रहती है। यही हमारा समाज है, इसी को तुम सही मानती हो! तुम्हारे साथ भी ऐसा हो तब?’
मुझे लगा ये विचार मुझे कैसे नहीं आया! जबकि ये विचार पहले मुझे आना चाहिए था।
जब सोनिया गाँधी ने प्रधानमंत्री न बनने का अपना निर्णय सुनाया तो पहली बार मैंने सोनिया गाँधी को और उनकी पूरी यात्रा को देखा औऱ ऑब्जर्व किया। इंदिराजी की केयरिंग बहू, राजीव की प्रेयसी-पत्नी-दोस्त-पार्टनर और प्रियंका-राहुल की लविंग माँ।
फिर एक पूरी तरह से पारिवारिक सोनिया का राजनीतिक सोनिया में ट्रांसफॉर्मेशन... राजीव के साथ परछाई की तरह रहती सोनिया का बिना राजीव के राजनीति की गंदगी को झेलती सोनिया गाँधी। कांग्रेस की उद्धारक सोनिया।
प्रधानमंत्री जैसे बड़े पद को ठुकराती, इतिहास में दर्ज होने की महत्वाकांक्षा की उपेक्षा करती सोनिया गाँधी। पहली बार लगा कि ये कितना बड़ा प्रलोभन था औऱ इस प्रलोभन को कितनी सहजता से दरकिनार कर दिया।
मुझे इस सोनिया गाँधी से प्यार है। मुझे उस सोनिया से प्यार है, जिसने तमाम कड़वाहटें पाईं फिर भी अपने बच्चों को उन कड़वाहटों से दूर रखा। मुझे उस सोनिया से प्यार है, जिसने इस देश की लगातार गिरती जा रही राजनीतिक संस्कृति में अपनी गरिमा और सौम्यता के साथ कभी समझौता नहीं किया।
मुझे उस सोनिया से प्यार है, जिसने अपने जीवन की सबसे बड़ी पूँजी गँवाकर भी अपने बच्चों को माफ करना सिखाया। जिसने उस हत्यारों को माफ कर दिया जिन्होंने उसके जीवन से सब कुछ छीन लिया... प्रेमी, पति, दोस्त, खुशी, सुरक्षा सब कुछ। फिर भी नफरत न की, न अपने बच्चों को नफरत की विरासत दी।
मुझे उस सोनिया से प्यार है, जिसने इस देश की संस्कृति को उस स्त्री से ज्यादा आत्मसात किया है, जो इसी मिट्टी में जन्मी औऱ रह रही हैं।
मैं बार-बार इस बात को रेखांकित करती हूँ कि मैं कांग्रेसी नहीं हूँ। शायद ही मैं कभी इतनी राजनीतिक हो पाऊँगी कि सही-गलत की सलाहियत भूलकर किसी दल, किसी विचार, किसी व्यक्ति की ऐसी समर्थक, प्रशंसक हो जाऊँ कि उसमें कोई गलती, कमी नहीं देख पाऊँ।
इतने लंबे अर्से के सार्वजनिक जीवन में सिर्फ एक बार उनकी भाषा विचलित हुई थीं औऱ उन्होंने "मौत का सौदागर" फ्रेज का इस्तेमाल किया था। ये फ्रेज गलत नहीं था, इसका इस्तेमाल भी गलत नहीं था, बस ये सोनिया गाँधी का स्टाइल नहीं था।
इसके अलावा वे कभी भी अपनी भाषा, भाव-भंगिमा और विचार व्यवहार से हल्की नहीं हुईं। हमेशा गरिमा, शालीनता और सौम्यता के साथ नजर आईं।
और इसी गरिमामयी, शालीन, सौम्य, मजबूत और संवेदनशील स्त्री से प्यार है।
ये कहना इसलिए जरूरी है कि इस देश की राजनीति और राजनीतिज्ञों ने उन्हें बहुत रूसवा किया है, उनके साथ बहुत अभद्रता का बर्ताव किया तो ये बताना-जताना हमारा कर्तव्य है कि हम उन्हें प्यार करते हैं।
एक बेहद पितृसत्तात्मक राजनीतिक समाज के घृणित व्यवहार के लिए खुद को शर्मिंदा भी महसूस करती हूँ, इसलिए भी ये पोस्ट लिखना जरूरी लगा।
(अमिता नीरव के फेसबुक पेज से साभार)